संजय दुबे। देशव्यापी लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई करने हेतु केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इस दौर में एक नया संकट यह भी खड़ा हो गया है कि शहरों से बड़ी संख्या में मजदूर-कामगार गांव लौट आए हैं। इसका असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। ऐसे में गांव लौटे इन मजदूरों को अनेक प्रकार से मदद मुहैया कराते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ही आजीविका के उपाय तलाशे जा रहे हैं। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत सरकार ने बीस हजार करोड़ रुपये के जिस पैकेज की स्वीकृत दी है, उसके जरिये व्यापक संख्या में गांवों में रोजगार सृजन किया जा सकता है।

दुनिया के मछली उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। अगर इस पैकेज का सही क्रियान्वयन हो गया, तो हो सकता है कि हम शीर्ष पर पहुंच जाएं। भारतीय समुद्री उत्पाद का सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है। वहां पहुंचने वाले समुद्री उत्पादों में भारत की हिस्सेदारी करीब 26 प्रतिशत है। मत्स्य क्षेत्र का देश की कृषि व्यवस्था में लगभग सवा पांच प्रतिशत योगदान है। इस क्षेत्र में भारत के आगे बढ़ने का सबसे शानदार मौका है, क्योंकि भारत में कुल मछलियों का करीब 33 फीसद उत्पादन ताजे जल में होता है। मछली और इससे संबधित अन्य उत्पादों के उत्पादन में भारत की विकास दर दुनिया की विकास दर से दोगुनी है।

वैश्विक स्तर पर इस सेक्टर की बढ़त दर छह से सात फीसद वार्षिक है, जबकि भारत में यह 14 फीसद है। इस क्षेत्र में करीब दो करोड़ लोग सीधे रूप से जुड़े हैं। आज शहरों से हुए उल्टे पलायन ने गांवों के संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। इससे निपटने का एक ही रास्ता है कि नए रोजगार क्षेत्र खोजे जाएं। हम अपने उपलब्ध जल संसाधनों का कुल 55 प्रतिशत ही उपयोग कर रहे हैं जिसे और बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए जहां प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में बीस हजार करोड़ की व्यवस्था हुई है, वहीं इसमें मनरेगा का भी बजट शामिल होगा, क्योंकि गांवों के तालाबों व जलाशयों आदि का निर्माण व सुंदरीकरण के लिए इसी योजना से धन आवंटित होता है। इसके लिए नए तालाबों का निर्माण, मछली पालन की नई तकनीक आदि के संबंध में जानकारी प्रदान करके इसे बहुत आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

मछली में उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन मिलता है। दुनिया के अनेक देशों में भारतीय मछली की मांग है। देश में भी इसकी मांग बहुत अधिक है। लोगों के खाने के रुझान में भी बदलाव हो रहा है। हर व्यक्ति पौष्टिक खाना पसंद करता है। उस लिहाज से भी समुद्री या जलीय उत्पाद की मांग लगातार बढ़ रही है। अगर देश में मछली उत्पादक राज्यों पर नजर डालें तो तकरीबन दस राज्य प्रमुख रूप से उभर कर आते हैं। ये हैं आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और झारखंड। इसमें पूर्वोत्तर के राज्य नहीं शामिल हैं, जबकि असम व पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी इसकी काफी संभावनाएं हैं।

इसके अलावा हर छोटे बड़े राज्य में मछली की खेती पर अभी समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है। जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश को ही लीजिए। इनके पास आंध्र प्रदेश से ज्यादा मीठे जल स्नोत हैं। फिर भी ये मछली के लिए उस राज्य पर अधिक निर्भर हैं। इसका बस एक ही कारण है। मछली उत्पादन में नई तकनीक का उपयोग नहीं करना। बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में मछली पालन की अपार संभावनाएं है। वहां मौजूद जलीय स्नोतों को विकसित करते हुए शहरों से लौट रही एक बड़ी आबादी को आजीविका मुहैया कराने में मदद मिल सकती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)