सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने की मांग को जिस तरह अस्वीकार किया उससे एक बड़ी हद तक इस प्रचार की हवा ही निकली कि यह कानून इस कदर संविधान विरोधी है कि तुरंत खारिज हो जाएगा। यह भी उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगते हुए इस मामले की सुनवाई को लेकर वैसी कोई तत्परता नहीं दिखाई जैसी तमाम याचिकाकर्ता चाह रहे थे। अब जब सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता कानून की संवैधानिकता की परख तय हो गई है तब फिर क्या यह उचित नहीं होगा कि उसका हिंसक विरोध करना बंद किया जाए? कम से कम उन्हें तो यह काम करना ही चाहिए जो संविधान, लोकतंत्र और न्याय की दुहाई देने लगे हुए हैं।

दुर्भाग्य से इसके आसार कम ही हैं, क्योंकि इस कानून के अराजक विरोध के पीछे एक बड़ी वजह अज्ञानता भी है और शरारत भरी राजनीति भी। इसी राजनीति के तहत नागरिकता कानून को लेकर सुनियोजित तरीके से झूठ फैलाया जा रहा है। जो इस सच से परिचित हो रहे हैं कि नागरिकता कानून का किसी भी भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं उन्हें प्रस्तावित एनआरसी से भयाक्रांत करने की कोशिश हो रही है। कोई एनआरसी को नागरिकता कानून का हिस्सा बताने में जुटा है तो कोई उसे धार्मिक आधार पर नागरिकों की पहचान की कवायद साबित करने की कोशिश कर रहा है। इसे शरारत के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी तो प्रस्तावित एनआरसी की प्रक्रिया ही नहीं तय की गई है।

नागरिकता कानून को लेकर जारी दुष्प्रचार के खिलाफ केंद्र सरकार को और अधिक सक्रियता दिखाने की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि यह साफ है कि कई राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठन लोगों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। वास्तव में इसी कारण नागरिकता कानून का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। नागरिकता कानून को लेकर किस तरह राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम हो रहा है, इसका संकेत इससे भी मिलता है कि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ दायर करीब साठ याचिकाओं में से एक बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों या फिर नेताओं ने दायर की हैं।

यह कोई नई-अनोखी बात नहीं, लेकिन यह तो विचित्र है ही है कि नागरिकता कानून पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले दल लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए भी उकसा रहे हैं। इनमें वे भी शामिल हैं जो एक समय बांग्लादेश और पाकिस्तान में सताए गए अल्पसंख्यकों के लिए वैसी ही राहत चाह रहे थे जैसी उन्हें नागरिकता संशोधन कानून के जरिये दी जाने वाली है।