हिमाचल की सर्पीली सड़कों का हादसों के बाद रक्तरंजित होना कोई नई बात नहीं है। सच यह है कि कुछ हादसे दिमाग में होते हैं, कुछ व्यवहार में और कुछ सड़क पर उतर आते हैं। हिमाचल में सोमवार की रात से लेकर मंगलवार शाम तक विभिन्न हादसों में करीब 15 लोगों की मौत दुखद और त्रसद विषय इसलिए है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि कहीं न कहीं, किसी न किसी स्तर पर भारी खामी है। कोई भी अभियान पहले विचार होता है और उसके बाद साकार होता है लेकिन इससे जुड़े अभियान विचार के स्तर पर ही रह गए प्रतीत होते हैं।

मंडी जिले के लडभड़ोल क्षेत्र के एक ही परिवार से जुड़े चार लोगों समेत छह लोगों की असामयिक मौत दुखद है। कहीं कोई दंपती अपनी जान गंवा बैठा है। यकीनन कुछ घरों के चिराग बुझे हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की सर्पीली सड़कें हर रोज रक्तरंजित हो रही हैं और हर रोज कई परिवारों को ऐसे जख्म मिल रहे हैं जो ताउम्र नहीं भर सकते। ऐसा नहीं है कि दुर्गम क्षेत्रों की खस्ताहाल सड़कें ही हादसों का कारण बन रही हैं। उन क्षेत्रों में भी हादसों का क्रम बढ़ गया है जहां पर नई सड़कें बनाई गई हैं या बनाई जा रही हैं। हादसा हमेशा किसी न किसी पक्ष की लापरवाही से ही होता है। ये जांच के विषय हैं कि जिन स्थलों पर हादसे हुए हैं वहां कोई चेतावनी बोर्ड थे या नहीं। क्या यातायात नियमों का पालन किया जा रहा था या नहीं क्योंकि तेज रफ्तार व यातायात नियमों की अवहेलना भी कई बार हादसों का कारण बनती रही है लेकिन लोग अपनी जान की परवाह किए बिना यातायात नियमों की अवहेलना करते हैं। इस बात को समझना होगा कि हादसे के लिए बाहरी कारक नहीं लोगों की लापरवाही भी जिम्मेदार है। संबंधित विभाग और सड़क निर्माण में जुटी कंपनियों के साथ-साथ वाहन चालक सचेत रहें तो हादसों के क्रम को काफी कम किया जा सकता है। यातायात नियमों का पालन करने से हादसे का दुष्प्रभाव कम हो सकता है। राज्य में बढ़ते सड़क हादसों को रोकने व उनका असर कम करने के लिए सभी पक्षों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। लोक निर्माण विभाग भी सड़कों की दशा सुधारे और दुर्घटना की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों पर चेतावनी बोर्ड लगाए। समाज और प्रदेश के नीति नियंताओं को भी इस बात पर मंथन करना चाहिए कि हादसों में कमी कैसे लाई जाए और इनके दुष्प्रभाव कैसे कम हों।

{स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश}