भारतीय सेना की ओर से धोखेबाज चीन की सेना को उसी की भाषा में करारा जवाब दिए जाने के बाद चीनी नेतृत्व जिस तरह गर्जन-तर्जन कर रहा है वह उसकी खिसियाहट के अलावा और कुछ नहीं। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर छेड़छाड़ करके उलटे भारत को अतिक्रमणकारी बताता चला आ रहा चीन अब यथास्थिति बनाए रखने का राग अलाप रहा है। यह मक्कारी ही है, क्योंकि बीते तीन-चार माह से सीमा पर यथास्थिति बनाए रखने के भारत के आग्रह को वह एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने में लगा हुआ था। इस बारे में उससे कम से कम एक दर्जन बार बात हुई, लेकिन वह कुल मिलाकर धूर्तता का ही परिचय देता रहा। उसकी ओर से यह कहा जाना तो शरारत की पराकाष्ठा है कि उसने कभी किसी देश की एक इंच जमीन नहीं कब्जाई है।

तिब्बत को हड़पने, 1962 के युद्ध में भारत के एक बड़े भूभाग पर कब्जा जमाने और दक्षिण चीन सागर में बेशर्मी से दावा करने के साथ अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को धता बताने वाला देश आखिर किस मुंह से यह कह रहा है कि उसने कभी किसी की जमीन पर कब्जा नहीं किया? यदि दुनिया किसी देश की निर्लज्ज विस्तारवादी नीति से त्रस्त है तो वह चीन ही है। यह भी चीन ही है, जो उत्तर कोरिया और पाकिस्तान के रूप में दुनिया के सबसे बिगड़ैल देशों का संरक्षक बनने में गर्व का अनुभव करता है।

चीन शांति की बातें करता है, लेकिन हर किसी को और यहां तक कि अपने ही लोगों को धोखा देता है। हांगकांग इसका ताजा उदाहरण है। बुरी नीयत वाले चीन का इलाज यही है कि वह जब तक अपने कहे पर अमल करके न दिखाए, तब तक उसकी किसी बात पर रत्ती भर भी भरोसा न किया जाए। चीनी विदेश मंत्री का यह कहना दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की एक और कोशिश ही है कि भारत से लगी सीमा का चिन्हांकन न होने के कारण समस्याएं उभरती रहती हैं।

सच यह है कि चीन की इसमें दिलचस्पी ही नहीं कि भारत से सीमा विवाद सुलझे। बीते लगभग दो दशकों में सीमा विवाद सुलझाने के लिए तमाम उच्च स्तरीय वार्ताओं के बाद भी वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा है। अपने कब्जे वाली जमीन छोड़े बगैर सीमा विवाद हल करने की उसकी कोशिश उसके कपटपूर्ण इरादे को ही बयान करती है। भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चीन जब तक सीमा विवाद को हल करने के लिए आगे नहीं आता तब तक उसे वह शत्रु राष्ट्र के रूप में ही देखे और उन उपायों पर नए सिरे से विचार करे जिनके जरिये उसे सबक सिखाया जा सके।