जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले को मिल रहे व्यापक समर्थन के बीच असहमति के भी कुछ स्वर उठे हैं। इतने बड़े देश में ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन इस फैसले से असहमत लोग कश्मीर की अशांति की आड़ में अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने वालों को जाने-अनजाने जिस तरह खाद-पानी देने का काम कर रहे हैं वह ठीक नहीं। इन लोगों की ओर से एक दलील यह दी जा रही है कि घाटी के नेताओं को भरोसे में लेकर ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए था।

आखिर यह दलील देने वाले इससे अनजान क्यों बने रहना चाहते हैं कि कश्मीर के अधिकांश नेता तो पाकिस्तानपरस्त अलगाववादियों वाली भाषा बोलने में माहिर हो चुके हैं? उन्हें इस सच से भी अवगत होना चाहिए कि अनुच्छेद 370 अलगाव का जरिया बन गया था और राजनीतिक अधिकारों की आड़ में कश्मीरियत का उल्लेख कुछ इस तरह किया जाता था मानो वह भारतीयता से भिन्न और कोई विशिष्ट संस्कृति हो।

बेहतर हो कि अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध कर रहे नेता और विचारक इस प्रश्न पर विचार करें कि आखिर इस अनुच्छेद से कश्मीर और साथ ही देश को हासिल क्या हुआ? इस प्रश्न पर कम से कम कांग्रेस नेतृत्व को अवश्य ही विचार करना चाहिए, क्योंकि उसके एक के बाद एक नेता विभाजनकारी अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन करते हुए यह भी कह रहे हैं कि पार्टी राह से भटक गई है। अच्छा हो कांग्रेस नेतृत्व यह देखे कि उसका रुख किसे बल प्रदान कर रहा है?

यह सही है कि कश्मीर में सुरक्षा और सतर्कता बढ़ानी पड़ी है, लेकिन इसे लेकर चिंतित हो रहे लोग यह क्यों नहीं देख पा रहे हैं कि वहां हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं और पाबंदियां हटाने का सिलसिला बढ़ रहा है? यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि बीते एक पखवाड़े में घाटी में जान-माल का नुकसान नहीं हुआ है। नि:संदेह तथाकथित आजादी के सपने से प्रभावित कश्मीर के लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने में समय लगेगा, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ऐसे कश्मीरियों को यह दिवास्वप्न दिखाया जाए कि बीते हुए दिन फिर लौट सकते हैं।

यह नहीं हो सकता, क्योंकि इस मामले में देश न केवल एकजुट है, बल्कि दृढ़ संकल्पित भी है। इसी संकल्प भाव के कारण ही कश्मीर में आतंक और अलगाववाद के समर्थकों के हौसले पस्त हैं और पाकिस्तान को समझ नहीं आ रहा है कि वह करे तो क्या करे? यह सही समय है जब कश्मीर संबंधी फैसले पर राष्ट्र एक स्वर में बोले, क्योंकि इसी से दुनिया को यह संदेश जाएगा कि भारत अपने रुख से टस से मस होने वाला नहीं।