नई दिल्ली [डॉ.अश्विनी महाजन]। वर्तमान महामारी ने विश्व की अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था में भी इससे दस लाख करोड़ रुपये का नुकसान अनुमानित है। हालांकि अनलॉक के शुरुआती दौर से ही कल कारखाने, दुकानें, सरकारी और निजी कार्यालय आदि खुलने लगे, यद्यपि अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।

अर्थव्यवस्था में गिरावट का सबसे बड़ा कारण कोविड-19 की महामारी है इसमें संदेह नहीं, किंतु कुछ और भी कारण हैं जिन्हें नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। विमुद्रीकरण और जीएसटी लागू होने के बाद जीडीपी में लगातार गिरावट हुई। पिछले वित्त वर्ष में विकास दर पांच प्रतिशत से भी कम था जो बीते कई वर्षो के औसत से कम था। विश्वव्यापी आर्थिक सुस्ती, मांग में गिरावट, निवेश में कमी, विदेशी व्यापार में बड़े देशों द्वारा संरक्षण की नीति के कारण बढ़ते प्रतिबंध, अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर और चीन की डंपिंग नीति आदि विकास की गति के अवरोधक थे।

महामारी के कारण लॉकडाउन से मांग और पूर्ति दोनों पर लगाम लग गया, आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गईं। महामारी से लड़ने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने व आत्मनिर्भर बनाने के लिए पिछले कुछ महीनों में सरकार एवं रिजर्व बैंक ने जो कदम उठाए हैं उनका सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है, किंतु गति धीमी है, लिहाजा राह आसान नहीं है। 

आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के लिए भारत सरकार और रिजर्व बैंक ने अब तक 21.76 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है जो देश की जीडीपी का लगभग दस प्रतिशत है। वर्तमान हालात से पैदा संकट को अवसर में बदलने की ओर यह एक महत्वपूर्ण कदम है। यद्यपि करों द्वारा राजस्व में आई कमी को देखते हुए इतनी बड़ी राशि का प्रबंध आसान नहीं होगा, बजटीय घाटा भी बढ़ेगा। मांग बढ़ाने, स्वदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने, उत्पादन में वृद्धि और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए अर्थव्यवस्था में अधिक धन चलन में बढ़ाना आवश्यक है। कुछ नीतिगत निर्णय भी लिए गए हैं जिनका दूरगामी असर होगा।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का आंशिक निजीकरण होगा। लघु और मध्यम उद्योगों को बाहरी कंपनियों की स्पर्धा से बचाने के लिए 200 करोड़ रुपये के टेंडर के सामान सरकार स्वदेशी उत्पादकों से ही लेगी। विदेश व्यापार में 18 वर्षो बाद जून 2020 में पहली बार ट्रेड सरप्लस की स्थिति बनी। पिछले एक वर्ष में निर्यात में 12 प्रतिशत की कमी आई, जबकि आयात में 47 प्रतिशत की कमी हुई।

कच्चा तेल, पेट्रोलियम, सोना चांदी और औद्योगिक कच्चे माल एवं मशीनरी आदि के आयात में कमी के कारण यह संभव हुआ। इसका दूसरा पहलू भी है जो अर्थव्यवस्था में मांग की कमी को दर्शाता है। लॉकडाउन के चलते आवश्यक वस्तुओं को छोड़ सभी पदार्थो की मांग में कमी आई है।

किसान कोरोना संकट के समय अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े सहायक सिद्ध हुए। फसलों की बोआई पर कोरोना का कोई असर नहीं हुआ। मानसून की अच्छी बारिश से खाद्यान्नों के उत्पादन में आशातीत बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। रोजगार देने में भी कृषि क्षेत्र ही आगे रहा, करोड़ों प्रवासी मजदूरों को गांवों में ही शरण मिली। मनरेगा और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में लाखों मजदूरों को काम मिला।

कृषि क्षेत्र का देश की सकल आय में योगदान भले ही 15 प्रतिशत के करीब ही है, किंतु 50 प्रतिशत से अधिक आबादी अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर है। निर्यात में भी कृषि क्षेत्र का बड़ा योगदान रहा है। विदेशी निवेश बढ़ने की भी संभावना बढ़ी है। विकसित देशों की अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन में अपने व्यापार समेटने में लगी हैं, और भारत में निवेश की संभावनाएं तलाश रही हैं। भारत के लिए विदेशी कंपनियों को आकर्षति करने का यह सुनहरा अवसर है। [असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]