[ डॉ. भरत झुनझुनवाला ]: हाल में इंडियन साइंस कांग्रेस के वार्षिक आयोजन में दावा किया गया कि प्राचीन भारत में टेस्ट ट्यूब से संतान पैदा की जाती थी और रावण के पास हवाई जहाज थे। चूंकि अपने पुराने वैभव को जानने से हमारा आत्मसम्मान और आगे बढ़ने का हौसला बढ़ता है इसलिए उसे जानना अत्यंत आवश्यक है, लेकिन हमारे दो प्रकार के वैभव हैं। कुछ वैभव आधुनिक विज्ञान द्वारा पुष्ट नहीं किए जाते हैं। जैसे हवाई जहाज होने के कोई पुरातत्व अवशेष नहीं हैं, मगर दूसरी कई वस्तुओं के काफी वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व यानी ईसा से तीन हजार वर्ष विश्व में तीन प्रमुख सभ्यताएं थीं-मिस्र, इराक और भारत। मिस्र के लोगों का मानना था कि वे पूरब में सागर पार से आए थे।

प्राचीन मिस्र के एक ग्रंथ में कहा गया है कि सूर्य का उदय मनु की भूमि में होता है। पूरब में मनु की भूमि भारतीय मनु से मेल खाती है। दोनों बातों को साथ में जोड़ें तो संकेत मिलता है कि पूरब दिशा में स्थापित मनु की भूमि से लोग मिस्न पहुंचे थे यानी मिस्र के लोगों की जड़ें भारत में थीं। इसी क्रम में प्राचीन इराकी साहित्य में कहा गया है कि वे लोग दिलमन नामक स्थान से वहां आए थे। इराकी भाषा वैज्ञानिक सैमुअल नोआ क्रेमर के अनुसार भारत का नाम ही दिलमन था। इससे यही संकेत मिलता है कि इराक के लोग भी भारत से पलायन कर वहां जा बसे थे। इन दोनों सभ्यताओं की जड़ें भारत में होने का संकेत इससे भी मिलता है कि मिस्र और इराक की तुलना में भारत के शहरों का आकार दस गुना बड़ा था। भारत में पकी हुई ईंटों से मकान बनाए जाते थे जबकि मिस्र में कच्ची ईंटों से। इससे पता लगता है कि भारत ज्यादा विकसित देश था यानी कांस्य युग में भारत सर्वश्रेष्ठ ही नहीं, बल्कि शेष दोनों सभ्यताओं का उद्गम स्थल दिखता है।

ईसाई और इस्लाम धर्म की जड़ें भी भारत में दिखती हैं। बाइबल में बताया गया है कि प्रथम मनुष्य आदम ईडन के बगीचे में रहते थे जहां से चारों दिशाओं में नदियां बहती थीं और जो एक पहाड़ पर स्थित था। ऐसी ही स्थिति राजस्थान के पुष्कर में दिखती है। वहां एक छोटी सी पहाड़ी पर ब्रह्मा जी का मंदिर है जिन्हें भारतीय सभ्यता में प्रथम सृष्टिकर्ता माना जाता है। पुष्कर से चार नदियां चार दिशाओं में भी बहती हैं।

मुस्लिम परंपरा की दाईफ नामक कुछ किंवदंतियों में भी कहा गया है कि हजरत अदम भारत में उतरे थे। बाइबल में कहा गया कि नूह के समय बाढ़ का पानी 150 दिन तक ठहरा हुआ था। वर्तमान में राजस्थान के ही जालौर क्षेत्र में बाढ़ का पानी गांवों में तीन-तीन महीने तक टिका रहता है। वहां पर मत्स्यावतार की मान्यताएं भी मिलती हैं। मीणा समुदाय के लोग स्वयं को मत्स्यावतार का वंशज मानते हैं। जालौर में उनका बाहुल्य संकेत करता है कि मत्स्यावतार के समय यहां बाढ़ आई होगी।

बाइबल और कुरान में उल्लेख है कि मूसा यहूदियों को लेकर मिस्न नामक देश से बाहर गए थे। उन्हें पानी से भरा हुआ एक इलाका भी पार करना पड़ा था। दैवीय कृपा से उस क्षेत्र का पानी फट गया और यहूदी लोग सूखी जमीन पर उस पानी से पार हो गए। कुरान के अनुसार पहाड़ से बालू गिरा, पानी वापस आया और यहूदियों का पीछा करते पीछे आ रहे फिरौन को डुबा दिया। यह परिस्थिति सिंधु नदी से मेल खाती है। सिंधु नदी के किनारे बलूचिस्तान क्षेत्र में मिट्टी के ज्वालामुखी फटते हैं। इनमें लावा के स्थान पर मिट्टी निकलती है। संभव है कि सिंधु नदी के ऊपरी हिस्से में मिट्टी का एक ज्वालामुखी फूटा हो जिसने कुछ समय तक पानी के बहाव को रोक दिया हो और यहूदियों ने पानी के स्थान पर सूखी जमीन को पार कर लिया हो।

