यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने दीवाली पर पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगाना ठीक नहीं समझा, क्योंकि एक तो उसके आदेश का पालन कराना मुश्किल होता और दूसरे ऐसे किसी फैसले का यह कहकर विरोध भी होता कि सबसे बड़े पर्व की उत्सवधर्मिता खत्म की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने दीवाली पर केवल रात आठ से दस बजे के बीच पटाखे चलाने की अनुमति दी है, लेकिन क्या पूरे देश में इस समय सीमा का पालन हो सकेगा? इसी से जुड़ा सवाल यह भी है कि क्या पटाखे चलाने के लिए पूरे देश को दो घंटे की समय सीमा में बांधने की जरूरत है? यह समयावधि उत्तर और पश्चिम भारत के एक बड़े हिस्से के लिए तो उचित जान पड़ती है, क्योंकि वह मौसम में तब्दीली के कारण गंभीर किस्म के वायु प्रदूषण की चपेट में आ जाता है।

दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में तो अभी से ही वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इसे देखते हुए बेहतर यही होगा कि कि उत्तर और पश्चिम भारत के लोग दीवाली पर पटाखे चलाने में संयम बरतें। संयम केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में ही नहीं, अपनी सेहत की हिफाजत के लिए भी बरतें। इससे इन्कार नहीं कि समय के साथ पटाखे दीवाली का हिस्सा बन चुके हैैं, लेकिन जब उनका अधिक इस्तेमाल सेहत के लिए संकट बन जा रहा हो तो फिर उनका सीमित प्रयोग वक्त की जरूरत है। ऐसी कोई जरूरत पूरे देश में इसलिए नहीं नजर आती, क्योंकि दक्षिण, पूर्वी भारत के साथ पूर्वोत्तर में सर्दियों का आगमन समस्या नहीं बनता।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि केवल मानकों पर खरे उतरने वाले ग्रीन यानी कम प्रदूषण वाले पटाखे चलाएं जाएं। आदेश तो सर्वथा उचित है, लेकिन क्या देश भर में ग्रीन पटाखे उपलब्ध भी हैैं? ऐसा तो तब होता जब वायु एवं ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों का निर्माण ही बंद करने के आदेश समय रहते दिए गए होते। कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि भविष्य में ग्रीन पटाखे ही बनें और बिकें ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी।

दरअसल समय रहते हर स्तर पर व्यापक तैयारी और उचित नियमन के जरिये ही दीवाली अथवा अन्य त्योहारों पर चलने वाले पटाखों से उपजने वाले प्रदूषण पर प्रभावी लगाम लगाई जा सकती है। यह समझा जाना चाहिए कि जब कोई कार्य एक परंपरा का रूप ले ले तब केवल आदेश-निर्देश एक सीमा तक ही असर करते हैैं। यह बात दीवाली पर पटाखों पर रोकथाम के साथ ही अन्य अनेक मामलों में भी लागू होती है। वैसे इसमें कुछ भी अनपेक्षित नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि दिल्ली-एनसीआर में जहां तक संभव हो सके, सामुदायिक तौर पर पटाखे चलाएं जाएं।

हालांकि सघन आबादी वाले इस पूरे क्षेत्र में आतिशबाजी के लिए सामुदायिक केंद्र तय करना और लोगों को वहीं जाकर पटाखे चलाने के लिए प्रेरित करने के लिए समय कम है, लेकिन ऐसा हो सके तो अच्छा। बेहतर तो यह होगा कि दिल्ली-एनसीआर के बाहर भी सामुदायिक स्थलों पर पटाखे चलाने की परंपरा विकसित हो।