डॉ. महेश भारद्वाज। Survival Of The Fittest: बीते कुछ माह के दौरान हमारी जीवनशैली में व्यापक बदलाव आ चुका है। बेशक कोरोना वायरस जनित इस बीमारी ने समूची दुनिया को पिछले चंद माह में ही ऐसा बहुत कुछ सिखा दिया है, जिसकी जरूरत तो बहुत थी, लेकिन उसे सीखने की हमें कभी फुर्सत नहीं थी। आज आलम यह है कि इस बीमारी का तोड़ तो अभी तक नहीं निकल पाया है, लेकिन जीने की राह तलाशने में सभी लग गए हैं।

अभी तो घूम फिर कर डॉक्टरों द्वारा भी यही बताया जा रहा है कि जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कोरोना वायरस से बलशाली है, यदि यह वायरस उनके शरीर के संपर्क में आ भी गया तो उसे परास्त होना पड़ेगा। इसका मतलब हुआ कि इस वायरस के बहाने सरवाइवल ऑफ फिटेस्ट यानी योग्यतम की उत्तरजीविता का सिद्धांत फिर से प्रासंगिक हो चला है। लिहाजा यह तो मान ही लीजिए कि कोरोना हो या कोई अन्य बीमारी, स्वस्थ्य बने रहने के लिए हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना सबसे जरूरी है और इसकी मजबूती की कोई आखिरी सीमा नहीं है, बल्कि जब तक जीवन है, तब तक उत्तरोत्तर इसे बढ़ाते जाना है।

जहां तक इंसानी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की तरकीब का सवाल है तो सोशल मीडिया के दौर में इसके ज्ञान की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत है तो उसे जांच-परख कर इस्तेमाल करने की। चूंकि संकट की इस घड़ी में आशा की किरण योग्यतम की उत्तरजीविता यानी बलशाली की जीत से ही दिखाई दे रही है, लिहाजा इस सिद्धांत की प्रासंगिकता से जुड़े कुछ अन्य पहलुओं पर भी विचार करना उपयुक्त रहेगा।

‘जान है तो जहान है’ की लोकोक्ति के केंद्र में यह हमारा शरीर ही है। कुदरत की यह रचना अपने मूलरूप में काफी कुछ आत्मनिर्भर है। कुछ लोगों के शरीर इसकी जीती जागती मिशाल हैं और वे बिना बाहरी हस्तक्षेप के सही सलामत रहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे कुछ ऐसा हुआ कि काफी लोगों के शरीर किसी न किसी प्रकार की असावधानी के चलते अपने अस्तित्व के लिए बाहरी तत्वों, जैसे पूरक विटामिन, प्रोटीन और दवाओं पर आश्रित हो चले हैं। सबसे पहले ऐसे लोगों को इन बाहरी सहायक तत्वों पर अपने शरीर के आश्रित होने को घटाने पर ध्यान देना चाहिए। उत्तम जीवन जीने के आदर्श की सिद्धि के लिए बाहरी कारकों पर निर्भरता कम करने का लक्ष्य सवरेपरि है। प्रत्येक व्यक्ति को जितना जल्दी और जितनी मात्र में संभव हो सके अपने शरीर और जीवन को आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर बढ़ाना चाहिए।

नई स्थितियों से निपटने के लिए मार्गदर्शन एवं सहायता की आवश्यकता जीवन में किसी न किसी स्तर पर किसी न किसी मात्र में हर किसी को होती है। इनकी जरूरत परिवार में बच्चों के साथ-साथ समाज के कमजोर व्यक्ति एवं तबके को भी होती है। जाहिर है बीमारी की स्थिति में डॉक्टरी मार्गदर्शन और हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है तथा शरीर में किसी चीज की कमी को पूरा करने के लिए बाहरी पोषक तत्वों की। जरूरी मार्गदर्शन और बाहरी सहायता की आवश्यकता और अहमियत को स्वीकारते हुए यहां बताने की कोशिश यह की जा रही है कि इन्हें लंबे समय तक जीवन की बैसाखी बनाए रखने से बचने के प्रयास होने चाहिए और इनका उपयोग आत्मनिर्भरता के परम लक्ष्य को हासिल करने के लिए किया जाना चाहिए। प्रश्न है कि एक व्यक्ति को अपनी दुर्बलता दूर करने के लिए कब तक बाहरी पोषक तत्वों पर निर्भर रहना चाहिए? रोगी को निरोगी होने के लिए कब तक डॉक्टर और दवाइयों के भरोसे रहना चाहिए? बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कब तक माता-पिता की सहायता और मार्गदर्शन पर आश्रित रहना चाहिए? समाज के कमजोर तबके को अपने उत्थान के लिए कब तक सामाजिक और सरकारी संरक्षणों की ओर देखते रहना चाहिए आदि। इस प्रकार के सवालों पर ध्यान आवश्यक है।

कोरोना से लड़ने में स्वच्छता हमारी बहुत मदद कर रहा है और इसके लिए प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया स्वच्छता अभियान मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। साफ-सफाई और व्यक्तिगत स्वच्छता की आदत डालने की दिशा में जो प्रगति हुई है वह निश्चित ही इस लड़ाई में हमारी बहुत बड़ी सहायता कर रही है। इसी का नतीजा है कि भारत जैसे व्यापक असमानताओं और विशाल आबादी वाले देश में भी स्वच्छता की इमारत के लिए जरूरी मजबूत बुनियाद तैयार होने को है। इस स्तर की वैश्विक महामारी अपेक्षित संसाधनों के प्रबंधन की दृष्टि से दुनिया के तमाम मुल्कों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए भी परीक्षा की घड़ी है। जाहिर है चिकित्सा सुविधाओं एवं अन्य संसाधनों की कमी को कठिन समय में कुशल प्रबंधन द्वारा ही संभाला जा सकता है। जिन देशों ने ऐसी विपत्तियों को ध्यान में रखकर आवश्यक तैयारियां कर रखी थीं, उनके लिए ऐसी स्थिति से निपटना थोड़ा आसान जरूर हुआ है।

गहराई से देखने पर कोरोना जैसी त्रसदियां प्राकृतिक असंतुलन तथा कुदरत के साथ छेदछाड़ की हमारी नूरा-कुश्ती से भी जुड़ी मिलेंगी। इसलिए इस त्रसदी ने पर्यावरण और इसके संरक्षण के प्रति हमारे नजरिये में बड़े बदलाव लाने के लिए भी घंटी बजाई है। कोरोना के चलते उभरी मन:स्थिति में ऐसे प्रश्नों पर विचार न केवल हमारे शेष जीवन के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बेहद जरूरी है।

वरिष्ठ अधिकारी, भारतीय पुलिस सेवा