संविधान, कानून और लोकतांत्रिक मूल्यों की फर्जी आड़ लेकर नागरिकता कानून का जैसा हिंसक विरोध हो रहा है उससे यही पता चल रहा कि अराजक तत्व उत्पात पर आमादा हैं। सरकारी एवं निजी संपत्ति को आग के हवाले करने और सड़क एवं रेल मार्ग को बाधित करने वाले इन उपद्रवी तत्वों का दुस्साहस इसीलिए चरम पर है, क्योंकि कुछ राजनीतिक दल उन्हें उकसाने में लगे हुए हैं। पश्चिम बंगाल के बारे में तो यह लगभग पूरी तौर पर साफ है कि ममता बनर्जी सरकार नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर उतरे अराजक तत्वों को परोक्ष तौर पर शह देने में लगी हुई है। यही कारण है कि वहां मालदा, हावड़ा और मुर्शिदाबाद में व्यापक पैमाने पर हिंसा और आगजनी देखने को मिली।

यदि उपद्रवी तत्वों के खिलाफ सख्ती का परिचय दिया जा रहा होता तो यह संभव ही नहीं था कि बंगाल में लगातार दूसरे दिन भी हिंसा देखने को मिलती। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि संकीर्ण राजनीतिक कारणों से बंगाल में हिंसा को भड़काया जा रहा है। केंद्र सरकार के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि वह बंगाल में मचाए जा रहे उत्पात के लिए ममता सरकार को जवाबदेह बनाए।

चूंकि नागरिकता कानून विरोधी हिंसा ने दिल्ली में भी अपने पैर पसार लिए हैं इसलिए केंद्र सरकार को अतिरिक्त सतर्कता बरतने के साथ ही सख्ती का भी परिचय देना होगा। विरोध का मतलब नग्न अराजकता नहीं हो सकता। दिल्ली में अराजक भीड़ ने जिस तरह दिन-दहाड़े कई बसों और दोपहिया वाहनों को आग के हवाले किया उससे तो यही लगता है कि सुनियोजित तरीके से नागरिकता कानून विरोधी हिंसा को हवा दी जा रही है।चिंताजनक यह है कि यह खतरनाक काम देश के अन्य हिस्सों में हो रहा है। कई राजनीतिक दल इसके लिए अतिरिक्त मेहनत करते भी दिख रहे हैं।

दुष्प्रचार में लिप्त ऐसे दलों की केवल आलोचना ही पर्याप्त नहीं। उन्हें बेनकाब भी किया जाना चाहिए। इसके साथ ही मानवतावादी होने का मुखौटा लगाए उत्पाती तत्वों को यह सख्त संदेश भी देना होगा कि किसी भी सूरत में हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। नि:संदेह किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि दिल्ली में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय अथवा उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों को नागरिकता कानून का विरोध करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? आखिर जब यह स्पष्ट है कि इस कानून का भारतीय मुसलमानों से कहीं कोई लेना-देना नहीं तब फिर उसके विरोध का क्या औचित्य? उत्पात का पर्याय बन गए इस उन्माद भरे हिंसक विरोध से कड़ाई से निपटना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि कानून के शासन की हेठी हो रही है।