[ राजीव सचान ]: एक समय था जब हिंदी फिल्मों के नायक मजदूर, कारखाना कामगार, कुली आदि के रूप में भी होते थे और खलनायक कोई दुष्ट उद्योगपति होता था। उसे निर्दयी और मजदूरों का शोषण करने वाला दिखाया जाता था। तब ‘‘मजदूर का पसीना सूखने के पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए जनाब’’ टाइप के डायलॉग दर्शकों की तालियां पाते थे। ऐसी फिल्मों के अंत में शोषक उद्योगपति या तो सुधर जाता था या जेल जाता था या फिर उसकी फैक्ट्री में ताला लग जाता था, लेकिन आम तौर पर उसकी बेटी नायक संग ही ब्याह रचाती थी। अब वैसी फिल्में नहीं बनतीं, लेकिन इन दिनों राजनीति के पर्दे पर यह कमी राहुल गांधी पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं। वह उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। वैसे तो अंबानी-अदाणी खास तौर पर उनके निशाने पर हैं, लेकिन वह अक्सर यह भी कहते हैं कि मोदी सरकार केवल 5-10 उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है।

राहुल गांधी हर मसले पर उद्योगपतियों को निशाना बनाते हैं

राहुल गांधी हर मसले पर उद्योगपतियों को निशाना बनाने में जुट जाते हैं। पता नहीं उनके भाषण और ट्वीट कौन लिखता है, लेकिन राफेल सौदे को तूल देते वक्त वह यहां तक कह जाते थे कि खुद मोदी ने जवानों की जेब से पैसे निकालकर अमुक उद्योगपति को दे दिए। तीन नए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए उन्होंने इन कानूनों का नाम ही अंबानी-अदाणी कृषि कानून कर दिया है। यह दुष्प्रचार केवल वही नहीं कर रहे कि इन कानूनों का सारा लाभ अंबानी-अदाणी को मिलने वाला है, किसानों को बरगलाने में जुटे तथाकथित किसान नेता भी इसी झूठ का सहारा ले रहे हैं और इसीलिए पंजाब में जियो के टावर तोड़े गए।

पीएम मोदी अपने मित्र उद्योगपतियों को लाभ पहुंचा रहे हैं: राहुल

पेट्रोल-डीजल के दाम चाहे बढ़ें या घटे, राहुल इसी नतीजे पर पहुंचते हैं कि मोदी अपने मित्र उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाते हैं। मई 2018 में बीदर, कर्नाटक की एक रैली में उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी पेट्रोल-डीजल से बच रहा पूरा पैसा अपने 5-10 उद्योगपति मित्रों को दे रहे हैं। हाल में उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘पेट्रोल सौ रुपये लीटर है। आपकी जेब खाली करके मित्रों को देने का महान काम मोदी सरकार मुफ्त में कर रही है।’’ इसके पहले संसद में उन्होंने हम दो हमारे दो का जुमला सिर्फ यही बताने के लिए उछाला था कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह तो केवल अंबानी-अदाणी के लिए काम कर रहे हैं।

राहुल गांधी कारोबारियों के लिए बोल रहे हैं वामपंथियों-नक्सलियों की भाषा

कारोबारियों को लांछित करने और उन्हें खलनायक के तौर पर पेश करने के लिए राहुल गांधी वह भाषा बोल रहे हैं जो घनघोर वामपंथियों-नक्सलियों की भाषा है। वह ऐसी भाषा इसके बाद भी बोल रहे हैं कि खुद उनके जीजा भी कथित तौर पर एक कारोबारी ही हैं। क्या वह देश के समस्त कारोबारियों को वैसा ही समझते हैं जैसे रॉबर्ट वाड्रा हैं? पता नहीं, लेकिन कोई राजनीति में है तो इसका यह मतलब नहीं कि उसे किसी की भी इज्जत से खेलने का अधिकार मिल जाता है।

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी अंबानी-अदाणी पने कारोबार को विस्तार दे रहे थे

यह जाहिर है कि अंबानी-अदाणी या अन्य कोई कारोबारी राहुल गांधी के अनर्गल आरोपों का जवाब उन्हीं की भाषा में नहीं दे सकता। कारोबारियों और खासकर अंबानी-अदाणी से राहुल गांधी की चिढ़ के पीछे चाहे जो कारण हो, इन दोनों ने अपना कारोबार मई 2014 के बाद नहीं खड़ा किया। ये तो तब भी अपने कारोबार को विस्तार दे रहे थे जब मनमोहन सिंह सत्ता में थे। इतना ही नहीं उन्हें तमाम ठेके कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के दौरान ही मिले।

राहुल गांधी अंबानी-अदाणी पर निशाना साधकर लोगों को उल्लू बना रहे हैं

राहुल गांधी उन पर निशाना साधकर किस तरह लोगों को उल्लू बना रहे हैं, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि ठीक उस समय जब वह अंबानी-अदाणी को लांछित कर रहे थे, तब अदाणी समूह की ओर से यह घोषणा की जा रही थी कि उसने 705 करोड़ रुपये में महाराष्ट्र स्थित दिघी बंदरगाह का अधिग्रहण पूरा कर लिया है। क्या यह मान लिया जाए कि राहुल गांधी के विरोध के बाद भी महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी? एक क्षण के लिए ऐसा ही मान लेते हैं, लेकिन आखिर इस खबर का क्या करें, जो यह कहती है कि अदाणी समूह राजस्थान में 9700 मेगावॉट के सोलर हाईब्रिड और विंड एनर्जी पार्क का निर्माण करने जा रही है? राजस्थान सरकार तो पूरी तौर पर कांग्रेस की सरकार है। क्या यह संभव है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इससे परिचित न हों कि राहुल किस तरह अंबानी संग अदाणी के पीछे पड़े हैं? साफ है कि राहुल लोगों को मूर्ख बनाने और मोदी सरकार पर राजनीतिक हमला करने के लिए अंबानी-अदाणी को लांछित कर रहे हैं। आखिर यह कितना उचित है कि देश के बड़े कारोबारियों को बदनाम किया जाए?

उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देने की जरूरत है, राहुल उद्योगपतियों की ऐसी-तैसी करने में लगे हुए हैं

यदि अंबानी-अदाणी ने कुछ गलत किया है तो प्रमाण पेश किए जाएं, पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जाए, सीबीआइ-ईडी से जांच की मांग की जाए, अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए। यदि यह सब करने में आलस आड़े आ रहा हो तो फिर राहुल गांधी यह तो सुनिश्चित कर ही सकते हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में अंबानी-अदाणी को बंदरगाह, सोलर पार्क वगैरह बनाने की इजाजत न दी जाए। यह एक किस्म की राजनीतिक गुंडागर्दी के अलावा और कुछ नहीं कि जब देश में उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देने की जरूरत है तब राहुल देश के उद्योगपतियों की ऐसी-तैसी करने में लगे हुए हैं। आखिर राहुल की जली-कटी सुनने वाला कोई युवक भला क्यों अंबानी-अदाणी जैसा कारोबारी बनने के सपने देखेगा? जिन कारोबारी समूहों ने देश में हजारों लोगों को नौकरियां दी हों, उन्हें खुले आम लांछित करना निकृष्ट राजनीति का नया नमूना ही है। अफसोस कि यह नमूना वह राहुल गांधी पेश कर रहे हैं, जो कुछ समय पहले अपनी रैलियों में मेड इन भोपाल घड़ी, मेड इन डूंगरपुर मोबाइल, मेड इन जौनपुर पतीला... आदि की बातें किया करते थे।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )