राहुल गांधी नागरिकता कानून को लेकर मोदी सरकार के साथ-साथ संघ और भाजपा पर जिस तरह निशाना साधने में लगे हुए है उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि वह एक रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैैं। उनके आरोपों से आक्रोशित भाजपा उन्हें केवल झूठा ही नहीं करार दे रही है, बल्कि झूठों के सरदार और वर्ष के सबसे बड़े झूठे की संज्ञा भी दे रही है। लगता नहीं कि भाजपा के जवाबी हमलों का उन पर कोई असर पड़ रहा है। वह मोदी सरकार पर नित-नया आरोप उछालकर आगे बढ़ते और भाजपा तथ्यों का हवाला देकर उनका पीछा करती ही दिख रही है।

पता नहीं यह सिलसिला कब तक कायम रहेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी इसकी परवाह नहीं कर रहे हैैं कि उनके आरोप तथ्यों से मेल खा रहे हैैं या नहीं? ऐसा इसीलिए हैै, क्योंकि अपने देश में विपक्षी नेता आम तौर पर आरोपों के सहारे ही राजनीति करते हैैं। वे प्राय: जानबूझकर मनगढ़ंत आरोपों का सहारा लेते हैैं। सत्तापक्ष के पास यह सुविधा नहीं होती, क्योंकि उसे अपनी बात साबित भी करनी पड़ती है। राहुल गांधी इसी का जमकर लाभ उठा रहे हैैं। उन्होंने पहले राफेल सौदे को लेकर मोदी सरकार पर मनचाहे आरोप लगाए और अब यही काम नागरिकता कानून, नागरिकता रजिस्टर और जनसंख्या रजिस्टर को लेकर करने में लगे हुए हैैं। यह तब है जब राफेल मामले में उनके आरोप न केवल आधारहीन साबित हुए, बल्कि उन्हें अपनी गलतबयानी के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगनी भी पड़ी।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि राहुल और उनके सहयोगी यह समझ बैठे हैैं कि वे मनमाने आरोपों के सहारे ही सरकार के खिलाफ एक विमर्श तैयार करने और माहौल खड़ा करने में सक्षम हैैं। सत्तापक्ष उनकी ओर से बनाए जा रहे माहौल की काट तभी कर सकेगा जब अपने विमर्श को आगे बढ़ाने के साथ ही यह संदेश देने में सक्षम होगा कि सरकार उन सब मसलों पर सही दिशा में बढ़ रही है जिन्हें लेकर विपक्ष उस पर तरह-तरह के आरोप मढ़ रहा है। राजनीति में धारणा का महत्व अधिक होता है। धारणा के इस खेल में कई बार मिथ्या आरोप भारी पड़ते हैैं और तथ्य एवं तर्क कमजोर।

सत्तापक्ष को यह समझना होगा कि जनता तक उसकी बातें न केवल सही तरीके से पहुंचें, बल्कि वह उन पर यकीन भी करे। उसे इसका भी आकलन करना होगा कि किन कारणों से नागरिकता कानून को लेकर विपक्ष और खासकर कांग्रेस उसके खिलाफ माहौल तैयार करने में जुटी है और वह भी तब जब संसद के दोनों सदन उस पर मुहर लगा चुके हैैं?