[कालू राम शर्मा]। पाकिस्तान की स्कूली शिक्षा, खासकर लड़कियों की शिक्षा के बारे में मलाला के जीवन से बहुत कुछ समझा जा सकता है। अक्टूबर 2012 में मात्र 14 बरस की उम्र में तालिबानी आतंकियों के हमले का शिकार बनी मलाला बुरी तरह से घायल हुई और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गई। वर्ष 2014 में कैलाश सत्यार्थी के साथ पाकिस्तान की मलाला युसुफजई को 17 वर्ष की उम्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया था। यह पाकिस्तान की दर्दनाक गाथा का परिणाम कहा जा सकता है। आज मलाला बच्चों व युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष का पर्याय बन चुकी है। मलाला के संघर्ष की कहानी पाकिस्तान की स्कूली शिक्षा की दर्दनाक कहानी है। मलाला वह शख्सियत है जिसने बहादुरी से न केवल शिक्षा प्राप्त करना जारी रखा, बल्कि अपनी आवाज को विश्वपटल पर ले जाकर औरों का ध्यान इस ओर खींचा।

पाकिस्तान के मिंगोरा इलाके पर तालिबान ने मार्च 2009 से मई 2009 तक कब्जा किया हुआ था। मलाला ने गुल मकई छद्म नाम से तालिबान के कुकृत्यों का लेखा-जोखा लिखा है। मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान फरमान की वजह से लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रही। 2008 में तालिबान ने स्वात पर कब्जा कर लिया और लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए। खेलने और टीवी देखने पर पाबंदी लगा दी। सोचा जा सकता है कि वहां बच्चों के क्या हालात रहे होंगे। शिक्षा जीवन को शांति व खुशहाल बनाने का रास्ता दिखाती है। प्रत्येक राष्ट्र की अवाम खुशहाली चाहती है न कि खौफ। खुशहाली के लिए अपनाए जाने वाले अनैतिक, इंसान विरोधी तरीके गर्त में ही धकेलते हैं। इसकी मिसाल पाकिस्तान में देखी जा सकती है।

एजुकेशन टास्क फोर्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान में 30 हजार से अधिक स्कूली इमारतों की हालत नाजुक है। करीब 21 हजार स्कूल खुले आसमान के नीचे चल रहे हैं और बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ के मुताबिक शिक्षा और विकास पर आयोजित 2015 के ओस्लो सम्मेलन में पाकिस्तान को शिक्षा के क्षेत्र में सबसे निराशाजनक प्रदर्शन करने वाले देशों में रखा गया था। रिपोर्ट के अनुसार तालिबानों व अन्य आतंकवादी गिरोहों ने वहां की शिक्षा व्यवस्था पर पतनकारी असर डाला है। विडंबना यह कि पाकिस्तान सरकार इस पर विजय पाने की कोई सार्थक पहल नहीं कर पाई है।

हिंदुस्तान की कोख से अलग हुए भारत और पाकिस्तान ने एक साथ अपनी यात्रा प्रारंभ की थी। पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा देने का रास्ता अख्तियार कर लिया। लेकिन जो राष्ट्र शांति व सुकून के रास्ते को छोड़कर दूसरे राष्ट्रों को पटखनी देने के जुगाड़ में लग जाता है उसकी घरेलू हालत बेहतर नहीं कही जा सकती। यह समझते हुए भी कि शिक्षा समाज को जीने का रास्ता दिखाती है। पाकिस्तान की इन दिनों स्कूली शिक्षा की हालत बेहद नाजुक है। आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान में सवा दो करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। खासकर लड़कियों की शिक्षा की हालत और भी दयनीय है। करीब 32 फीसद लड़कियां जो स्कूल जाने की उम्र की हैं, वे स्कूल की दहलीज तक पहुंच नहीं पाती हैं। छठी कक्षा तक आते-आते 59 फीसद लड़कियां स्कूल से बाहर हो जाती है। और आठवीं के बाद नौवीं कक्षा में मात्र 13 फीसद लड़कियां ही पहुंच पाती हैं।

अगर पाकिस्तान की शिक्षा के पाठ्यक्रम की बात करें तो वह बच्चों को स्कूल की दहलीज पर पांव रखते ही धार्मिकता की खाई में झोंकता है। वर्ष 2017 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने कक्षा एक से 12वीं तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले सभी मुस्लिम बच्चों के लिए कुरान को अनिवार्य करने का विधेयक पारित कर दिया। दलील दी गई कि कुरान की शिक्षा पाने से बच्चे धार्मिक मकतब से दूर होंगे। चूंकि इस्लाम पाकिस्तान का राज्य धर्म है इसलिए पाकिस्तान सरकार लोगों को इस्लाम की शिक्षा को सीखने में मदद करने के लिए यह कदम उठाने को मजबूर हुई।

पाकिस्तान अपने सकल घरेलू उत्पाद का दो प्रतिशत के आसपास शिक्षा पर खर्च करता है। पाकिस्तान की स्कूली शिक्षा को लेकर आइना ‘एन्यूअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ दिखाती है। पाकिस्तान में 2018 में किए गए अध्ययन में भाषा और गणित में बच्चों की शैक्षिक स्थिति को जांचा गया। पाकिस्तान की प्रमुख भाषाएं उर्दू, सिंधी और पश्तो है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों में भाषाई क्षमता अपेक्षाकृत बेहतर कही जा सकती है। पाकिस्तान में सरकारी स्कूलों के पहली के 75 फीसद बच्चे अक्षरों को पहचान पाते हैं। सरकारी स्कूलों के तीसरी के मात्र 42 फीसद बच्चे वाक्य पढ़ पाते हैं। गणित में भी हालात कमोबेश यही है जहां बच्चे बुनियादी गणित की विषयवस्तु से अनजान हैं।

किसी भी राष्ट्र की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह ‘कल के नागरिकों’ को खुशहाल जीवन के लिए स्वास्थ्य व शिक्षा उपलब्ध करा सके। पाकिस्तान में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम में जान फूंकने की सख्त जरूरत है। जेनेवा से जारी किए गए एक बयान में पाकिस्तान का पोलियो अभियान एक त्रासदी है। वहां अब भी पोलियो के मामले दर्ज हो रहे हैं। बच्चों की खुशहाली के लिए हम उनके बचपन को संवार सकें इसकी जरूरत न केवल पाकिस्तान को, बल्कि दुनिया भर को है। आतंकवाद विनाश का पर्याय है।

आतंकवाद एक ऐसा बूमरैंग है जो एक समय के बाद अप्रत्याशित रूप से खुद को ही निशाना बनाता है। अपने ही राष्ट्र में आतंकवाद को प्रश्रय देकर किसी अन्य राष्ट्र को निशाना बनाना खुद का भी विनाश है। इसका असर पाकिस्तान झेलता आया है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत व पाकिस्तान के आजाद होने व अलग होने की दर्दनाक गाथाएं इतिहास में दर्ज हैं। इन गाथाओं का दर्द आज भी दोनों देशों को साल रहा है। इनसे सबक लेकर एक खुशहाल राष्ट्र के रूप में फलना फूलना होगा। कट्टरवादी नजरिये को एजेंडे से बाहर करके उदारतावादी नजरिये को अपनाना चाहिए। इसी में सबकी भलाई है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]