केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों को फसलों के अवशेष यानी पराली जलाने से रोकने के लिए सचेत रहने का निर्देश देकर समय रहते सही कदम अवश्य उठाया, लेकिन बात तब बनेगी जब संबंधित राज्य सरकारें और उनका प्रशासन पराली जलाने से रोकने में सक्षम भी साबित होगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बीते साल भी केंद्र की ओर से राज्यों को पराली जलाने से रोकने के प्रबंध करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन वे निष्प्रभावी साबित हुए। कहीं राज्यों ने कामचलाऊ रवैये का परिचय दिया तो कहीं संबंधित सरकारी विभागों ने संसाधनों की कमी का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए। परिणाम यह हुआ कि सर्दियां शुरू होते ही पराली का धुआं दिल्ली समेत देश के एक बड़े हिस्से में पर्यावरण और साथ ही सेहत के लिए संकट बन गया। इस बार ऐसा नहीं होगा, यह भरोसा तब होगा जब पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि के किसान पराली नहीं जलाएंगे। किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए केवल इतना पर्याप्त नहीं कि उन्हें यह बता-समझा दिया जाए कि ऐसा करना पर्यावरण के हित में नहीं। इसी के साथ पराली के निस्तारण की वैकल्पिक व्यवस्था भी करनी होगी। हालांकि पिछले कुछ वर्षो में पराली को जलाने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को अच्छी-खासी आर्थिक मदद दी है, लेकिन अभी तक वे ऐसी व्यवस्था नहीं कर पाए हैं जिससे पराली जलाया जाना बंद हो। कम से कम इस बार तो कोई ठोस व्यवस्था होनी ही चाहिए। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि पिछली बार पंजाब एवं हरियाणा में कई स्थानों पर किसान पराली जलाते रहे और राज्य सरकारें अपनी मजबूरी बयान करती रहीं। 1अच्छा हो कि पराली जलाने से रोकने के उपायों के तहत इस पर भी विचार किया जाए कि क्या सभी किसानों के लिए धान की फसल लगाना आवश्यक है? उन राज्यों को तो इस पर विचार करना ही चाहिए जहां भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। यह कोई समझदारी नहीं कि जो फसलें अधिक पानी की मांग करती हैं उनकी खेती वहां भी होती रहे जहां जल संकट गंभीर होता दिख रहा है। जब पर्यावरण में बदलाव साफ दिख रहा है तब खेती के तौर-तरीकों में बदलाव से बचना ठीक नहीं। यह सही है कि पराली जलाने का काम दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी होता है, लेकिन भारत में उसका धुआं इसलिए बड़ी समस्या बनता है, क्योंकि अधिक सर्दी वाले उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में वह वाहनों के उत्सर्जन और सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल में मिल जाता है। स्पष्ट है कि एक ओर जहां पराली को जलाने से रोकने के प्रभावी उपाय करने होंगे वहीं यह भी देखना होगा कि वायुमंडल को दूषित करने वाली धूल और वाहनों के उत्सर्जन को कैसे नियंत्रित किया जाए। बेहतर हो कि इस दिशा में भी समय रहते जरूरी कदम उठाए जाएं। पराली जलाने से रोकने के मामले में इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि केंद्र ने राज्यों को दिन-प्रतिदिन के आधार पर निगरानी रखने के निर्देश दे दिए। उसे भी यह निगरानी करनी होगी कि राज्य जरूरी सक्रियता बरत रहे हैं या नहीं?