[ क्षमा शर्मा ]: साहिर की मशहूर नज्म है, ‘औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया,’ लेकिन अब तो हाल यह हो गया है कि बेचारी नन्ही बच्चियों को देह बाजार में वे औरतें धकेल रही हैं जिन पर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी है। मुजफ्फरपुर में जबसे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की रिपोर्ट से यह मामला खुला है कि वहां के आश्रय गृह की 42 में से 34 लड़कियों का यौन शोषण हो चुका है, तबसे तूफान आ गया है। इन अपराधों के कारण बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा है।

हालांकि अंत समय तक वह यही बात कहती रहीं कि इस प्रकरण में उनके पति चंद्रेश्वर वर्मा की संलिप्तता बेबुनियाद है। वह तो सिर्फ एक बार ही उस आश्रय स्थल में गए थे, वह भी उनके साथ, जबकि जेल अधिकारी की पत्नी का कहना है कि चंद्रेश्वर वर्मा सबको नीचे छोड़कर ऊपर जाता था, जहां लड़कियां रहती थीं। इस आश्रय स्थल का प्रमुख अपराधी ब्रजेश ठाकुर एक एनजीओ चलाता है जिसका नाम है-सेवा संकल्प एवं विकास समिति।

कितनी अजीब बात है, नाम ऐसे रखो जिनसे लगे कि आप देश सेवा के लिए सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं और काम ऐसे करिए कि सुनने वाले आपसे नफरत करने लगें, मगर आप पर कोई असर न पड़े। तभी तो जब ब्रजेश ठाकुर को गिरफ्तार किया गया तो वह ऐसे मुस्करा रहा था जैसे कोई बड़ा भारी मोर्चा फतह करके निकला हो।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि अपराधी बख्शे नहीं जाएंगे, मगर यह बात भी सच है कि बिना सरकारी और प्रशासनिक संरक्षण के ऐसे अपराध किए नहीं जा सकते। मान लीजिए टाटा इंस्टीट्यूट ने ऐसी रिपोर्ट न बनाई होती तो यह धंधा बेलगाम होकर चलता ही रहता। वे बच्चियां जो पहले से ही माता-पिता के संरक्षण से दूर हैं, जिन्हें जीवित रहने के लिए किसी आश्रय स्थल की शरण लेनी पड़ी हो, वे तो पहले से ही सताई गई हैं, उन पर इस तरह के अत्याचार करने वाले वाकई हैवान हैं। कबीर का यह दोहा ही याद कर लिया होता कि ‘दुर्बल को न सताइए जा की मोटी हाय, मुई खाल की सांस सो सार भसम होई जाय।’

इन लड़कियों से ज्यादा दुर्बल और सताया गया कौन होगा? इन्हें हमेशा बंद कमरों में रखा जाता था और सिर्फ खाने के लिए बाहर निकाला जाता था। टाटा इंस्टीट्यूट ने मोतिहारी, भागलपुर, मुंगेर और गया के लड़कों के आश्रय स्थल के बारे में भी शिकायत की है कि वहां भी इन बच्चों को तरह-तरह के यौन शोषण से गुजरना पड़ता है, मगर अफसोस कि इस बारे में कहीं कोई चर्चा सुनाई नहीं दी। जैसे कि लड़कों का यौन शोषण अपराध न हो। बालिका गृह के मामले में बहुत से अधिकारियों को निलंबित किया गया है। ग्यारह में से दस आरोपियों को पकड़ भी लिया गया है, लेकिन जब तक इनके अपराधों का फैसला आएगा तब तक लोगों की स्मृति से यह कांड धुंधला हो गया होगा।

इसलिए जरूरी है कि ऐसे मामलों में त्वरित फैसला आए और वह राजनीतिक दबाव से मुक्त भी हो, क्योंकि मुजफ्फरपुर कांड की आग अभी धीमी नहीं पड़ी थी कि देवरिया के विंध्यवासिनी आश्रय स्थल के बारे में ऐसी खबरें आने लगीं। बताया जा रहा है कि ग्यारह साल की एक बच्ची को इस आश्रय गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी ने घर का फर्श साफ करने के लिए नीचे बुलाया। बच्ची काम कर रही थी कि गिरिजा का फोन आ गया। बस बच्ची वहां से निकल भागी और सीधे पुलिस स्टेशन पहुंची। वहां पुलिस के सामने उसने जो दास्तान बयान की उससे पुलिस फौरन हरकत में आ गई।

बच्ची ने कहा कि शाम को कई रंगों की गाड़ियां आती हैं। उनमें संचालिका दीदी आश्रय गृह की लड़कियों को लेकर जाती हैं। सवेरे वे लड़कियां लौटती हैैं तो रोती हुई और पूछने पर कुछ नहीं बताती हैैं। यह अभागी बच्ची सौतेली मां के अत्याचारों की शिकार हुई। वहां से इसे नानी के घर भेज दिया गया। नाना-नानी ने भी इसे पाला नहीं और विंध्यवासिनी आश्रय स्थल में भेज दिया। इस बच्ची की हिम्मत की तारीफ की जानी चाहिए कि वह न केवल खुद नर्क से निकली, बल्कि अन्य बच्चियों को भी राहत दिलाई।

इस प्रकरण में पुलिस और उत्तर प्रदेश सरकार की भी तारीफ करनी होगी कि बच्ची की शिकायत पर बिहार के मुकाबले बहुत तेजी से कार्रवाई हुई। संचालिका गिरिजा त्रिपाठी और उसके पति मोहन त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस आश्रय स्थल से 24 लड़कियों को मुक्त भी कराया गया। गिरिजा त्रिपाठी के बारे में कह जाता है कि वह रातों-रात करोड़पति बन गई। यही नहीं उसे समाज सेवा के लिए तमाम सरकारी और गैर-सरकारी पुरस्कार और सम्मान भी मिल चुके हैं। दरअसल यह आश्रय स्थल पहले से ही विवादों के घेरे में था, मगर कहा जाता है कि गिरिजा के रसूख के कारण इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में हरदोई के भी ऐसे ही बालिका आश्रय स्थल की संचालिका को गिरफ्तार कर लिया गया। यहां से 19 लड़कियां गायब मिलीं।

इन घटनाओं के बाद तो जैसे सब जगह अफरा-तफरी मच गई। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने तमाम सवाल उठाए और चिंता प्रकट की। दिल्ली के बालिका गृहों की भी जांच की बात सामने आ रही है। महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि साठ दिनों में देशभर में फैले नौ हजार बासठ आश्रय स्थलों की जांच कराई जाएगी। बाल अधिकार आयोग को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

बिहार के मामले की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि देश में यह क्या हो रहा है। लेफ्ट, राइट, सेंटर हर जगह दुष्कर्म हो रहे हैं। अदालत का कहना सही है। इस साल अब तक 38,947 दुष्कर्म की घटनाएं रिपोर्ट की जा चुकी हैं। हालांकि हकीकत में कितनी हुई होंगी कहा नहीं जा सकता। रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, अस्पताल, दफ्तर, स्कूल, कॉलेज, धार्मिक स्थल और बालिकाओं के संरक्षण के लिए बनाए गए ऐसे आश्रय स्थलों में इस तरह की घटनाएं होना बेहद शर्मनाक है। सरकारों से भारी मदद लेकर भी इन आश्रय स्थलों को चलाने वालों का पेट नहीं भरता है। वे लड़कियों को कुओं और खाइयों में धकेलने से परहेज नहीं करते। ऐसे लोगों की जितनी निंदा की जाए कम है।

[ लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार एवं स्तंभकार हैैं ]