जिद पर अड़ा चिपकू वायरस

[ संतोष त्रिवेदी ]: कोरोना जी के जाने की अभी तक कोई भनक हमारे कानों में नहीं पड़ी है। हालांकि उनके ‘सामाजिक’ होने को लेकर रोज नए रहस्य खुल रहे हैं। एक ताजा शोध बताता है कि वायरस जी में ‘मिलनसारिता’ का नायाब गुण मिला है। ये जिनकी देह में सक्रिय होते हैं, उसमें सामने वाले ‘देहधारी’ से मिलने की अजब बेचैनी हो उठती है। ये महाशय उससे मिलने के लिए ‘धारक’ को उकसाते रहते हैं। या यूं कह लीजिए कि सामने वाले की ओर धकेलते हैं। इसलिए अगर इस तरह की ‘मिलाई’ से बीमारी की भलाई हो रही है तो इसका श्रेय केवल वायरस जी को जाता है, ‘धारक’ को नहीं। इसका मतलब है कि ये अपनी सक्रियता से अनूठे किस्म का ऐसा प्रेम-जाल फैलाते हैं कि सामने वाला मास्क-विहीन हो जाता है। इस लिहाज से कोरोना जी बड़े ही शातिर और दिलफेंक किस्म के निकले हैं। भले ही इनकी यह अदा किसी और की जान ले ले! और जान का क्या है, कोरोना जी नहीं लेंगे तो दूसरे तमाम आम आदमी की जान के पीछे पड़े हैं। बहरहाल इस बहाने जान निकलेगी तो सरकार की ‘गिनती’ में तो आएगी!

वैज्ञानिक हार मानने को तैयार नहीं, कोरोना भी ट्रंप चचा की तरह जीत की जिद पर अड़े

उधर वैज्ञानिक हार मानने को तैयार नहीं और इधर कोरोना जी भी ट्रंप चचा की तरह जीत की जिद पर अड़े हैं। देर-सबेर बीमारी का टीका तो बन जाएगा, पर जिद का नहीं। वैज्ञानिक ट्रायल पर ट्रायल कर रहे हैं, पर कोरोना जी का अभी ‘ह्युमन ट्रायल’ पूरा नहीं हुआ है। पहले नाक से, फिर आंखों और मुंह से इनकी घुसपैठ की खबरें आईं। बाद में पता चला कि ये महोदय इतने कारसाज हैं कि हवा और कान से भी मानव-देह तोड़ सकते हैं। कभी-कभी तो ये भगवान जी से भी ऊंची चीज लगने लगते हैं। तुलसी बाबा ने ईश्वर के बारे में लिखा है, ‘बिनु पद चलइ, सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।’ अब लगभग ऐसे ही ‘लच्छन’ वायरस जी के भी लगते हैं। वे रंग-रूप-भेष बदलकर अपने चाहने वालों से मिल रहे हैं। इससे जाहिर है कि इनके अंदर ‘मिलनसारिता’ का कितना बड़ा ‘डोज’ है! कुछ सरकारों का मानना है कि कोरोना जी ‘निशाचर’ हैं। इन्हें रात में ज्यादा दिखता है, क्योंकि ये चमगादड़ की पैदाइश हैं। इसलिए रात में कफ्र्यू की मुनादी कर दी गई है। वैसे भी जब कोरोना जी को दिन-दहाड़े सबसे ‘मिलने’ की ‘गाइड-लाइन’ बन चुकी है तो इन्हें रात-बिरात मुंह मारने की जरूरत ही क्या?

कोरोना जी ने समाज के अलावा साहित्य में भी गंभीर दखल दिया

कोरोना जी ने समाज के अलावा साहित्य में भी गंभीर दखल दिया है। कविवर पैदल तो हुए ही भावहीन भी हो गए। हमें तो शुरुआत से ही कोरोना जी प्रेम-शत्रु लगे थे। इनके रहते हर खूबसूरत चेहरे को मुए मास्क में कैद होना पड़ा। ‘शारीरिक-दूरी’ और ‘मुंहबंदी’ जैसे आदिमकालीन टोटके तो प्रेम-पुजारियों के लिए कहर बनकर टूटे हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद उम्मीद थी कि हसीन चेहरे भी बंद दरवाजों से बाहर झांकेंगे, पर तौबा तौबा। इसके लिए जुर्माने तक की नौबत आ गई। ऐसे में कोई मुहब्बत करे भी तो कैसे? आशिक और सिरफिरे लोग बेरोजगार बैठे हैं, जबकि रोमांटिक कवि और शायर बेजार हैं। उन्हें अब ‘र्मैंचग-मास्क’ से प्रेरणा लेनी पड़ रही है। कोरोना जी की तीसरी-चौथी लहर के बीच कविवर के दिल की लहर कहीं गुम हो गई है।

कोरोना जी की मारक क्षमता तब और बढ़ जाती है जब वह ‘राजधानी-रिटर्न’ हों

कोरोना जी के प्रभाव की मारक क्षमता तब और बढ़ जाती है जब वह ‘राजधानी-रिटर्न’ हों! सत्ता और साहित्य के वायरस को लादे जब ये सुदूर स्थानों पर पहुंचते हैं तो वहां भी सरकारों के मुंह में पड़े ताले खुलने लगते हैं। राजधानी से लौटा सामान्य आदमी एक खतरनाक वायरस में तब्दील हो जाता है। इसलिए उसकी जांच-पड़ताल सब जगह हो रही है। सरकारों का मानना है कि वह एक यात्री नहीं, स्वर्गधाम का एजेंट भी हो सकता है। हमारे यहां ऐसे लोगों की संख्या अनगिनत है, जो परलोक सुधारने के लिए अपना ‘लोक’ बिगाड़ रहे हैं। ऐसे लोग ‘स्र्विगक-सुख’ पाने के लिए मरे जा रहे हैं। उनमें मुक्ति की इतनी तीव्र कामना है कि वे बाजारों,बारातों और रेलगाड़ियों में उमड़ रहे हैं। इस बीच देश के दरवाजे पर चार-पांच ‘वैक्सीनें’ दस्तक दे रही हैं। इससे भी उनका हौसला बढ़ा है। इससे यही साबित होता है कि वायरस जी का आखिरी ठिकाना स्वर्ग ही है। उम्मीद है, जल्द ही ये ‘स्वर्गवासी’ भी होंगे।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]