[ अवधेश कुमार ]: महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक (एमएससीबी) घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा राकांपा अध्यक्ष शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार सहित बैंक के 70 पूर्व पदाधिकारियों के खिलाफ मनी लांड्रिंग और अन्य मामलों में मुकदमा दर्ज किए जाने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में तो हंगामा मचा ही है, देश में भी इसे बड़ा मुद्दा बनाया गया है। शरद पवार का नाम नहीं आता तो यह देशव्यापी चर्चा का विषय नहीं होता। अजीत पवार का नाम इस घोटाले में पहले से चल रहा था। इसलिए उनके नाम पर पार्टी अवश्य विरोध करती, लेकिन यह इतना बड़ा राजनीतिक मामला नहीं बनता। किसी बड़े नेता पर जब भी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है तो उसे हमेशा राजनीतिक रंग दिया जाता है। इन दिनों महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है इसलिए यह आरोप लगाना ज्यादा आसान है कि पूरा मामला ही राजनीति से प्रेरित है। शरद पवार ने राजनीतिक तरीके से इसका जवाब देने की रणनीति भी अपनाई। वह कह रहे हैं कि हम शिवाजी के अनुयायी हैं और दिल्ली के तख्त के आगे नहीं झुकेंगे।

शरद पवार ने खेला मराठा कार्ड

यह साफ तौर पर राजनीति का मराठा कार्ड खेलना है। प्रश्न है कि क्या इसे खालिस राजनीति का मामला मान लिया जाए या इसमें तार्किकता भी है? सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में न्यायालय में पेश किए गए तथ्यों के आधार पर शरद पवार और अन्य आरोपियों पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और एसके शिंदे ने कहा था कि आरोपितों के खिलाफ ‘विश्वसनीय साक्ष्य’ हैं। यह करीब 25 हजार करोड़ रुपये का घोटाला है। क्या बिना किसी की संलिप्तता के ही इतनी राशि हवा हो गई? इस मामले में मुंबई पुलिस ने पिछले महीने एक प्राथमिकी दर्ज की थी। ईडी के अनुसार, उसने मुंबई पुलिस की प्राथमिकी के आधार पर मनी लांड्रिंग निरोधक अधिनियम के तहत प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआइआर) दर्ज की है। राज्य की आर्थिक अपराध शाखा की शिकायत के आधार पर इस साल अगस्त में मुंबई पुलिस ने केस दर्ज किया था।

मनी लांड्रिंग का आरोप

इसी आधार पर ईडी ने मनी लांड्रिंग के आरोप लगाए हैं। एजेंसी ने कर्ज देने और अन्य प्रक्रिया में कथित अनियमितता की जांच के लिए मामला दर्ज किया है। आरोप है कि यह सारा फर्जीवाड़ा संचालक मंडल द्वारा लिए गए गलत फैसलों की वजह से संभव हो पाया। ईडी इन आरोपों की जांच कर रही है कि एमएससीबी के शीर्ष अधिकारी, अध्यक्ष, एमडी, निदेशक, सीईओ और प्रबंधकीय कर्मचारी और सहकारी चीनी मिल के पदाधिकारियों को अनुचित तरीके से कर्ज दिए गए। राज्य सहकारी बैंक से शक्कर कारखानों और कपड़ा मिलों को बेहिसाब कर्ज बांटे गए। इसके अलावा कर्ज वसूली के लिए जिन कर्जदारों की संपत्ति बेची गई, उसमें भी जानबूझकर बैंक को नुकसान पहुंचाया गया।

महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक में 25 हजार करोड़ का घोटाला

पुलिस की प्राथमिकी के मुताबिक एक जनवरी 2007 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के कारण सरकारी खजाने को करीब 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यहां यह भी याद दिलाना जरूरी है कि महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में अनियमितताओं के लिए शरद पवार के अलावा 75 नेताओं के खिलाफ नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट यानी नाबार्ड ने जांच की थी। नाबार्ड ने 2010 में अपनी जांच रिपोर्ट में इनको दोषी माना था। यह बात अलग है कि प्रदेश एवं केंद्र दोनों जगह सरकार होने के कारण यह मामला जहां का तहां रुक गया। ईडी की प्राथमिकी में इस रिपोर्ट का भी उल्लेख है। यही नहीं उसने महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसायटीज कानून के तहत दाखिल आरोपपत्र और इंटरनल ऑडिटर मेसर्स जोशी एंड नाइक एसोसिएट्स की रिपोर्ट को भी आधार बनाया है। इन सबमें घोटाले की पूरी कहानी है। साफ है ईडी इस मामले में पवार और एमएससी बैंक में 2001 से 2017 के बीच रहे निदेशकों और पदाधिकारियों सहित उन लोगों से पूछताछ कर सकता है, जिनके नाम उसके केस में दर्ज हैं।

शरद पवार का जिक्र किसी भी रिपोर्ट में नहीं है

यह सच है कि शरद पवार का जिक्र किसी भी रिपोर्ट में नहीं है, लेकिन शिकायतकर्ता सुरिंदर अरोड़ा ने मुंबई पुलिस के सामने अपने हालिया पूरक बयान में दावा किया था कि घोटाला शरद पवार के संरक्षण के बिना नहीं हो सकता था। बयान उस प्राथमिकी का हिस्सा है जिसके आधार पर ईडी कार्रवाई कर रहा है। ऐसे में शरद पवार की भूमिका की भी जांच की जाएगी। अजीत पवार पर आरोप है कि एमएससी बैंक ने जो कर्ज आवंटित किए उनके लिए जमानत नहीं ली गई थी और कर्ज सब्सिडी वाली सस्ती दर पर दिया गया था। मुंबई पुलिस में दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक कर्ज की पुनर्रचना इसलिए की गई थी कि उसमें कुछ निदेशकों का निजी हित था। कर्ज समिति ने बड़े राजनेताओं की उन कोऑपरेटिव चीनी मिलों को 2007-08, 2008-09 और 2010-11 में कम मार्जिन पर लोन आवंटित किया था जिनकी नेट वर्थ नकारात्मक थी और जो घाटे में चल रही थीं। इससे बैंक को 297.14 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। पवार पर कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरियों को बेचने के मामले में अनियमितता के आरोप लगे हैं। आरोपों के मुताबिक कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरियों को कथित रूप से करीबी लोगों को रिजर्व प्राइस से कम दाम पर बेचा गया।

शरद पवार पर संदेह करने के पर्याप्त आधार

शरद पवार और उनके समर्थकों का यह तर्क अपनी जगह है कि वे न तो कोऑपरेटिव बैंक के संस्थापक थे और न कोई पदाधिकारी, किंतु इतने से किसी का पाक साफ होना साबित नहीं होता। ईडी के पास ज्यादातर ऐसे ही मामले आते हैं जिनमें आरोपी का सीधा कोई संबंध नहीं दिखता। मनी लांड्रिंग के मामले में तार से तार जोड़ने होते हैं। इस तरह पवार एवं उनके समर्थक जो भी तर्क दें, ईडी का मानना है कि पुलिस की प्राथमिकी, उच्च न्यायालय के आदेश, नाबार्ड की रिपोर्ट और इंटरनल ऑडिटर मेसर्स जोशी एंड नाइक एसोसिएट्स की रिपोर्ट में उन पर संदेह करने के पर्याप्त आधार हैं। जांच में यदि वे निर्दोष साबित होते हैं तो कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। यदि उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ मामला राजनीति से प्रेरित है तो उन्हें सीधे उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का रुख करना चाहिए।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैैं )