[भूपेंद्र प्रताप सिंह]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना मेक इन इंडिया की सफलता एमएसएमई सेक्टर पर आधारित है और उसके सहारे ही मेक फॉर वर्ल्ड और वोकल फॉर लोकल का स्वप्न साकार करने का प्रयास है। भारत की जीडीपी में लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी एमएसएमई सेक्टर की है जो 12 करोड़ रोजगार पैदा करता है। निर्यात में भी इस सेक्टर का योगदान करीब 50 प्रतिशत है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ इसी एमएसएमई की स्थापना और प्रसार के लिए कुछ प्रमुख सरकारी बैंक उनको गिरवी परिसंपत्ति के मूल्य के अनुपात में उचित ऋण राशि स्वीकृत नहीं कर रहे हैं। फलस्वरूप विस्तार के लिए ये उद्योग पर्याप्त धनराशि से वंचित रह जाते हैं। इसका प्रमुख कारण बैंकों में गिरवी रखे जाने वाली परिसंपत्ति मूल्यांकन का कोई निर्धारित फार्मूला नहीं होना है। हालांकि भारत सरकार इसके लिए प्रयासरत है और आइबीबीआइ (इन्सोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया) द्वारा मूल्यांकन मानक तैयार होने की प्रक्रिया में है।

यद्यपि ऋण मंजूर करने से पूर्व बैंक आवेदनकर्ता के व्यवसाय के सफलता की संभावना और उसकी साख पर भी ध्यान देता है। फिर भी, मुख्य रूप से गिरवी रखे जाने वाली परिसंपत्ति के मूल्य के आधार पर ही ऋण स्वीकृत किया जाता है। ऋण राशि की सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक भी है। अत: सामान्यतया बैंक गिरवी परिसंपत्ति के वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर ही ऋण स्वीकृत करते रहे हैं। साधारण शब्दों में किसी निश्चित समय पर परिसंपत्ति को पर्याप्त प्रचार-प्रसार के बाद बेचने पर जो मूल्य मिलता है, उसे बाजार मूल्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

रियलाइजेबल वैल्यू को ऋण राशि निर्धारित करने का आधार बना रहे हैं बैंक

फिलहाल भारतीय स्टेट बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ अन्य बैंक रियलाइजेबल वैल्यू को ऋण राशि निर्धारित करने का आधार बना रहे हैं और रियलाइजेबल वैल्यू को परिसंपत्ति के मौजूदा बाजार मूल्य से लगभग 15 प्रतिशत कम मान रहे हैं। जहां पहले 100 रुपये बाजार मूल्य के आधार पर 75 रुपये का ऋण देते थे, वहीं अब यह वैल्यू केवल 85 रुपये मान कर, उस रियलाइजेबल वैल्यू का 75 प्रतिशत राशि अर्थात केवल 63.75 रुपये ही ऋण के रूप में स्वीकृत कर रहे हैं। इस प्रकार ऋण आवेदनकर्ता को 100 रुपये मूल्य की संपत्ति के एवज में केवल 63.75 रुपये की ऋण राशि ही प्राप्त हो पा रही है, जबकि यह राशि 75 रुपये होनी चाहिए।

रियलाइजेबल वैल्यू की शुरुआत

वर्ष 2015 से पहले बैंकों में रियलाइजेबल वैल्यू जैसी कोई अवधारणा नहीं थी। जुलाई 2015 में भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को एनपीए के विरुद्ध प्रोविजनिंग के लिए एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें रियलाइजेबल वैल्यू शब्द का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन इसकी व्याख्या नहीं की थी। वास्तव में इस शब्द के पीछे आरबीआइ की मंशा थी कि बाजार मूल्य का वास्तविक (रियलिस्टिक) और सही मूल्यांकन किया जाय, जो बंधक संपत्ति को बेचने पर प्राप्त हो सके, न कि बढ़ी हुई कीमत आंकी जाए। पूर्व में बैंकों ने बंधक की गई संपत्तियों का ज्यादा मूल्यांकन करते हुए ऋण स्वीकृत किए थे और ऋण वसूली न होने की सूरत में सरफेसी एक्ट (सेक्युरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड इनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002) के तहत गिरवी संपत्ति विक्रय कर ऋण राशि वसूल करने का प्रयास करने लगे, लेकिन पूर्व में गलत या ज्यादा मूल्यांकन किए जाने के कारण उन्हें सही मूल्य नहीं मिले और नुकसान उठाना पड़ा। पूर्व में ज्यादा मूल्यांकन की गलती को छिपाने के लिए बैंको ने अपनी सुविधानुसार यह तर्क देकर कि जब संपत्ति बेची जाती है तो उन्हें बाजार मूल्य नहीं मिलता है, जो मूल्य उन्हें मिलता है, वो लगभग 15 प्रतिशत कम होता है और उसे उन्होंने रियलाइजेबल वैल्यू मान लिया। उल्लेखनीय है कि बाजार मूल्य का मतलब ही यह है कि संपत्ति बेचने पर जो कीमत (रियलाइज) प्राप्त हो।

रियलाइजेबल वैल्यू को परिभाषित नहीं 

भारतीय स्टेट बैंक व सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों का यह भी दावा है कि वे परिसंपत्ति मूल्य का निर्धारण अंतरराष्ट्रीय मूल्य मानकों (आइवीएस) के अनुरूप करते हैं। हालांकि आइवीएस ने मार्केट वैल्यू, सिनर्जिस्टक वैल्यू व लिक्विडेशन वैल्यू जैसे शब्दों को तो परिभाषित किया है, लेकिन रियलाइजेबल वैल्यू को कहीं परिभाषित नहीं किया है। भारतीय लेखा मानक में नेट रियलाइजेबल वैल्यू को परिभाषित किया गया है जो बही-खातों में इन्वेंट्री का मूल्य दर्ज करने के लिए है, न कि अचल परिसंपत्ति मूल्य के रूप में। वास्तव में यहां नेट रियलाइजेबल वैल्यू का तात्पर्य यह है कि इन्वेंट्री को बेचने में होने वाले खर्च जैसे ब्रोकरेज या प्रचार का खर्चा काट कर जो पैसा हाथ में आए।

एमएसएमई क्षेत्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए क्या करना चाहिए?

यदि भारतीय लेखा मानक द्वारा परिभाषित नेट रियलाइजेबल वैल्यू फार्मूले को ही बैंक भी परिसंपत्तियों के मूल्यांकन के लिए भी लागू करें तो नेट रियलाइजेबल वैल्यू बाजार मूल्य के 95 प्रतिशत से ज्यादा कम नहीं हो सकती, क्योंकि बंधक परिसंपत्ति को बेचने का खर्च जैसे ब्रोकरेज या प्रचार का खर्चा पांच प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता। अत: देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ एमएसएमई क्षेत्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए बैंकों द्वारा रियलाइजेबल वैल्यू को बाजार मूल्य का 95 प्रतिशत मान कर ऋण स्वीकृत करना चाहिए।

(लेखक- चीफ वैल्युअर, मॉर्गेज वैल्युएशन एक्सपर्ट हैं)