हृदयनारायण दीक्षित। काशी स्थित ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने की खबर सामने आते ही देश में व्यापक बहस छिड़ गई। इस बहस ने कई बार अप्रिय रूप धारण किया। शिव भारतीय लोकमन के निराले देवता हैं। शिव में जीवन जगत के सभी आयाम हैं। उनका उल्लेख ऋग्वेद में है, जिसके अनुसार ‘हम नमस्कारों से रूद्र की उपासना करें।’ यजुर्वेद के 16वें अध्याय में उन्हें असीम सर्वव्यापी बताया गया है, ‘वह रुद्र शिव हैं। प्रथम प्रवक्ता हैं। नीलकंठ हैं। सभारूप हैं। सभापति हैं। सेना हैं तो सेनापति भी वही हैं। वही वायु प्रवाह, सूर्य, चंद्र और प्रलय में हैं।’ सर्वव्यापी शिव की उपासना लिंग प्रतीक रूप में होती रही है। शब्द लिंग का अर्थ प्रतीक है। पूरा भारतीय वांग्मय लिंग का अर्थ प्रतीक बताता है, लेकिन गैर-जानकार और दुराग्रही लोग और खासकर कुछ मुल्ला-मौलवी लिंग को प्रजनन अंग बता रहे हैं। एक कथित इस्लामी उपदेशक ने टीवी बहस में घोर अपमानजनक बयान दिया। उन्होंने शिवलिंग को प्राइवेट पार्ट बताते हुए कहा कि ‘हिंदू मूर्तिपूजा और प्रजनन अंग की उपासना के अभ्यस्त हैं।’ इंटरनेट मीडिया में भी एक वर्ग द्वारा ऐसी ही घटिया और फूहड़ टिप्पणियां की गईं। इससे भारत का मन आहत हुआ।

भारतीय ज्ञान परंपरा में लिंग का अर्थ प्रतीक है। भारत रत्न डा. पांडुरंग वामन काणो ने ‘धर्मशास्त्र का इतिहास’ में शिवलिंग को शिव प्रतीक बताया है। दार्शनिक हीगल ने ‘फिलासफी आफ फाइन आर्ट’ में लिखा है, ‘प्रतीक एक विशेष प्रकार का चिह्न होता है। इसके प्रति भाव जुड़ता है। तब प्रतीक बनता है।’ शिवलिंग प्रतीक में हिंदुओं का गहन आस्तिक भाव है। जुंग प्रतिष्ठित मनोविज्ञानी थे। उन्होंने ‘कंटिब्यूशंस टू एनालिटिकल साइकोलजी’ में प्रतीक निर्माण को सांस्कृतिक कर्म बताया है। लोकमान्य तिलक ने भी ‘गीता रहस्य’ में प्रतीक का अर्थ बताया है, ‘प्रतीक यानी प्रति-इक। प्रति का अर्थ प्रत्यक्ष-हमारी ओर और इक का अर्थ है-झुका हुआ। प्रतीक हमें प्रिय लगने वाले किसी रूप या आकार का विकल्प है। सौंदर्यशास्त्र के विद्वान कुमार विमल ने लिखा है, ‘उपासना के क्षेत्र में उपास्य पर चिह्न, पहचान, अवतार, अंश या प्रतिनिधि के तौर पर आई हुई नाम रूपात्मक वस्तु को प्रतीक कहा जाता है।’ शिवलिंग शिव प्रतीक है। प्रतीक मूल रूप या विचार का प्रतिनिधि है। जनतंत्र में सबकी भागीदारी आदर्श मानी जाती है, लेकिन संपूर्ण जन प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं कर सकते। वे प्रतिनिधि चुनते हैं। प्रतिनिधि सभी जनों के प्रतीक हैं।

शिव उपासना का क्षेत्र एशिया के बड़े भाग तक विस्तृत रहा है। शिव का सामान्य अर्थ कल्याण है। देवरूप शिव करोड़ों की आस्था हैं। वह वैदिक काल के पहले से उपास्य हैं। वह प्रत्यक्ष नहीं देखे जा सकते। इसीलिए उनका प्रतीक गढ़ा गया शिवलिंग। लिंग शब्द का प्रयोग सूक्ष्म शरीर के लिए भी हुआ है। शंकराचार्य ने ईशावास्योपनिषद के भाष्य (मंत्र 17) में लिंग का प्रयोग सूक्ष्म शरीर के अर्थ में किया है। यह प्रार्थना मृत्यु के समय की है। शंकराचार्य का भाष्य है,‘मेरी प्राणवायु स्थूल शरीर को त्यागकर अमर वायु से मिले। कर्म और ज्ञान से संस्कारित लिंग शरीर बाहर निकले। स्थूल शरीर भस्म हो जाए।’ भारतीय ज्ञान परंपरा में कई शरीर माने गए हैं। पहला प्रत्यक्ष स्थूल शरीर है। इसके भीतर पांच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेद्रियों, पांच प्राण, मन और बुद्धि 17 तत्वों से बना लिंग शरीर है। लिंग शरीर पुनर्जन्म में नया स्थूल शरीर पाता है।

