[ डॉ. सुरजीत सिंह गांधी ]: एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद नए कृषि कानूनों पर कुछ किसान संगठनों एवं केंद्र सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है। एक तरफ सरकार किसानों को निरंतर यह समझाने का प्रयास कर रही है कि तीनों कृषि कानून उनके हित में हैं तो दूसरी तरफ किसान इस जिद पर अड़े हैं कि इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए। पिछले कई दौर की असफल वार्ताओं के बाद पूरे देश की नजरें आज होने वाली वार्ता पर इस उम्मीद से टिकी हैं कि इस समस्या का हल अवश्य ही निकलना चाहिए। अन्यथा इसका दुष्प्रभाव पूरे देश पर पड़ सकता है। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस समस्या का हल क्या हो?

समाधान के लिए दोनों पक्षों को कुछ कदम पीछे हटाने ही पडे़ंगे

दोनों पक्षों को वार्ता प्रारंभ करने से पहले ही यह समझना होगा कि समाधान के लिए दोनों को कुछ कदम पीछे हटाने ही पडे़ंगे। सरकार को दरियादिली दिखाते हुए किसानों के मन में इन कृषि कानूनों के प्रति उपजे अविश्वास को खत्म करने की पहल करते हुए यह विश्वास दिलाना होगा कि सरकार हमेशा उनके साथ खड़ी है। सरकार अपना एक कदम और पीछे हटाते हुए इन कानूनों में संशोधनों के साथ एमएसपी के लिए अधिसूचना भी जारी कर सकती है। अब किसान नेताओं को भी सहमति के एक बिंदु पर खुद को टिकाना होगा तभी बातचीत का समाधान निकल सकेगा। ‘दिल्ली चलो’ का नारा देकर भावनात्मक आधार पर राजधानी के बाहर ऐसे लोगों की भीड़ एकत्र करने से समस्या का समाधान नहीं निकलेगा जिन्हें कृषि कानूनों के दूरगामी प्रभावों की कोई जानकारी भी नहीं है।

बहकावे में आए बिना किसानों को समझना होगा कि कृषि में बदलाव समय की है मांग

किसी के बहकावे में आए बिना किसानों को आज यह समझना ही होगा कि कृषि में बदलाव समय की मांग है। हर बडे़ बदलाव को कसौटी पर परखे बिना उसे ठुकरा देना समझदारी नहीं है। वह भी तब जब यह बदलाव देश की लगभग 60 प्रतिशत से अधिक आबादी से जुड़ा हुआ है जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ी हुई है। किसान आंदोलन के अगुआ बने पंजाब एवं हरियाणा के किसानों को छोड़ दें तो पूरे देश के किसानों की स्थिति न सिर्फ खराब, बल्कि दयनीय है। भारतीय कृषि अर्थशास्त्र में एक महत्वपूर्ण उक्ति है कि-भारत का किसान कर्ज में पैदा होता है, कर्ज में जीता है और कर्ज में ही मर जाता है। ऐसे में ये कृषि कानून एक मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। बिना बाजार में गए एवं आढ़त में बिना बोली लगाए बस मोबाइल में एक क्लिक द्वारा पूरे देश में किस बाजार में, किस जगह, किस मूल्य पर, कौन सी वस्तु, कितने दाम पर खरीदी एवं बेची जा रही है, उसकी समस्त जानकारी एक पल में हासिल होगी तो किसान अपनी मर्जी से, अपनी शर्तों पर, अपनी फसल को कहीं भी बेच सकता है।

नए कृषि कानून असीम संभावनाओं के द्वार खोलते हैं

ये कृषि कानून ऑनलाइन ट्रेडिंग द्वारा घर बैठे ही सभी झंझटों से मुक्ति दिलाते हैं और असीम संभावनाओं के द्वार खोलते हैं। जब सब चीजें ऑनलाइन खरीदी और बेची जा सकती हैं तो कृषि उत्पाद क्यों नहीं। कृषि उत्पादों की अधिक कीमत के लिए नवीन तकनीकी के प्रयोग द्वारा पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए किसान अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। वास्तव में यहीं से किसान को अपना हक मिलने की शुरुआत होगी एवं उसके सामने विकास के नए विकल्प खुलेंगे।

स्मार्ट खेती को मिलेगा बढ़ावा

स्मार्ट खेती को बढ़ावा मिलेगा। आवश्यकता आधारित अवधारणा से हटकर मांग आधारित खेती की एक नई शुरुआत होगी। अंतरराज्यीय एवं अंतरराष्ट्रीय कृषि मांग के अनुरूप उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। एक देश एक बाजार की अवधारणा हमारे सामने विकास की नई इबारत लिखेगी। इससे किसानों की आय में भी सुधार होगा और देश में बेरोजगारी भी घटेगी। यदि इसमें कुछ कमियां हैं तो सुधार किया जा सकता है। विपक्षी दलों को भी अपने राजनीतिक लाभ-हानि को छोड़कर देश के विकास और दूरगामी लाभ को ध्यान में रखते हुए देशहित में ही कार्य करना चाहिए। आने वाले समय में जब इन कानूनों की सार्थकता सामने आएगी तो उनके सामने अपना सिर धुनने के अलावा कोई और चारा नहीं होगा।

भारत में कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ा, परंतु यह वृद्धि असंतुलित रही

पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ा, परंतु यह वृद्धि असंतुलित ही रही है। इसी कारण किसानों की स्थिति में बहुत सुधार नहीं हो सका है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रति एकड़ औसत आय लगभग 20,000 रुपये तक ही रही है और लगभग 10 करोड़ किसान परिवारों के पास करीब दो-तीन एकड़ ही कृषि योग्य भूमि ही है।

नए कृषि कानूनों से कृषि में आधुनिकीकरण की एक नई शुरुआत होगी

इस तर्क से सभी विशेषज्ञ सहमत हैं कि नए कृषि कानूनों से कृषि में आधुनिकीकरण की एक नई शुरुआत होगी। किसानों को अच्छे बीज और सिंचाई से लेकर भंडारण एवं बाजार की उपलब्धता और अधिक आसान हो जाएगी। भारत की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता के अलावा उत्पादन में भी अधिक बढ़ोतरी की संभावनाएं विद्यमान हैं। भारत में जमीन की उपलब्धता विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है, परंतु उत्पादकता उन देशों की तुलना में मात्र एक चौथाई ही है।

21वीं सदी में अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में नए कृषि कानून सहायक होंगे

आज यह समझने की आवश्यकता है कि 21वीं सदी में अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में नए कृषि कानून वास्तव में सहायक होंगे। सुनहरे भविष्य के लिए किसानों को आज नए कृषि कानूनों को स्वीकार करने की मानसिक परिपक्वता का परिचय देना होगा। सब्सिडी के लिए किसान सरकार पर निर्भर न रहकर सरकार से कृषि में दीर्घकालीन निवेश की मांग करें जिससे कृषि में तकनीकी, वैज्ञानिकता, शोध, उर्वरक, नई तरह के बीज एवं कृषि विज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तनों को अमल में लाया जा सके।

देशहित में सबके हितों की रक्षा का दायित्व सरकार का है

इन बातों के मद्देनजर सरकार को कृषि कानून को वापस लिए बिना किसानों को यह स्पष्ट कर देना अति आवश्यक है कि लोकत्रंत में लोगों की बात को मानना लोकतंत्र का सम्मान करना है, परंतु देशहित में सबके हितों की रक्षा का दायित्व भी सरकार का ही है जिसमें लचीलेपन की गुंजाइश सदैव मौजूद होती है।

( लेखक अर्थशास्त्री हैं )