उत्तराखंड , कुशल कोठियाल। आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य पर अगर देश आगे बढ़ाए तो उत्तराखंड भी इसमें सीधे योगदान देने वाले राज्यों में शुमार होगा। इसका सीधा लाभ औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़े इस हिमालयी राज्य को भी मिलने वाला है। प्रदेश सरकार विश्व स्तरीय औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए ऊधमसिंह नगर में तीन हजार एकड़ भूमि केंद्र के सुपूर्द करने जा रही है। इस बारे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से वार्ता भी हो चुकी है और कैबिनेट ने भी इससे संबंधित प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। इस भूमि पर केंद्र सरकार औद्योगिक गलियारा विकसित करेगी। केंद्र के साथ ही प्रदेश की नजर भी उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर है, जो चीन में विनिर्माण के क्षेत्र में काम कर रही हैं। कोरोना वायरस से जूझ रहे दुनिया के प्रमुख देशों की कंपनियां पहले भी चीन छोड़ने की मंशा जता चुकी है।

केंद्र सरकार का भी मानना है कि चीन को विनिर्माण क्षेत्र में मात देनी है तो देश के हर हिस्से में विश्व स्तरीय औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की जरूरत है। केंद्र इस खोज में उत्तराखंड जैसे राज्यों को प्राथमिकता देने की नीति पर चल रहा है। प्रदेश सरकार ने केंद्र को ऊधमसिंह नगर में केंद्र की अपेक्षा के अनुसार भूमि देने का निर्णय लिया है, साथ ही हरिद्वार में भी भूमि की तलाश की जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि केंद्र के आत्मनिर्भर भारत का अभियान अगर रंग लाया तो उत्तराखंड की औद्योगिक प्रगति का सपना भी जमीन पर उतरेगा। बहुराष्ट्रीय या देश की बड़ी कंपनियां अगर राज्य में उत्पादन करती हैं तो निश्चित तौर पर इसका लाभ राज्यवासियों को भी मिलेगा। योजना जमीन पर उतरी तो यह राज्य को केंद्र की एक और बड़ी सौगात होगी।

इसे कहते हैं मित्र विपक्ष : पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत की सक्रियता से भले ही कांग्रेस के प्रदेश संगठन में बेचैनी हो, लेकिन सत्ता व सत्ताधारी दल सुकून महसूस कर रहा है। पिछले दिन हरीश रावत व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत में ऐसी बेजोड़ जुगलबंदी देखी गई, दिल्ली की सियासत में तो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कभी यह संभव है कि कांग्रेस का कोई दिग्गज सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़क पर उतरें और प्रधानमंत्री उनसे ऐसा न करने का आग्रह करें व वह मान भी जाएं। उत्तराखंड की राजनीति में यह वास्तव में हुआ और कोई चौंका भी नहीं, क्योंकि प्रदेश की राजनीति में मित्र विपक्ष की परंपरा पुरानी है। यहां की राजनीति में विपक्ष सत्ता दल के भीतर होता है व मित्र विपक्षी दल। मित्र विपक्ष की अवधारणा यहां राज्य के वजूद में आने के साथ ही शुरू हो गई थी।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश सरकारी की नाकामी और पेट्रो पदार्थों की बढती कीमतों के विरोध में प्रदेश भर में अभियान चलाने के लिए प्रदर्शन करने का एलान किया तो मुख्यमंत्री ने खटाक से राज्य के हित में ऐसा न करने का आग्रह कर डाला। वे तुरंत मान गए व मीडिया में हल्ला भी पीट गए कि त्रिवेंद्र रावत के आग्रह पर वह अपना अभियान वापस ले रहे हैं। मुख्यमंत्री ने भी उधार नहीं रखा व सार्वजनिक रूप से पूर्वमुख्यमंत्री की इस दरियादिली के लिए उनका आभार भी जता दिया। जनतंत्र के इस स्वरूप पर भाजपाई तो गदगद हो रहे हैं, लेकिन राहुल परंपरा के कांग्रेसी कांग्रेस भवन की दीवारों को देख रहे हैं।

कार्बेट और राजाजी में फिर दिखेंगे गैंडे और सोन डॉग : वन्यजीव विविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में जंगली जानवरों के कुनबे में दो नए मेहमानों गैंडे और वाइल्ड डॉग यानी सोन को लाने की तैयारी हो रही है। हालांकि एक दौर में इन दोनों वन्यजीवों की यहां मौजूदगी थीए मगर कालांतर में विभिन्न कारणों से ये इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। वन विभाग के अभिलेख ही बताते हैं कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में गैंडे थे, जबकि राजाजी टाइगर रिजर्व, तराई पूर्वी समेत अन्य क्षेत्रो में सोन डॉग थे। उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड की हालिया बैठक में इन दोनों को यहां लाने को तेजी से कसरत करने के निर्देश दिए गए। कहा गया कि गैंडों के आगमन से कार्बेट की जैवविविधता और मजबूत होगी, वहीं राजाजी में सोन डॉग लाए जाने से गुलदारों की संख्या पर प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण होगा। बता दें कि राजाजी से लगे क्षेत्र लंबे अर्से से गुलदारों के आतंक से त्रस्त हैं। सोन डॉग से इन पर नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी, जो मानव-गुलदार संघर्ष को थामने में मददगार साबित होगा। साथ ही वन्यजीवन के दीदार को आने वाले सैलानियों के लिए गैंडे व सोन डॉग आकर्षण का केंद्र बनेंगे। गैंडे असम से लाए जाएंगे, जबकि सोन डॉग को महाराष्ट्र अथवा कर्नाटक से यहां लाया जाना है।

[राज्स संपादक, उत्तराखंड]