हिंदू धर्म कोश’ मे भी लिंग शब्द का अर्थ प्रतीक अथवा चिह्न बताया गया है। लोक कल्याण को व्यक्त करने के लिए स्वास्तिक चिह्न है। इसी तरह राष्ट्रध्वज राष्ट्रभाव का प्रतीक है। शिव सर्वव्यापी हैं। विराट हैं। ध्यान उपासना में विराट को समेटना कठिन है। प्रतीक के माध्यम से ध्यान और उपासना में सरलता होती है। संपूर्ण अस्तित्व का भी एक प्रत्यक्ष स्थूल शरीर होता है। संसार इस विराट अस्तित्व का प्रत्यक्ष शरीर है। उपासना की गहन अनुभूति में सृष्टि का कण-कण शिव हो जाता है, लेकिन उपासना के लिए विग्रह/प्रतीक की आवश्यकता होती है। पूर्वजों ने लिंग/प्रतीक विग्रह की कल्पना की। लिंग प्रतीक को पत्थर की वेदिका या अरघे पर प्रतिष्ठित करते हैं। प्रतीक को अघ्र्य देते हैं। अघ्र्य का अर्थ श्रद्धापूर्ण स्वागत है। यह उपासना का भाग है। लिंग जनेंद्रिय नहीं है। जनेंद्रिय के लिए संस्कृति मे शिश्न शब्द है। इसकी उपासना निंदित थी, लेकिन अज्ञानता से ग्रस्त लोग यह सब जानने-समझने को तैयार नहीं।

मार्शल ने हड़प्पा खोदाई से प्राप्त मूर्तियों के आधार पर लिखा है कि ‘इससे निश्चित रूप से प्रमाणित होता है कि लिंग पूजा का उद्भव भारत में हुआ।’ ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद में शिव उपासना के उल्लेख हैं। भारत में वैदिक धर्म और रिलीजन, मजहब के विश्वासी लोगों का सह-अस्तित्व है। यहां प्रत्येक नागरिक को विश्वास और अंत:करण की स्वतंत्रता है। सब अपने-अपने विश्वास के अनुसार भारतीय रस छंद में आनंदित रह सकते हैं। सबको अपनी आस्था के साथ दूसरों के विश्वास का भी सम्मान करना चाहिए।

हिंदू धर्म का विकास वैदिक दर्शन से हुआ। इसमें गलती खोजने वाले प्राचीन दर्शन के तत्व नहीं जानते। दारा शिकोह इस्लाम के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने उपनिषद दर्शन का ज्ञान अर्जित किया। धर्म, पंथ, मजहब और रिलीजन की जानकारी से सभी पक्षों का ज्ञान मिलता है। हिंदू धर्म के अनुयायी को सर्वपंथ समभाव में कठिनाई नहीं होती, लेकिन अन्य विश्वासी अपने मजहब को ही श्रेष्ठ मानते हैं। हिंदू मूर्तिपूजक हैं। इस्लाम में मूर्ति पूजा निषेध है। इस्लाम के अनुयायी मूर्तिध्वंस का विचार हिंदुओं पर जबरदस्ती नहीं थोप सकते। मध्यकाल में हजारों मंदिर ध्वस्त किए गए। आधुनिक भारत इसे स्वीकार नहीं कर सकता। दुर्भाग्य से यहां आस्था के मध्य स्वस्थ संवाद नहीं है।

भारतीय मनीषा ने शिव को हरेक रूप में देखा है। भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में उन्हें नृत्य का प्रथम रचनाकार बताया है। भारतीय दर्शन में जो सुंदर है, वह शिव है, सत्य है। अथर्ववेद में शिव-शक्ति को अनेकश: नमन है-हमारी ओर आती शिवशक्ति, हमारी ओर से लौटती शिवशक्ति, हमारे निकट उपस्थित शिवशक्ति को सब तरह नमस्कार है। बावजूद इसके कुछ लोग शिवलिंग उपासना पर ओछी टिप्पणी करते हैं। ऐसा करके वे सर्वपंथ समभाव पर आघात तो करते ही हैं, अपनी अज्ञानता का भोंडा प्रदर्शन भी करते हैं।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)