हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में हुई बस दुर्घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि कुछ आलस्य से भरे और कुछ अति आत्मविश्वासी आपराधिक कृत्य मिलकर एक बड़ी दुर्घटना के लिए रास्ता बनाते हैं। बस में सवार 15 सवारों में से 13 की मृत्यु हो गई और चालक-परिचालक घायल हैं। सरकारी स्तर पर प्रमाद की स्थिति यह है कि क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी को यह भान ही नहीं है कि उक्त बस वहां तक भी जा रही थी, जहां तक जाने की उसके पास स्वीकृति नहीं थी।

सोमवार को भी बस उस स्थान से सवारियां लेकर आ रही थी। जिस स्थान पर दुर्घटना हुई है वहां पर भूस्खलन हुआ था और सड़क पर मलबा था। इस बस से पहले वहां से हिमाचल पथ परिवहन निगम की भी दो बसें गुजरी थीं, लेकिन उस स्थान पर चालकों ने सवारियों को नीचे उतार दिया था। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि दुर्घटनाग्रस्त बस के चालक ने वहां पर सवारियों को बस से नीचे नहीं उतारा और कच्चे में बस चला दी, जिससे बस खाई में जा रही। कहा जा रहा है कि वहां पर कई दिन से मलबा पड़ा था, जिसे हटाया नहीं गया था। इस स्थान पर न क्रैश बैरियर थे न ही पैरापिट थे।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सूचना मिलते ही हैदराबाद से घटनास्थल पर पहुंचे। पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधाया और आर्थिक मदद की घोषणा की। इस दुर्घटना में अन्य पक्षों की लापरवाही भी सामने आ रही है। वहां पर मलबा पड़ा था तो उसे हटाया क्यों नहीं गया जबकि अब मानसून भी सक्रिय हो चुका है। दूसरा परिवहन विभाग को यह जानकारी ही नहीं थी कि इस बस को स्वीकृत रूट से 10 किलोमीटर आगे ले जाया जाता था। सवाल यह भी है कि कभी इसकी जांच संबंधित विभाग ने क्यों नहीं की। यदि उस स्थान तक बस चलाने की जरूरत थी तो क्यों नहीं रूट जारी किया गया?