[ रमेश कुमार दुबे ]: जो लोग मोदी सरकार की जनधन बैंक खाते, राशन कार्डों को आधार संख्या से जोड़ने, प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण जैसी योजनाओं का निजता के हनन के नाम पर विरोध कर रहे थे उन्हें आज यह बताना चाहिए कि यदि ये उपाय न किए गए होते तो कोरोना आपदा के समय करोड़ों लोगों के बैंक खातों तक तुरंत मदद कैसे पहुंच पाती? कोरोना महामारी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 21 दिन के लॉकडाउन के बाद एक ओर जहां महानगरों से कामगारों का पलायन शुरू हो गया तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्काल 27.50 लाख मनरेगा श्रमिकों के खातों में 611 करोड़ रुपये की धनराशि हस्तांतरित कर दी।

केंद्र सरकार  के पैकेज से मिला गरीब महिलाओं, बुजुर्गों, विधवाओं, विकलांगों को राहत

इसी तरह केंद्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की जिसमें राशन कार्ड धारकों, उज्ज्वला लाभार्थियों, महिला जनधन खाता धारकों, बुजुर्गों, विधवाओं, विकलांगों, किसानों को त्वरित राहत पहुंचाई गई। इससे देश की बहुसंख्यक आबादी लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से बच गई और उनमें महानगरों के कामगारों की भांति अफरातफरी नहीं मची।

प्रवासी कामगारों का डिजिटल रिकॉर्ड नहीं

प्रवासी कामगारों में अफरातफरी मची तो इसी कारण कि सरकार के पास उनका डिजिटल रिकॉर्ड नहीं है। यदि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राशन कार्डों को आधार संख्या से जोड़ने जैसे उपाय पूरे कर लिए गए होते तो इन मजदूरों तक भी तुरंत नकद और खाद्यान्न सहायता पहुंचाई जा सकती थी।

आपदा के समय राहत सामग्री हड़पने, कल्याणकारी योजनाओं में बंदरबाट करने वालों की कमी नहीं

यदि मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया के तहत नकदी हस्तांतरण की बिचौलिया मुक्त व्यवस्था न की होती तो क्या इतनी बड़ी आबादी को तुरंत सहायता पहुंचा पाना संभव होता? हरगिज नहीं, क्योंकि देश में आपदा के समय राहत सामग्री हड़पने और कल्याणकारी योजनाओं में बंदरबाट करने वालों की कमी नहीं है। भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों, ठेकेदारों की तिकड़ी ने जनकल्याण के बजाय अपना घर भरने को प्राथमिकता दी है। यहां पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कथन प्रासंगिक है कि दिल्ली से एक रुपया भेजते हैं तो गांवों तक 15 पैसे ही पहुंचता है, 85 पैसा बिचौलिए हड़प लेते हैं। यदि देश में गरीबी, बेकारी, असमानता, नक्सलवाद की जड़ तलाशी जाए तो वह इसी संगठित लूट में ही मिलेगी।

बिचौलिया मुक्त व्यवस्था बनाने में मोदी सरकार का पहला ठोस कदम जनधन योजना थी

बिचौलिया मुक्त व्यवस्था बनाने में की दिशा में मोदी सरकार का पहला ठोस कदम था सभी भारतीयों का बैंक खाता। इसके लिए 2014 में जनधन योजना शुरू की गई और इस योजना के तहत 38 करोड़ बैंक खाते खोले गए। इन नए बैंक खातों में से 53 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए। विश्व बैंक ने इस मुहिम की प्रशंसा करते हुए कहा था कि इससे देश की करोड़ों महिलाओं को औपचारिक बैंकिंग तंत्र से जुड़ने का मौका मिला। जनधन योजना ने गांवों और शहरों के बीच की खाई को भी पाटने का काम किया।

देश में 80 प्रतिशत से अधिक बालिगों के पास बैंक खाता

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार इस योजना के तहत देश में जितने बैंक खाते खोले गए उसमें से 58 प्रतिशत ग्रामीण एवं कस्बाई इलाकों में स्थित बैंक शाखाओं में खुले। इन सबका नतीजा यह हुआ कि आज 80 प्रतिशत से अधिक बालिगों के पास बैंक खाता है, जबकि 2014 में यह अनुपात महज 50 प्रतिशत था। पूरे देश में ई-गवर्नेंस, ई-हेल्थ, ई-एजुकेशन, ई-बैंकिंग, स्मार्ट फोन, इंटरनेट जैसी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए मोदी सरकार ने 2015 में डिजिटल इंडिया योजना की शुरुआत की। इसका उद्देश्य हर स्तर पर कागज रहित प्रक्रिया को अपनाना था, ताकि बिचौलियों की सत्ता खत्म हो जाए।

कोरोना आपदा ने एनपीआर और एनआरसी की प्रासंगिकता को उजागर कर दिया

कोरोना आपदा ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की प्रासंगिकता को एक बार फिर उजागर कर दिया। यदि केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास जनसंख्या संबंधी प्रामाणिक डाटाबेस होता तो वे उसी आधार पर संक्रमण की जांच कर पातीं और आपदा की स्थिति में प्रभावित लोगों तक तुरंत मदद पहुंचा देतीं। यहां दक्षिण कोरिया का उदाहरण प्रासंगिक है जहां पहचान, जांच और इलाज अर्थात ट्रिपल टी फॉर्मूले के जरिये कोरोना मरीजों की संख्या रोकने में मदद मिली। दक्षिण कोरिया में चौबीसों घंटे, सातों दिन चलने वाले ऐसे आधुनिक केंद्र बनाए गए जहां लोग गाड़ी में बैठे-बैठे टेस्ट करा सकते हैं। यह प्रक्रिया 10-15 मिनट में पूरी हो जाती है।

आबादी का कोई डाटाबेस नहीं

भारत के संदर्भ में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि यहां की आबादी का कोई डाटाबेस नहीं है जिससे यह नहीं पता चल पाता कि कौन देश में आ रहा है और कौन जा रहा है? इसी का फायदा उठाकर लाखों बांग्लादेशी घुसपैठिए देश के नागरिक बन चुके हैं। इसी का अनुसरण म्यांमार के रोहिंग्या कर रहे हैं। घुसपैठियों, शरणार्थियों के अलावा देश में दुनिया भर के हजारों ऐसे लोग रह रहे हैं जिनका कोई पता-ठिकाना नहीं है।

एनपीआर होता तो निजामुद्दीन तब्लीगी जमात में आए विदेशियों की जानकारी समय पर मिल जाती

एनपीआर होता तो शायद निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात में दुनिया के कई देशों से आए लोगों की जानकारी समय रहते हो जाती। कोरोना संकट को देखते हुए भले ही सरकार ने जनगणना 2021 और एनपीआर तैयार करने के कार्य को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया हो, लेकिन एनपीआर की जरूरत को झुठलाया नहीं जा सकता। एनपीआर डाटा बेस में जनसांख्यिकी एवं बायोमीट्रिक जानकारी रहेगी। वैसे निवासी जो छह माह या उससे अधिक समय से किसी क्षेत्र में रह रहे हों उनके लिए एनपीआर में पंजीकरण कराना अनिवार्य हो जाएगा।

एनपीआर में सभी नागरिकों को डाटाबेस के साथ जोड़ा जाए

एनपीआर का उद्देश्य है देश के सभी नागरिकों की पहचान को व्यापक डाटाबेस के साथ जोड़ा जाए ताकि सरकारी योजना का लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे। एनपीआर से आपदा के समय प्रभावित लोगोंं की ट्रैकिंग और उन तक राहत सामग्री पहुंचाने का काम आसान हो जाएगा। इसके साथ-साथ इससे आंतरिक सुरक्षा सुदृढ़ करने और आतंकी गतिविधियों को रोकने में भी सहायता मिलेगी।

( लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं )