आरके सिन्हा। देश में पिछले दो महीने से बिजली-कोयले की कमी होने की बात कही जा रही है। हालांकि आंकड़े कुछ अलग ही हकीकत बताते हैं। आज की तारीख में बिजली संयंत्रों के पास 2.02 करोड़ टन कोयला है, जो नौ दिनों के लिए पर्याप्त है। इसके अलावा 6.7 करोड़ टन कोयला आपूर्ति के विभिन्न चरणों में है। सवाल है कि तब कुछ लोगों द्वारा देश में कोयले-बिजली की किल्लत का माहौल क्यों बनाया जा रहा है? इसके पीछे क्या मंशा हो सकती है? इसको हवा-पानी उन राज्यों में अधिक मिल रहा है, जहां पर कोयले के सर्वाधिक भंडार हैं। जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, बंगाल और ओडिशा। इन सभी राज्यों में गैर-भाजपाई सरकारें हैं। बिजली की इस किल्लत के बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अर¨वद केजरीवाल ने एक नया विमर्श छेड़ा है।

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली कैबिनेट ने फैसला लिया है कि एक अक्टूबर, 2022 से दिल्ली में बिजली पर सब्सिडी केवल उन्हीं लोगों को मिलेगी, जो इसे लेना चाहेंगे। यानी बिजली पर छूट अब वैकल्पिक होगी। इस योजना के तहत लोगों के पास यह विकल्प होगा कि अगर वे चाहें तो अपनी सब्सिडी को त्याग सकते हैं। उन्होंने इससे मिलती-जुलती बात तब भी कही थी जब डीटीसी की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्र सुविधा की घोषणा की गई थी। तब कहा गया था कि जो महिलाएं टिकट लेना चाहें वे ले सकती हैं। डीटीसी बसों में सफर करने वाली महिलाओं से पूछ लीजिए कि क्या वे टिकट लेती हैं? अधिकतर का उत्तर नकारात्मक ही मिलेगा।

देश की प्रगति में महाराष्ट्र एक अहम स्तंभ रहा है। वहां भी इस समय बिजली संकट गहराता जा रहा है। इस राज्य में ऐसी स्थिति का उत्पन्न होना अफसोसजनक है। दरअसल सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादक कंपनियों (जेनको) के 7,918 करोड़ रुपये के बकाया के कारण कई राज्यों, विशेष रूप से महाराष्ट्र, राजस्थान और बंगाल को कोयले की आपूर्ति कम हुई है। ऐसे में ये कोयले की कमी का रोना तो रो रहे हैं, पर यह नहीं बता रहे कि जेनको का बकाया धन भुगतान क्यों नहीं कर रहे? जबकि इन्होंने जेनको से बिजली खरीद कर उसे उपभोक्ताओं को दोगुने दाम तक में बेच दिया और ज्यादातर पैसा वसूल कर लिया है। इसके बाद भी ये राज्य बिजली खर्च कर रहे हैं और भुगतान भी नहीं कर रहे हैं। जब ये बिजली कंपनियों को बकाया भुगतान नहीं करेंगे तो उनके पास अपना काम करने और कोयला खरीदने के लिए आवश्यक धन कहां से आएगा? बिजली क्षेत्र कैसे सुधरेगा? इस संबंध में महाराष्ट्र सरकार तो सुप्रीम कोर्ट में केस तक हार चुकी है। उसे हर हाल में बिजली कंपनियों को भुगतान करना है।

दरअसल इन राज्यों को कोयले की कमी की जानकारी कई महीनों पहले से थी, लेकिन सभी चुप थे। अब केंद्र सरकार विरोधी माहौल बनाने के लिए इस कमी को टूलकिट की तरह इस्तेमाल करते प्रतीत हो रहे हैं। जब सारे पैंतरे आजमाकर हार गए हैं तो मूलभूत आवश्यकताओं की कमी करके ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ना चाहते हैं, ताकि देश का माहौल बिगड़े। इसके पीछे धारणा यही है कि अशांति भड़कने से कोर वोटर भाजपा से दूर होगा, जैसा वोटर का स्वभाव है। साथ ही जो नया वोटर जुड़ा है वह भी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी पर निराश होकर छिटक जाएगा।

उधर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान आगामी एक जुलाई से हर घर में प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा कर चुके हैं। इससे राज्य सरकार के वार्षिक बिजली सब्सिडी बिल में करोड़ों रुपये का इजाफा होगा। इस कारण पहले से ही कर्ज में डूबी पंजाब स्टेट पावर कारपोरेशन लिमिटेड की हालत खराब ही होगी। इतना सब कुछ होने पर भी पंजाब सरकार मुफ्त की बिजली देने के अपने वादे से पीछे नहीं हट रही। अब तो उसे अपने थर्मल पावर प्लांट को चलाने के लिए आयातित कोयले की खरीद के लिए और भारी खर्च करना होगा, क्योंकि केंद्रीय बिजली मंत्रलय ने राज्यों को कोयला आयात करने की सलाह दी है।

बिजली और कोयला संकट के इस कोलाहल के बीच बीते दिनों कोयले से लदी मालगाड़ी के 13 डिब्बों के पटरी से उतरने की खबर भी वास्तव में बहुत गंभीर है। पिछले दिनों रेलवे के सबसे व्यस्त मार्गो में से एक दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग पर इटावा जिले में यह हादसा हुआ। रेलवे को इस हादसे की गहराई से छानबीन करनी चाहिए कि कोयले से लदी मालगाड़ी के डिब्बे पटरी से कैसे उतर गए। इस तरह की घटना पहले तो कभी नहीं हुई। इस हादसे के कारण डिब्बे में रखा कोयला पटरियों पर बिखर गया और कई पटरियां टूट गईं। याद नहीं आता कि इससे पहले कभी डेडिकेटेड फ्रेट रूट पर इस तरह का हादसा हुआ हो। गौर करें कि रेलवे ने बिजली की बढ़ती खपत और कोयले की कमी को देखते हुए अगले एक महीने तक 670 पैसेंजर ट्रेनों को रद कर दिया है। साथ ही कोयले से लदी मालगाड़ियों की औसत संख्या भी बढ़ा दी गई है। तब यह रेल हादसा एक बड़ी साजिश की तरफ भी संकेत करता है।

यह सभी को मालूम है कि गर्मियों में बिजली की खपत काफी बढ़ जाती है। ऐसे में इस दौरान बिजली की कमी या कटौती होना कोई बड़ी या नई बात नहीं। आज से कुछ साल पहले तक हमने राजधानी दिल्ली में रोज कई घंटों की बिजली कटौती देखी है। दिल्ली में बिजली संकट केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकारों के समय खत्म होने लगा था। सरकारें समझ लें कि अब दुनिया बदल गई है।अब अफवाह फैलाकर जनता को भ्रमित नहीं रख सकते।

(लेखक स्तंभकार और राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं)