प्रो. निरंजन कुमार। कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 से लड़ाई में भारत ने जिस तत्परता और धैर्य का परिचय दिया है उससे पूरी दुनिया में देश का मान बढ़ा है। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी इस आपदा में अपने सारे संसाधन झोंक दिए हैं, लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ाई अकेले सरकार के बूते नहीं लड़ी जा सकती। राजसत्ता या स्टेट के अलावा नॉन स्टेट एक्टर्स (एनएसए) यानी सरकार से इतर लोगों की भी इस लड़ाई में बड़ी भूमिका है।

नॉन स्टेट एक्टर्स का अर्थ है सरकार से असंबद्ध वे सभी संगठन, समूह और लोग जो आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से शक्तिशाली हैं और विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं। इनमें बुद्धिजीवी, मीडिया, एनजीओ, सामाजिक-धार्मिक संगठन, कॉरपोरेट जगत, फिल्म-खेल जगत और आम लोग भी शामिल हैं।

पीएम केयर्स फंड ज्यादा पारदर्शी, लोकतांत्रिक और कार्यकुशल : कोरोना से लड़ाई में भारत की जीत-हार इस एनएसए की भूमिका पर भी काफी कुछ निर्भर है। हमारे यहां दो तरह के एनएसए हैं। एक जो नकारात्मक हैं और निहित स्वार्थवश हर चीज को शक की नजर से देखते हुए बाल की खाल निकालने में जुटे रहते हैं। मसलन कोरोना से उपजे हालात से निपटने के लिए सबसे जरूरी चीज है धन और उसका सम्यक आवंटन, जिसके लिए पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया। इस पर तत्काल ऐसे लोगों की आक्रामक प्रतिक्रिया शुरू हो गई। एक छद्म उदारवादी बुद्धिजीवी ने सवाल उठाया कि पीएम रिलीफ फंड के रहते इसकी क्या जरूरत है? एक याचिकाबाज वकील तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। जानना जरूरी है कि पीएम रिलीफ फंड के मुकाबले अपने गठन और कार्यप्रणाली में पीएम केयर्स फंड ज्यादा पारदर्शी, लोकतांत्रिक और कार्यकुशल है।

पीएम रिलीफ फंड में धन आवंटन का सर्वाधिकार सिर्फ पीएम को था : जवाहरलाल नेहरू द्वारा गठित पीएम रिलीफ फंड में जहां कांग्रेस अध्यक्ष और प्राइवेट सेक्टर का प्रतिनिधि भी सदस्य होता था, वहीं पीएम केयर्स फंड को प्राइवेट सेक्टर ही नहीं, राजनीति से भी दूर रखते हुए भाजपा या किसी भी दल के सदस्य को जगह नहीं दी गई। पीएम रिलीफ फंड में धन आवंटन का सर्वाधिकार सिर्फ पीएम को था, जबकि पीएम केयर्स फंड में यह काम प्रधानमंत्री के साथ गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री मिलकर करेंगे। यही नहीं, पुराने फंड की सारी देखरेख एक सचिव के हाथों थी, जबकि नए फंड का जिम्मा दस लोगों के एक एडवाइजरी बोर्ड और 13 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी के पास होगा। इसके अलावा नए फंड में 10 रुपये तक की राशि दान की जा सकती है। कहने की जरूरत नहीं कि पीएम केयर्स फंड हर लिहाज से बेहतर है।

