सहारनपुर के निकट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर अनेक गांवों में जहरीली शराब ने जैसा कहर ढाया उससे एक बार फिर यह पता चल रहा है कि शराब बिक्री से अपना खजाना भर रही राज्य सरकारें मिलावटी और जहरीली शराब के अवैध कारोबार से किस तरह आंखें मूंदे रहती हैैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जहरीली शराब से दर्जनों लोग मर जाएं और फिर भी पुलिस-प्रशासन यह बताने की स्थिति में न हो कि इतने लोग किसकी लापरवाही से काल के गाल में समा गए? इससे तनिक भी संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि जहरीली शराब के एक और कहर के बाद यह कहा जा रहा है कि अवैध शराब के खिलाफ व्यापक अभियान छेड़ा जा रहा है और दोषी लोगों को बख्शा नहीं जाएगा, क्योंकि यदि मौत के इस काले कारोबार के खिलाफ वास्तव में सख्ती बरती जा रही होती तो इतनी बड़ी घटना घटती ही नहीं।

अगर यह माना जा रहा है कि जहरीली शराब के कहर ढाने के बाद दिखाई जाने वाली सक्रियता से अवैध शराब का कारोबार थम जाएगा तो ऐसा होने वाला नहीं है। इसकी गवाही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के वे ग्रामीण इलाके दे रहे हैैं जहां जहरीली शराब से मरने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रशासन किस तरह पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं सीखता, इसका प्रमाण यह है कि जिस इलाके में जहरीली शराब ने कहर ढाया उसी इलाके में दस साल पहले भी करीब 50 लोग मिलावटी शराब पीकर मर गए थे। जहरीली शराब पीकर मरने वाले गरीब तबके के लोग होते हैैं तो इसका यह मतलब नहीं कि वे रह-रह कर भेड़-बकरियों की तरह मरते रहें।

यह शराब बिक्री के तंत्र के नियमन की कमी का दुष्परिणाम है जिसके चलते मिलावटी शराब का धंधा बिना किसी रोेक-टोक चलता रहता है। इस तरह के धंधे में लिप्त लोग जब-जब ज्यादा कमाई के लालच में आते हैैं तब-तब लाशों के ढेर लग जाते हैैं। आखिर यह एक तथ्य है कि करीब आठ महीने पहले कानपुर मेंं जहरीली शराब से एक दर्जन मौतें हुई थीं। यह भी कल-परसों की ही बात है जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जहरीली शराब ने कहर ढाया। इसका मतलब है कि दोनों राज्यों में अवैध शराब का धंधा मनमाने तरीके से चल रहा है। अवैध शराब के धंधे में कोई रोक न लगने की बड़ी वजह राजनीतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी है।

दुर्भाग्य यह है कि इस कमी का परिचय अन्य राज्यों में भी दिया जा रहा है। यही कारण है कि देश के किसी न किसी हिस्से से जहरीली शराब से मौतों के समाचार आते ही रहते हैैं। मिलावटी या फिर अवैध तरीके से बनाई जा रही शराब कभी भी जानलेवा हो सकती है। इस तरह से शराब बनाने-बेचने का धंधा तब तक बंद होने वाला नहीं जब तक इस धंधे के मूल कारणों का निवारण नहीं किया जाएगा। समझना कठिन है कि आखिर मौत के इस धंधे को बंद करने में कोताही का परिचय क्यों दिया जाता है? इस सवाल का जवाब उत्तर प्रदेश सरकार से भी चाहिए और उत्तराखंड की सरकार से भी।