यह हास्यास्पद है कि बलूचिस्तान, और सिंध में मानवाधिकार उल्लंघन के संगीन आरोपों से दो-चार हो रहे पाकिस्तान ने जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में कश्मीर का राग अलापा। ऐसा करते हुए उसने हमेशा की तरह छल-कपट का सहारा लिया, लेकिन उसकी पोल खुद उसके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तब खोल दी जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर का उल्लेख भारतीय राज्य के तौर पर किया। पाकिस्तान के झूठ के जवाब में भारतीय प्रतिनिधि ने उसे न केवल खरी-खरी सुनाई, बल्कि उसे आतंकवाद का गढ़ कहकर भी रेखांकित किया। चूंकि दुनिया भी पाकिस्तान को आतंक के गढ़ के रूप में ही देखती है इसलिए इसकी उम्मीद नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उसे कोई समर्थन मिलने वाला है।

पाकिस्तान को इसके पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी मुंह की खानी पड़ी थी। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस शरारती पड़ोसी का आगे भी यही हश्र हो। इस क्रम में यह भी ध्यान रखने की जरूरत होगी कि कश्मीर मसले के बहाने कोई देश अनुचित दबाव बनाने की कोशिश न करे। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ब्रिटेन की भूमिका कोई बहुत अच्छी नहीं रही और अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बार फिर यह कह दिया कि अगर भारत और पाकिस्तान चाहें तो वह कश्मीर पर मध्यस्थता को तैयार हैं। यह एक गैर-जरूरी बयान है, क्योंकि कुछ ही दिनों पहले भारतीय प्रधानमंत्री ने उनके समक्ष दो-टूक कहा था कि भारत अपने और पाकिस्तान के बीच के मामलों में किसी तीसरे देश को कष्ट नहीं देना चाहता।

आखिर जब अमेरिका इससे अच्छी तरह अवगत है कि भारत पाकिस्तान से जुड़े मसलों पर किसी की मध्यस्थता के पक्ष में हर्गिज नहीं तब फिर इस तरह की बातों का क्या मतलब कि अगर भारत-पाकिस्तान चाहें तो.? चूंकि इस तरह की बातें भारत के न चाहने के बावजूद हो रही हैं इसलिए यही लगता है कि अमेरिका और साथ ही कुछ अन्य पश्चिमी देश कश्मीर के बहाने भारत को परेशान करना चाह रहे हैं। शायद इन देशों और खासकर अमेरिका को यह पच नहीं रहा कि भारत हर मामले में उसकी हां में हां मिलाने को तैयार नहीं।

यह स्वाभाविक है कि अमेरिका को यह रास न आ रहा हो कि भारत उसके साथ ही रूस को भी बराबर महत्व दे रहा है, लेकिन भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग रहना चाहिए। इसी के साथ उसे अपनी आर्थिक प्रगति को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। वास्तव में आर्थिक रूप से और मजबूत होकर ही भारत हर तरह की अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का सामना कहीं आसानी से कर सकने में समर्थ होगा।