आम किसानों की आड़ में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चंद किसान संगठनों के आंदोलन के दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ चलाए गए बेहद आपत्तिजनक हैशटैग को लेकर ट्विटर को जो चेतावनी दी गई, वह किसी कार्रवाई में तब्दील होनी चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि एक तो ट्विटर बेलगाम होता जा रहा है और दूसरे वह आपत्तिजनक एवं बैर बढ़ाने वाले हैशटैग को बढ़ावा देने में माहिर हो गया है। उसने भारत के लिए अलग मानदंड बना रखे हैं और अन्य देशों, खासकर अमेरिका के लिए अलग। वह अमेरिका में गुमराह करने वाले ट्वीट के आधार पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक को प्रतिबंधित कर देता है, लेकिन भारत में झूठी खबरों के जरिये वैमनस्य बढ़ाने, माहौल खराब करने और लोगों को भड़काने वाले तत्वों को संरक्षण देता है। उसने न तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की, जिन्होंने नितांत फर्जी खबर गढ़कर राष्ट्रपति पर छींटाकशी की और न ही उनके विरुद्ध, जिन्होंने किसानों के संहार की कथित योजना को प्रचारित किया। ट्विटर ने इन शरारती तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की भी तो दिखावटी। ऐसा करके उसने भारत सरकार की आंखों में धूल ही झोंकी।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ट्विटर ने भारत में राष्ट्रीय विमर्श को जिस बुरी तरह दूषित किया है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ट्विटर सरीखे प्लेटफॉर्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बेजा इस्तेमाल न करने पाएं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न तो असीम है और न ही हो सकती है। भारत सरकार को अपने खिलाफ होने वाले दुष्प्रचार की काट करने के लिए भी कमर कसनी होगी, क्योंकि कई लोग किसान आंदोलन की सच्चाई से अनजान होने के बाद भी बहती गंगा में हाथ धोने में लगे हुए हैं। इनमें खालिस्तान समर्थकों के अलावा भारत से बैर रखने वाले भी हैं और सेलेब्रिटी कहे जाने वाले लोग भी। इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि गायिका रिहाना और पर्यावरण को लेकर चिंतित रहने वाली ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के सिर-पैर को जाने-समझे बिना किसानों के समर्थन में अपने ट्वीट दाग दिए। एक तो यह आम किसानों का नहीं, बल्कि देश के एक खास इलाके के सक्षम किसानों का आंदोलन है और दूसरे, यदि रिहाना और ग्रेटा सचमुच भारतीय किसानों को लेकर चिंतित हैं तो फिर उन्हेंं उन धनी देशों के कान उमेठने चाहिए, जो विश्व व्यापार संगठन में इसका विरोध करते हैं कि भारत अपने किसानों को सब्सिडी क्यों देता है? ऐसा करने के बजाय किसान आंदोलन पर चिंता जताना घड़ियाली आंसू बहाना है। इन घड़ियाली आंसुओं से यह हकीकत छिपने वाली नहीं कि किसानों का यह आंदोलन आम और असल किसानों के हितों को चोट पहुंचाने वाला है।