एक ऐसे समय जब केंद्र सरकार यह चाह रही है कि टीकाकरण अभियान युद्धस्तर पर चले, तब कुछ राज्यों की ओर से टीकों की कमी का सवाल खड़ा किया जाना असमंजस पैदा करता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि टीकाकरण पर संकीर्ण राजनीति होने लगी है या फिर उनकी आपूर्ति में वांछित तेजी न आ पा रही हो? सच जो भी हो, टीकाकरण अभियान को गति देना तभी संभव होगा, जब टीकों की कमी का कोई मसला सामने न आए। हालांकि केंद्र सरकार ने ऐसे आंकड़े जारी कर दिए कि कितने टीकों की आपूर्ति की जा चुकी है और अभी तक कितनों का उपयोग हुआ है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आपूर्ति किए गए और इस्तेमाल में लाए गए टीकों की संख्या में कोई बहुत अंतर नहीं है। इन स्थितियों में एक तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि राज्यों को पर्याप्त मात्रा में टीकों की आपूर्ति होती रहे और दूसरे यह कि प्रतिदिन कम से कम 50 लाख लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य अवश्य हासिल हो। इस सबके बीच टीकों के खराब होने के कारणों का भी निवारण किया जाना चाहिए। इसका कोई मतलब नहीं कि कुछ राज्यों में टीकों के खराब होने की दर 15-16 प्रतिशत से भी अधिक बनी रहे।

अभी जिस रफ्तार से टीके लग रहे हैं, वह संतोषजनक नहीं, क्योंकि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और यह मांग भी बढ़ती जा रही है कि 45 साल से कम आयु वालों का भी टीकाकरण हो। इस मांग के पीछे प्रमुख कारण यह है कि कोरोना संक्रमण की मौजूदा लहर अपेक्षाकृत कम आयु वालों को भी अपनी चपेट में ले रही है। इसकी वजह कोरोना वायरस के बदले हुए रूप भी हो सकते हैं और लोगों की ओर से अपेक्षित सतर्कता न बरतना भी। यदि टीकाकरण की गति को बढ़ाया नहीं गया तो पर्याप्त संख्या में लोगों के टीके लगने में लंबा समय लग सकता है। यह ध्यान रहे कि अभी दस प्रतिशत आबादी का भी टीकाकरण नहीं हो सका है। ऐसे में यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि टीकों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के ठोस कदम जल्द उठाए जाएं। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि अन्य टीकों के उत्पादन की प्रक्रिया को यथाशीघ्र मंजूरी दी जाए। जो भी कंपनियां टीके का उत्पादन करने में सक्षम हैं, लेकिन फिलहाल किन्हीं कारणों से उनका उत्पादन नहीं कर रही हैं, उन्हेंं भी इस काम में लगाया जाना चाहिए। युद्धस्तर पर टीकाकरण तभी संभव है, जब उनका उत्पादन भी युद्धस्तर पर हो। टीका उत्पादन बढ़ाने को प्राथमिकता इसलिए भी देनी चाहिए, क्योंकि कोरोना संक्रमण की एक और लहर आ सकती है।