प्रकाश सिंह। करीब दो दशक पहले एक लेख में मैंने हिंदू धर्म को परिभाषित करते हुए लिखा था कि यह ऐसा धर्म है जिसके अनुयायी अपने मंदिरों के तोड़े जाने पर भी कोई आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं दिखाते। इतना ही नहीं, अपने साथियों के मतांतरण पर भी विरोध नहीं करते, दूसरे मजहब के लोग उनकी बेटियों का छल-कपट से निकाह करा दें, फिर भी कोई आक्रोश नहीं जताते। हिंदुओं को लेकर ऐसी स्थापित धारणाओं की सूची लंबी हो सकती है। असल में वह ऐसा समय था जब हिंदू स्वतंत्र भारत में भी स्वयं को दूसरे दर्जे का नागरिक समझते थे। देश के एक प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कह दिया था कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है, परंतु अब समय करवट ले रहा है, हिंदुओं का स्वाभिमान जाग रहा है और इसका श्रेय विशेष तौर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। इस दिशा में हालिया दौर में दो ऐसे काम हुए जिससे हिंदुओं के स्वाभिमान को बूस्टर डोज मिली है। एक तो राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया, दूसरे काशी विश्वनाथ परिसर का पुनर्निर्माण हुआ।

इसी क्रम में अब, सही या गलत, कई अन्य मंदिरों की पुनस्र्थापना की भी बात हो रही है। इसी पृष्ठभूमि में टीवी चैनल्स पर रोजाना तीखी बहस होती रहती हैं। ऐसी ही एक बहस के दौरान भाजपा प्रवक्ता ने पैगंबर मोहम्मद साहब के बारे में कुछ बातें कह दीं, जो अवांछनीय थीं। उनका कहना है कि उन्होंने जो कुछ कहा वह हदीस के आधार पर था। जबकि हमारी परंपरा यही कहती है कि सत्य अगर कड़वा हो और उसके कहने से किसी वर्ग को ठेस पहुंचे तो उसे न कहना ही बुद्धिमत्ता है। भाजपा प्रवक्ता ने जो कहा, उसकी तल्ख प्रतिक्रिया देखने को मिली। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल जैसे राज्यों के अलावा दिल्ली और हैदराबाद सरीखे शहरों में इसे लेकर उग्र प्रदर्शन हुए। तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुईं। पुलिस पर पत्थर फेंके गए। सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी नाराजगी को कैसे व्यक्त किया जाना चाहिए, शांतिपूर्ण ढंग से या ¨हसक तरीके से?

भाजपा प्रवक्ता के बयान का सरकार ने खंडन करते हुए स्पष्टीकरण दिया। संबंधित प्रवक्ता को पार्टी से निलंबित कर दिया गया, उनके खिलाफ एफआइआर भी दर्ज की जा चुकी है। इसके बावजूद विरोध को हवा दी गई और एक हिंसात्मक आंदोलन का स्वरूप बनाया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग देश का सांप्रदायिक परिवेश दूषित करने पर आमादा हैं और ऐसा करने के लिए वे मौके की तलाश में रहते हैं। पाकिस्तान तो उन्हें उकसाने की फिराक में ही रहता है। इस बिगड़ैल पड़ोसी के बारे में तो कुछ कहना ही बेकार है। यह देश तो कुत्ते की पूंछ की तरह है जो कभी सीधी नहीं होगी। भारत में अशांति फैलाना, यहां के मुसलमानों को भड़काना, उसका एक स्थायी एजेंडा है। जबकि कराची में कुछ दिन पहले ही एक हिंदू मंदिर में प्रतिमाओं को खंडित किया गया, परंतु इसकी कोई चर्चा नहीं है। मंदिर को तोड़ना तो वहां कट्टरपंथियों ने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ लिया है। कई इस्लामिक देशों ने पैगंबर से जुड़े बयान पर हमारे राजनयिकों को बुलाकर विरोध जताया था। अन्य देशों को छोड़िए, कतर जैसे छोटे देश ने भारत से माफी तक मांगने को कहा। वहीं जब हिंदुओं पर अत्याचार होता है या उनके मंदिरों को तोड़ा जाता है तो उनके कान पर जूं भी नहीं रेंगती।

