प्रदेश सरकार की ओर से पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने के लिए उठाए जा रहे कदम सराहनीय हैं। जिस प्रकार से सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है और तमाम योजनाओं की घोषणा कर रही है, उसे एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। बशर्ते, ये सारी घोषणाएं केवल हवाई साबित न हों। दरअसल, प्रदेश में रहस्य और रोमांच के लिए इतने स्थान हैं जो देश-दुनिया की नजरों से छिपे हुए हैं। यदि ये स्थल पर्यटन के मानचित्र पर आ जाएं तो निश्चित तौर पर तमाम पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे। सरकार की ओर से केदारनाथ के लिए विभिन्न पैदल मार्ग विकसित करने के लिए हिटो केदार योजना और कैलाश मानसरोवर के लिए पुराने पैदल मार्गों को फिर से पुनर्जीवित करने के प्रयास निसंदेह अच्छे प्रयास हैं। इन तमाम योजनाओं के बीच इस बात पर खास ध्यान देने की जरूरत है कि इनका धरातल पर क्रियान्वयन सही प्रकार से हो। बीते वर्ष सरकार ने टिहरी महोत्सव का जोर शोर से प्रचार किया मगर अधूरी तैयारियों के कारण यह आयोजन अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गया। पुरानी कुछ योजनाओं पर नजर डालें तो नंदा देवी ट्रेक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है लेकिन यहां मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते पर्यटकों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सरकार को पर्यटन क्षेत्र विकसित करने के साथ ही इन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के विकास की ओर भी ध्यान देना चाहिए। शायद यही कारण है कि सरकार की ओर से चुने गए 24 पर्यटन ग्रामों में क्या हो रहा है, किसी को पता नहीं। दयारा में हाल ही में सरकार की ओर से मनाया गया उत्सव काफी सफल रहा। यहां के रैथल और बारसू गांव के लोग पलायन को ठेंगा दिखाते हुए अपने बूते समृद्ध हो रहे हैं। सरकार को इस तरह के गांवों को मॉडल विलेज के रूप में चुन कर इनका उदाहरण सबके सामने रखना चाहिए। सरकार को इस बात को समझना होगा कि पर्यटन को प्रोत्साहन पलायन को रोकने में बेहद अहम भूमिका निभा सकता है। नए पर्यटन क्षेत्रों को इसी सोच के साथ विकसित करने की जरूरत है। इसके साथ ही नौकरशाही को भी पर्वतीय क्षेत्रों की परेशानियों को समझने की जरूरत है। मुख्यमंत्री खुद इस बात को मान रहे हैं कि पलायन की जिम्मेदार नाकाम नौकरशाही है। मुख्यमंत्री की यह पीड़ा केवल उनकी नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की पीड़ा है। जाहिर है कि नौकरशाही को कसने के लिए सरकार को कड़े कदम भी उठाने होंगे तभी सरकार का यह प्रयास अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]