पीएम के ताली-थाली बजाने के आह्वान का मजाक उड़ाना : एनएसए में मीडिया एक अन्य प्रभावशाली अभिकरण है, लेकिन मीडिया के एक तबके ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कमजोर ही करने की कोशिश की है। पहले तो मीडिया का एक खास हिस्सा लॉकडाउन पर ही नाक-भौं सिकोड़ता रहा, फिर डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों, पुलिस-प्रशासन, मीडिया आदि के उत्साहवर्धन और आभार प्रदर्शन करने के लिए पीएम के ताली-थाली बजाने के आह्वान का मजाक उड़ाना शुरू किया। देश की संकल्प शक्ति और एकजुटता को दिखाने के लिए दीया जलाओ कार्यक्रम की भी मीडिया के इस हिस्से ने खिंचाई की। कुछ ने तो आगजनी की फर्जी खबरें फैलाने से भी गुरेज नहीं किया। कुछ ऑनलाइन न्यूज पोर्टल भी खबरें तोड़-मरोड़ कर पेश करते रहे। विगत दिवस मुंबई में मजदूरों को रेल से घर ले जाने के इंतजाम की एक झूठी खबर की शुरुआत एक टीवी चैनल द्वारा की गई। अफसोस कि इस संकटकाल में भी मीडिया का यह हिस्सा घोर गैर जिम्मेदाराना काम कर रहा है।

सोशल मीडिया एनएसए का एक अन्य प्रमुख घटक है। इसकी भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। भारत में कोरोना संक्रमण की रोकथाम की कोशिशों के खिलाफ समुदाय विशेष को भड़काने-उकसाने के लिए टिकटॉक, यूट्यूब, वाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंचों पर बड़े पैमाने पर भड़काऊ वीडियो डाले जा रहे हैं। 30 हजार से अधिक वीडियो का विश्लेषण कर एक कंपनी वॉयजर इंफोसेक ने रिपोर्ट दी है कि कोरोना वायरस को लेकर गलत जानकारियों, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधी सलाहों के खिलाफ मजहब की आड़ में भड़काऊ सामग्री सोशल मीडिया पर परोसी जा रही है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस बारे में सोशल मीडिया कंपनियों को आगाह किया है।

बुद्धिजीऔर सेक्युलरिस्ट उनका बचाव करने में लगे : वी धार्मिक संगठन और धर्म गुरु भी प्रभावशाली एनएसए हैं। भारत में तो ये खासे असरदार हैं, लेकिन तब्लीगी जमात और उसके प्रमुख मौलाना साद की कोरोना संक्रमण फैलाने में जो खतरनाक भूमिका रही वह किसी से छिपी नहीं। देश के कई हिस्सों में जमातियों द्वारा डॉक्टर्स-नर्सों से बदसलूकी करने, उन पर हमले करने, इलाज में असहयोग करने, छिपने का काम किया जा रहा है। ये जमाती किस तरह उत्पात मचाए हुए हैं, इसे इंदौर, हैदराबाद, मुरादाबाद की घटनाएं बता रही हैं। अफसोस है कि अनेक तथाकथित बुद्धिजीवी और सेक्युलरिस्ट उनका बचाव करने में लगे हुए हैं। इस मामले में कई उलेमाओं के बयान ज्यादा जिम्मेदारी से भरे दिखे। जाहिर है कि एनएसए में नकारात्मक लोग ही नहीं हैं। मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सही सूचनाओं को लोगों तक पहुंचाने और जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहा है। इसी तरह अनेक सामाजिक संगठन वंचित तबकों के लोगों को भोजन और दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं। कुछ सेवाभावी लोगों ने तो कमजोर तबकों की मदद के लिए रातोंरात अपने को संगठित करने का काम किया।

इसी तरह विभिन्न धार्मिक संस्थाओं ने पीएम फंड में बड़ी राशि दान दी। कॉरपोरेट जगत भी पीछे नहीं है। टाटा समूह, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन और अन्य औद्योगिक घराने कोरोना से लड़ाई में कंधे से कंधा मिला रहे हैं। फिल्म और खेल जगत के कई सितारे भी हर संभव मदद कर रहे हैं। सबसे महती भूमिका देश की आम जनता निभा रही है। संकट की इस घड़ी में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से अरुणाचल तक के लोग एक साथ आ गए हैं और अपनी सामथ्र्य भर अपना योगदान दे रहे हैं। कोरोना से जारी लड़ाई को कमजोर कर रहे लोगों को समझ लेना चाहिए कि एक तो कोरोना वायरस विचारधारा, मजहब और दलीय निष्ठा नहीं देखता और दूसरे जनता उन्हें माफ नहीं करने वाली।

(लेखक दिल्ली विवि में प्रोफेसर हैं)