इस संदर्भ में सरसंघचालक मोहन भागवत का यह बयान स्वागतयोग्य है कि हर मस्जिद में शिवलिंग देखना सही नहीं है और विवादों को आपसी सहमति से हल किया जाए और सभी को अदालती फैसला स्वीकार करना चाहिए। पूर्व सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया ने भी एक बार प्रस्ताव रखा था कि यदि मुसलमान अयोध्या, काशी और मथुरा के विवादित स्थल हिंदुओं को सौंप दें तो संघ भारत में किसी अन्य स्थान पर मंदिर के पुनर्निर्माण का दावा नहीं करेगा, परंतु उनके प्रस्ताव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उस समय माहौल कुछ और था।

आज हिंदू और मुसलमान दोनों ही वर्गों को यह समझना होगा कि उन्हें एक दूसरे के प्रति सद्भावना रखते हुए देश की प्रगति में अपना योगदान करना होगा। यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि दोनों ही वर्गो में ऐसे लोग बहुसंख्या में हैं, परंतु दुर्भाग्य से दोनों ओर कुछ ऐसे लोग हो गए हैं, जो माहौल खराब कर सांप्रदायिक परिवेश में विष घोलने में लगे हैं। हिंदुओं में कुछ धर्मगुरु ऐसी बातें करते हैं जैसे वे दिमागी दिवालियापन से ग्रस्त हों। कोई नरसंहार की बात करता है, कोई लोगों को पाकिस्तान भेजने की बात करता है, कोई दस बच्चे पैदा करने की बात कहता है। मुसलमानों को देखा जाए तो उनके धर्मगुरु इंटरनेट मीडिया पर ऐसी बकवास करते हैं जो केवल कोई असंतुलित मस्तिष्क का मतांध आदमी ही कर सकता है। एक लेखक के अनुसार गोरी, गजनी, खिलजी, तुगलक, बाबर और औरंगजेब के समय से चली आ रही इस्लामिक कट्टरता आज भी एक समूह में उसी प्रकार मौजूद है। ये लोग जब तक अपने समुदाय के गौरव की तलाश में विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन करते रहेंगे तब तक सांप्रदायिक वैमनस्य बना रहेगा। मुसलमानों का बहुत बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि स्वतंत्रता पूर्व वे अंग्रेजों के मोहरे बने रहे और बाद में बाद में कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के कारण उनके सोच में संतुलन नहीं रहा। दूसरी ओर हिंदुओं का दुर्भाग्य है कि उनके कुछ धर्मगुरु अनर्गल बातें करते रहते हैं और कुछ निरंकुश तत्व भगवा वस्त्र पहनकर कानून को हाथ में लेने लगे हैं। इन पर प्रभावी नियंत्रण की जरूरत है। मीडिया पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है, कुछ टीवी चैनल लोगों को जहर उगलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। एडिटर्स गिल्ड ने भी इस विषय पर चिंता प्रकट की है।

विधिवेत्ता ताहिर महमूद के अनुसार मोहम्मद साहब ने एक जगह कहा है कि उन्हें भारत से अरीज-उल-रूहानिया यानी अध्यात्म की खुशबू आती है। इस देश के मुसलमान भी जिस दिन यहां की आध्यात्मिक सुगंधि का अनुभव करने लगेंगे तब शायद देश के सांप्रदायिक माहौल में क्रांतिकारी परिवर्तन आ जाएगा। उनका कर्तव्य है कि वे भारत को ‘दारुल अमन’ यानी शांति की धरती बनाए रखें और सुनिश्चित करें कि यह देश कभी ‘दारुल हरब’ यानी अशांति का अखाड़ा न बने।

(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं)