झारखंड, [राज्‍यनामा] । कभी निर्दलीय विधायक होते हुए झारखंड का मुख्यमंत्री बनकर मधु कोड़ा ने लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज कराया था। हालांकि कुर्सी छिन जाने के बाद से उनके सितारे गर्दिश में हैं। उनका लंबा वक्त काल कोठरियों में गुजरा है और वे कई मुकदमों का सामना कर रहे हैं। इसमें आय से अधिक संपत्ति से लेकर अन्य मामले शामिल हैं।

हालांकि वे फिलहाल जेल से बाहर हैं और फिर से राजनीति में पांव जमाने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच उन्होंने परंपरागत राजनीति से सीख लेते हुए अपनी पत्नी गीता कोड़ा को आगे कर दिया। मधु कोड़ा खुद तो चुनाव हारते रहे, लेकिन उनकी पत्नी ने चुनावों में लगातार कामयाबी के झंडे गाड़े।

पत्नी की राजनीति में मौजूदगी से मधु कोड़ा का अस्तित्व बरकरार है और अब वे इसे और मजबूत करने की कोशिश में शिद्दत से जुट गए हैं। मधु कोड़ा की विधायक पत्नी के बेहतर राजनीतिक रिश्ते झारखंड में भाजपानीत गठबंधन सरकार से रहे। निर्दलीय रहने के बावजूद वह नियमित तौर पर एनडीए विधायक दल की बैठकों में भाग लेती थीं।

विधानसभा के भीतर भी उन्होंने शायद ही कभी सरकार को घेरा, लेकिन उनका एकाएक यू-टर्न लेना भाजपा के रणनीतिकारों को भी समझ में नहीं आ रहा है। गीता कोड़ा ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है। इसका मतलब यह है कि मधु कोड़ा भी देर-सवेर कांग्रेस की पैरोकारी खुलकर करेंगे। वैसे यह भी रोचक है कि निर्दलीय रहने के बावजूद मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बनाने में कांग्रेस का अहम योगदान था। कांग्रेस ने उनकी सरकार को बाहर से समर्थन दिया था।

बदली राजनीतिक परिस्थिति में दोनों को एक-दूसरे की उपयोगिता फिर दिखने लगी है। हाशिये पर चल रही कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ सशक्त राजनीतिक गठबंधन तैयार करना है तो मधु कोड़ा को अस्तित्व बचाए रखने के लिए बड़े दल का ठौर आवश्यक है। झारखंड के एक प्रमंडल कोल्हान में ही सही, मधु कोड़ा के राजनीतिक प्रभाव का कांग्रेस फायदा उठाएगी। वैसे कांग्रेस को मधु कोड़ा की नकारात्मक छवि का घाटा भी उठाना पड़ सकता है। भाजपा को इसी बहाने कांग्रेस पर निशाना साधने का अच्छा मौका मिलेगा।

गठबंधन के रोड़े :

झारखंड में भाजपा के खिलाफ मजबूत गठबंधन तैयार करने की कवायद जोरों पर है। इस कड़ी में बड़े क्षेत्रीय दलों के नेता कांग्रेस के संपर्क में हैं। हालांकि कांग्रेस राष्ट्रीय दल होने के नाते फिलहाल बड़े भाई की भूमिका में है, लेकिन राज्य में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में झारखंड मुक्ति मोर्चा है।

लोकसभा और विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रतिनिधियों की तादाद ज्यादा है। पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड में कांग्रेस का खाता नहीं खुला था, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मोदी लहर के बावजूद दो सीटों पर कामयाबी पाई थी।

विधानसभा में भी उसकी सीटें 19 थीं, जबकि कांग्रेस को महज सात सीटों पर संतोष करना पड़ा था। अब गठबंधन की कवायद आगे बढ़ने के साथ ही सीटों के बंटवारे की जिच भी सामने आ रही है। कांग्रेस आलाकमान ने इस सिलसिले में सभी भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद की है।

कांग्रेस चाहती है कि लोकसभा चुनाव में उसे सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ने का मौका मिले, जबकि विधानसभा चुनाव में वह झारखंड मुक्ति मोर्चा की राह आसान करेगी। तालमेल के इस गणित को सुलझाने में विपक्षी दलों के पसीने छूट रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस कवायद में गठबंधन को झटका भी लग सकता है।

हालांकि भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए कांग्रेस की भरसक कोशिश इस स्तर पर हो रही है कि सारे विपक्षी दलों को मनाकर गठबंधन की छतरी के नीचे लाया जाए। कांग्रेस की दावेदारी आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की है। इसमें एक-दो सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा समेत झाविमो और राजद की भी नजर है। इन सीटों पर खींचतान का प्रभाव दिखने भी लगा है।

संताल परगना की गोड्डा लोकसभा सीट उसमें से एक है। गोड्डा सीट पर कांग्रेस के साथ-साथ झारखंड विकास मोर्चा ने भी दावा ठोका है। इसके साथ-साथ कोडरमा और चतरा पर राजद और झारखंड विकास मोर्चा लड़ने को इच्छुक है। विपक्षी गठबंधन का तानाबाना बुन रहे नेताओं को सबसे पहले सीटों की दावेदारी पर एक राय कायम करनी होगी। अगर ऐसा नहीं हो पाया तो तालमेल टूट भी सकता है।

कांग्रेस आलाकमान ने विपक्षी गठबंधन को धरातल पर उतारने की कवायद तेज की है। झारखंड प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह स्वयं इस मुहिम में लगे हुए हैं। उन्होंने विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर उनका मन टटोला है।

बातचीत को आगे बढ़ाने को लेकर वे कांग्रेस आलाकमान से बारी-बारी से तमाम नेताओं की मुलाकात करा रहे हैं। उनका राजनीतिक अनुभव इस दिशा में कारगर साबित हो रहा है। उनकी कोशिश यह है कि जल्द से जल्द गठबंधन का खाका स्पष्ट हो।

कांग्रेस एक-एक सीट पर माथापच्ची कर रही है। पार्टी की योजना है कि विवाद को कमोबेश कम किया जाए ताकि विपक्षी गठबंधन धरातल पर उतार सके। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो विधानसभा चुनाव में तालमेल करने में आसानी रहेगी।