केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की ओर से संसद में की गई यह घोषणा एक बड़ी पहल है कि अगले एक साल में देश से सभी टोल नाके खत्म कर दिए जाएंगे। इसका यह मतलब नहीं कि टोल टैक्स नहीं देना पड़ेगा। यह काम गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम लगाकर किया जाएगा। इससे यातायात को सुगम बनाने में भी मदद मिलेगी और टोल नाकों पर जाम के चलते जो ईंधन बर्बाद होता है, उसमें भी कमी आएगी। इसके अलावा टोल टैक्स की चोरी पर भी लगाम लगेगी, लेकिन वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाकर टोल टैक्स वसूलने की तकनीक बेहतर किस्म की होनी चाहिए।

यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि अभी फास्टैग आधारित व्यवस्था बहुत प्रभावी नहीं है। यह ठीक है कि 90 प्रतिशत से अधिक वाहन फास्टैग के जरिये टोल टैक्स का भुगतान कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी टोल नाकों पर जाम की समस्या समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। कई बार फास्टैग की स्कैनिंग में अच्छा-खासा समय लग जाता है। इससे इस तकनीक की उपयोगिता पर तो सवाल उठते ही हैं, सुगम यातायात का उद्देश्य भी अधूरा साबित होता है। कम से कम जीपीएस आधारित तकनीक में ऐसा कुछ नहीं चाहिए, जिससे वाहन चालकों को परेशानी का सामना करना पड़े।

राजमार्ग अनेक समस्याओं से ग्रस्त

मौजूदा माहौल में केवल टोल नाकों को खत्म करने की पहल के आधार पर ऐसे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता कि राजमार्गो पर आवागमन सुगम और सुरक्षित होने जा रहा है। हमारे राजमार्ग जिन अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैं, उनका भी संज्ञान लिया जाना आवश्यक है। इससे इन्कार नहीं कि देश भर में तेजी से राजमार्ग बन और संवर रहे हैं, लेकिन लंबी दूरी की यात्र करने वालों को कई तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। कहीं जाम, अतिक्रमण आदि के कारण रफ्तार धीमी करनी पड़ती है तो कहीं उलटी दिशा से आ रहे वाहनों की चिंता करनी पड़ती है।

राज्य सरकारों को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठाने के लिए तत्पर रहना चाहिए

इसी तरह कहीं सड़क किनारे खड़े वाहनों को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ती है तो कहीं यह देखना पड़ता है कि बैलगाड़ी, इक्का-तांगा आदि से कैसे बचा जाए? यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि लंबे राजमार्गो पर टुकड़ों-टुकड़ों में ही सुगम तरीके से यात्र संभव हो सके। राजमार्गो पर होने वाली दुर्घटनाएं और उनमें होने वाली जनहानि यही रेखांकित करती है कि सड़क यातायात को सुरक्षित बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है। राजमार्गो पर बड़े शहरों के इर्द-गिर्द तो यातायात पुलिस दिख जाती है, लेकिन अन्य कहीं वह मुश्किल से ही नजर आती है। स्पष्ट है कि इस मामले में राज्य सरकारों को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।