अटलांटिक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार ईसा मसीह के समय विश्व की आय में भारत का हिस्सा चालीस प्रतिशत, चीन का तीस प्रतिशत, इराक और मिस्न का मिलाकर बीस प्रतिशत और शेष विश्व का मात्र दो प्रतिशत था। भारत उस समय विश्व का सबसे अधिक समृद्ध देश था, लेकिन ईसा के हजार वर्ष बाद हमारा निरंतर आर्थिक पतन होता चला गया। पहले हम मंगोलों के बारूद के सामने नहीं टिके। फिर अंग्र्रेजों की तोप के सामने घुटने टेककर हम गुलाम हो गए और विश्व की आय में हमारा हिस्सा चालीस प्रतिशत से घटकर मात्र तीन प्रतिशत रह गया।

हमारे पास अपने पुराने गौरव के तमाम ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं जो आधुनिक विज्ञान सम्मत हैं। भारत, मिस्न और इराक की प्राचीन सभ्यताओं का उद्गम स्थल था। संभव है कि यह ईसाई और इस्लाम धर्म का भी का उद्गम स्थल हो। प्राचीन काल में यह विश्व का सबसे समृद्ध देश था। अपने पुरातन गौरव से स्वयं को जोड़ने के हमारे सामने दो रास्ते खुले हुए हैं। एक रास्ता यह है कि हम विज्ञान सम्मत अपने वैभव के आधार पर अपने आत्मसम्मान को जागृत करें। दूसरा रास्ता है कि हम टेस्ट ट्यूब बेबी और रावण के हवाई जहाज जैसी बातों पर यकीन करें। इसमें अंतर इतना ही है कि टेस्ट ट्यूब बेबी और हवाई जहाज के हमें कोई पुरातत्व साक्ष्य नहीं मिलते हैं। इसलिए उनके आधार पर आगे बढ़ने से हमारा वैश्विक विद्वानों के बीच उपहास उड़ना स्वाभाविक है। इससे हमारे आत्मसम्मान पर भी चोट पहुंच सकती है। इसलिए हमें विज्ञान के साथ चलना चाहिए।

जब हमारे पास अपने विज्ञान सम्मत वैभव के तमाम साक्ष्य उपलब्ध हैं तो संदिग्ध बातों के आधार पर अपने सम्मान को हासिल करने की जरूरत ही क्या है? अपने हाथ में हीरा हो तो खिड़की के कांच की चमक के आधार पर अपने आत्मसम्मान को बढ़ाने की क्या जरूरत है?

टेस्ट ट्यूब बेबी और रावण के हवाई जहाज जैसे वैभव का आधार हमारे शास्त्र बताए जाते हैं। यह सही है कि हमारे शास्त्र ईश्वरीय ज्ञान देते हैं, लेकिन शास्त्र में लिखे गए शब्दों का अर्थ निकलना पड़ता है। जैसे वाल्मीकि रामायण में कहा गया कि रावण के पास पुष्पक विमान था। अब विमान शब्द का अर्थ होता है जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाए। यह रथ, पानी का जहाज अथवा वायुयान कुछ भी हो सकता है। ऐसे में हमें उस अर्थ को स्वीकार करना चाहिए जो विज्ञान सम्मत हो। विज्ञान भी ईश्वरीय ज्ञान है।

वाल्मीकि रामायण के विज्ञान के विरुद्ध होने की संभावना नहीं है। इसलिए हमारा ध्यान अपने उस वैभव की ओर होना चाहिए जिसके अनुसार विश्व की आय में भारत का हिस्सा चालीस प्रतिशत था। इसी वैभव के आधार पर हमें अपने आत्मसम्मान को हासिल करना चाहिए और सात प्रतिशत की विकास दर से आगे सोचना चाहिए। पुराने पुष्पक विमान की चर्चा करने के स्थान पर आधुनिक मिसाइलों को बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

( लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलूर के पूर्व प्रोफेसर हैं )