अश्विनी उपाध्याय। Ayodhya Ram Temple News भगवान राम ने अपनी यात्रा अयोध्या से शुरू की और रामेश्वरम होते हुए श्रीलंका में समाप्त किया। अयोध्या से निकलने के बाद भगवान राम ने तमसा नदी को पार किया जो अयोध्या से लगभग 20 किमी दूर है। उसके बाद वे प्रयागराज से लगभग 20 किमी दूर श्रंगवेरपुर पहुंचे जो निषादराज गुह का राज्य था। यहां गंगा तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। इस स्थान को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है। सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे। कुरई से आगे चलकर श्रीराम प्रयाग स्थित भारद्वाज आश्रम पहुंचे। संगम स्नान और ऋषि भारद्वाज से मिलने के बाद श्रीराम ने यमुना नदी को पार किया और फिर चित्रकूट स्थित वाल्मीकि आश्रम गए। चित्रकूट में ही भगवान राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ गए थे और प्रभु श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौट गए। चित्रकूट के पास ही सतना स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम है।

महर्षि अत्रि अपनी पत्नी सती अनुसूइया के साथ चित्रकूट के तपोवन में रहते थे, लेकिन सतना में –रामवन- नामक स्थान पर भी उनका आश्रम था और श्रीराम वहां ठहरे थे। चित्रकूट से निकलकर श्रीराम दंडकारण्य वन गए जो वर्तमान में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश का हिस्सा है। ओडिशा की महानदी के पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। आंध्र प्रदेश का भद्राचलम इसी दंडकारण्य वन का हिस्सा है। गोदावरी के तट पर बसा यह शहर सीताराम मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है और भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान कुछ दिन इस पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। दुनिया भर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

दंडकारण्य के विभिन्न आश्रमों में रहने के बाद भगवान श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए जो नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहां पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। भगवान राम ने रावण के भाई खर, दूषण और त्रिशिरा का यहीं पर वध किया था। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है। यहीं पर मारीच के सहयोग से रावण ने सीता माता का हरण किया था। नासिक से लगभग 55 किमी दूर ताकेड गांव में –सर्वतीर्थ- नामक स्थान आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ पर हुई जो इगतपुरी के ताकेड गांव में स्थित है। यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया था। भगवान राम ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार किया था, इसीलिए इस स्थान को सर्वतीर्थ कहा जाता है।

आंध्र प्रदेश के भद्राचलम में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है पर्णशाला। यहां पर अति प्राचीन सीताराम मंदिर है। सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद माता सीता की खोज में भगवान राम तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में गए। मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए भगवान राम ऋष्यमूक पर्वत पर गए और हनुमान व सुग्रीव से भेंट की। यहीं पर उन्होंने बाली का वध किया। रास्ते में पम्पा नदी के पास मतंग ऋषि के आश्रम में गए जहां शबरी रहती थी। जिस पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था उसे अब -मतंग पर्वत- कहा जाता है। मतंग ऋषि हनुमानजी के गुरु थे। -पम्पा- तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है और इसी नदी के किनारे वर्तमान हम्पी बसा हुआ है। -रामायण- में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है।

हनुमान और सुग्रीव से मिलकर श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की तटरेखा लगभग एक हजार किमी तक विस्तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाक स्ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला, लेकिन बाद में पता चला कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित नहीं है, इसलिए सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया। रामेश्वरम समुद्र तट शांत है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है। तीन दिन की खोजबीन के बाद सेना ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ निकाला, जहां से श्रीलंका पहुंचा जा सकता था। नल और नील की मदद से धनुषकोडी से लंका तक पुल निर्माण किया गया। धनुषकोडी रामेश्वरम के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है और श्रीलंका से करीब 18 मील पश्चिम में है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है क्योंकि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था, उसका आकार धनुष के समान है। यह मन्नार क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

वाल्मीक रामायण के अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। -नुवारा एलिया- पहाड़ियों से लगभग 90 किमी दूर बांद्रवेला की तरफ ऊंची पहाड़ियों के मध्य सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां के पुरातात्विक अवशेष की कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है। श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका तथा खंडहर हो चुके विभीषण महल की पुरातात्विक जांच से रामायण काल की पुष्टि होती है। आज भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा वाल्मीकि रामायण में वर्णित है।

भगवान राम ने उत्तर से दक्षिण को जोड़ा था, लेकिन हमारे राजनेताओं ने जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के आधार पर भारत को विभाजित कर रखा है, इसलिए वनवास के दौरान भगवान श्रीराम जिन प्रमुख स्थानों पर रुके थे, वहां के निवासियों को अयोध्या अवश्य बुलाना चाहिए। भगवान राम ने 14 वर्ष लगातार पैदल यात्रा की थी, जो वर्तमान पीढ़ी के लिए संभव नहीं है, इसलिए अयोध्या से धनुषकोडी तक एक -राम वन गमन राजमार्ग- बनाना चाहिए। इससे देश की एकता और अखंडता ही नहीं मजबूत होगी, बल्कि सनातन विरासत को सहेजने में भी मदद मिलेगी।

[प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय]