[ ब्रह्मा चेलानी ]: लद्दाख में भारतीय जमीन पर बदनीयती की मंशा से चीन ने जो आक्रामकता दिखाई वह कोई नई बात नहीं। यह वर्ष 1979 में वियतनाम में घुसपैठ की उसकी नाकाम रणनीति का ही एक विस्तार है। यह रणनीति वास्तव में बिना जंग लड़े ही जमीन कब्जाने पर केंद्रित है। इसी कड़ी में उसने 1988 में जॉनसन रीफ और 1995 में मिसचीफ रीफ को कब्जाने के साथ ही 2012 में स्कारबरो शोल पर भी कब्जा कर लिया। 2013 से उसने पड़ोसी देशों की जमीनों पर अपने दावे ठोकना तेज किया। उसने गोली दागे बिना ही दक्षिण चीन सागर के भूराजनीतिक नक्शे को बदल दिया। दुर्गम ऊंचाई वाले लद्दाख में चीनी सेना यानी पीएलए की आक्रामकता 1980 के दशक में अपनाई गई जमीन हड़पने की नीति से अलग है। अब चीन सीमा पर खाली पड़ी जमीन को भारत की नाक के नीचे से कब्जाने की अपनी आम परिपाटी से परे चला गया है।

दक्षिण चीन सागर में चीन का क्षेत्रीय विस्तार विवादित

दक्षिण चीन सागर में चीन का क्षेत्रीय विस्तार मुख्य रूप से विवादित, लेकिन खाली पड़े शोल्स और रीफ्स को हथियाने पर केंद्रित रहा है। बाद में उसने उन्हें कृत्रिम सैन्य द्वीपों में बदल दिया। इसी कड़ी में पीएलए ने 2017 में हिमालयी क्षेत्र में निर्जन और उजाड़ डोकलाम पठार में घुसपैठ की। दुनिया में सबसे छोटे देशों में से एक भूटान ने दावा किया कि यह उसका क्षेत्र है। चूंकि भारत ने भूटान को सुरक्षा उपलब्ध कराने की गारंटी दी हुई थी तो इस घुसपैठ को लेकर डोकलाम के दक्षिण पश्चिम कोने पर भारत और चीनी सेना के बीच दस हफ्तों का लंबा गतिरोध चला।

चीनी आक्रामकता पड़ोसी देशों की हड़प रही जमीन

चीनी आक्रामकता पड़ोसी देशों की जमीन हड़पती जा रही है। चीन समर्थक कम्युनिस्ट सरकार वाले नेपाल में लीक हुई एक हालिया आंतरिक रिपोर्ट में चेताया गया है कि उसकी जमीन चीनी निर्माण परियोजनाओं की भेंट चढ़ती जा रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस कवायद से नदियों की धारा में भी बदलाव हो रहा है। पूर्वी चीन सागर में जापान प्रशासित सेनकाकू द्वीप में भी चीन ने घुसपैठ की है। इसका मकसद जापानी नियंत्रण को कमजोर कर अपनी संप्रभुता के दावे को मजबूत करना है। चीन के ऐसे आक्रामक रुख के आगे जापान स्वयं को रक्षात्मक स्थिति में पा रहा है।

चीन के क्षेत्रीय विस्तारवादी मंसूबे खतरनाक

भारत के खिलाफ आक्रामकता की चीनी सेना की तिकड़मों वाली परिपाटी यही संकेत करती है कि चीन के क्षेत्रीय विस्तारवादी मंसूबे खतरनाक दौर में दाखिल हो गए हैं। चीनी सेना बड़े निर्लज्ज ढंग से उस जमीन पर काबिज हो गई जो वास्तव में दूसरे देश की सैन्य गश्त वाले इलाके में आती थी। इस हरकत से चीन और भारत के द्विपक्षीय रिश्तों में 1962 की जंग के बाद से सबसे बड़ी गिरावट देखी जा रही है। भारतीय सेना की किसी संभावित कार्रवाई का जवाब देने के लिए चीनी सेना ने हिमालयी क्षेत्र में भारत से लगती सीमा पर सैन्य जमावड़ा बढ़ा दिया है। अब दोनों पक्ष दुनिया की सबसे दुर्गम सीमा के इर्दगिर्द तल्ख सैन्य गतिरोध में फंसे हुए हैं।

छल-कपट और अप्रत्याशित हमले चीनी सैन्य रणनीति का अभिन्न हिस्सा

छल-कपट और अप्रत्याशित हमले चीनी सैन्य रणनीति का अभिन्न हिस्सा हैं। लद्दाख में उसका दुस्साहस चीनी राष्ट्रपति शी चिर्नंफग के भारत में दिए गए इस बयान के छह महीने बाद ही देखने को मिला, जिसमें शी ने कहा था कि भारत और चीन के रिश्ते एक नए दौर में दाखिल हो गए हैं। शी ने भारत पर तब प्रहार किया जब उसका ध्यान चीन से उपजे कोरोना वायरस से निपटने में दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन को लागू करने में लगा हुआ था।

चीन ने लद्दाख के उन इलाकों में घुसपैठ की जो सीमा रेखा से दूर हैं

चीन ने लद्दाख के उन इलाकों में घुसपैठ की जो वास्तव में उसकी कृत्रिम रूप से खींची गई सीमा से भी खासे दूर हैं। इसने शी के नेतृत्व में चीन की जमीन कब्जाने की भूख को ही रेखांकित किया है। बीजिंग ने बार-बार दोहराया है कि वह किसी भी नए भौगोलिक क्षेत्र पर दावा कर सकता है या किसी भी वक्त कहीं भी यथास्थिति को खत्म कर सकता है।

बीजिंग ने भूटान के पूर्वी हिस्से पर किया दावा, अरुणाचल और भूटान के खिलाफ नई मुहिम

मिसाल के तौर पर इसी साल जुलाई से बीजिंग ने भूटान के पूर्वी हिस्से पर दावा करना शुरू कर दिया, जिसकी सीमा केवल अरुणाचल से मिलती है। इस नए दावे के साथ ही चीन ने अरुणाचल और भूटान के खिलाफ एक नई मुहिम छेड़ दी है। चीन के सरकारी मीडिया ने अचानक ही यह भी खोज निकाला कि ताजिकिस्तान में पामीर का पठार ऐतिहासिक रूप से चीन का हिस्सा है।

चीन ने मई में माउंट एवरेस्ट पर भी ठोका था दावा

इससे पहले मई में उसने नेपाली संप्रभुता की प्रतीक और दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर भी दावा ठोका था। पिछले महीने ही चीनी सरकारी जहाज जापान के दक्षिणतम बिंदु ओकिनोतोरी द्वीप के विशेष र्आिथक क्षेत्र यानी ईईजेड में सामुद्रिक शोध गतिविधियां करता पाया गया। जब टोक्यो ने इसका विरोध किया तो बीजिंग ने कहा कि इस ईईजेड पर जापान के इकलौते दावे का कोई कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि ओकिनोतोरी द्वीप नहीं, बल्कि चट्टानों का समूह है।

किसी देश की जमीन हथियाना और दावा करना चीन की पुरानी तिकड़म है

किसी देश की जमीन हथियाना और दावा करना कि वह प्राचीनकाल से चीन का हिस्सा है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पुरानी तिकड़म है। इसी कड़ी में उसने गलवन घाटी पर दावा किया है। चूंकि चीन 1951 में तिब्बत पर कब्जा करके ही भारत का पड़ोसी बना इसलिए भारत, नेपाल, भूटान और म्यांमार के साथ चीन की सीमा भी लग गई।

शी वहां से शुरुआत करना चाहते हैं जहां से माओ ने काम अधूरा छोड़ा था 

असल में शी वहां से शुरुआत करना चाहते हैं जहां से माओ ने काम अधूरा छोड़ा था। माओ तिब्बत को चीन की हथेली के साथ ही नेपाल, भूटान के अलावा लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल जैसे तीन भारतीय इलाकों को उसकी पांच अंगुलियां मानते थे और यह कहते थे कि चीन को उन्हें भी मुक्त कराना है। इस प्रकार देखें तो शी माओ के विस्तारवाद से जुड़े अधूरे एजेंडे को पूरा करने में ही जुटे हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनाने का सपना

चीन में कम्युनिस्ट शासन की स्वर्ण जयंती (2049) तक चीन को दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनाने के सपने को पूरा करने की दिशा में शी द्वारा एक साथ खोले गए कई मोर्चे खुद इसकी पुष्टि करते हैं। ये मोर्चे हांगकांग, ताइवान से लेकर दक्षिण-पूर्व चीन सागर और हिमालय तक फैले हुए हैं।

शी को जब तक रणनीतिक लाभ मिलता रहेगा तब तक विस्तारवाद अभियान आगे बढ़ता रहेगा

जब तक शी को अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर दुस्साहस का रणनीतिक लाभ मिलता रहेगा तब तक वह विस्तारवाद के अपने अभियान को आगे बढ़ाते रहेंगे। हालांकि इस कवायद में वह चीन के अंतरराष्ट्रीय बहिष्कार के बीज भी बो रहे हैं जिससे ‘चीनी स्वप्न’ को साकार करने की उनकी मंशा को सिरे चढ़ाना मुश्किल होगा।

( लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं )