राफेल सौदे की जांच की मांग करने वाली पुनर्विचार याचिका खारिज कर उच्चतम न्यायालय ने इस सौदे में बोफोर्स सौदे जैसा कुछ खोज निकालने के शातिर इरादों पर तो पानी फेरा ही, छल-कपट की राजनीति को भी बेनकाब किया।

यदि उच्चतम न्यायालय ने इस सौदे में संदेह करने का कोई कारण नहीं पाया तो इसका मतलब यही है कि जो लोग इस सौदे को संदिग्ध बताने पर तुले थे वे सरकार को बदनाम करने का सुनियोजित अभियान चला रहे थे।

हालांकि इस अभियान के अगुआ राहुल गांधी और उनके साथियों के पास राफेल सौदे में गड़बड़ी का कोई प्रमाण नहीं था, फिर भी वे प्रधानमंत्री को चोर बताने में लगे हुए थे। राहुल गांधी की ओर से उछाला गया चौकीदार चोर है का नारा महज खिसियाहट भरी अभद्र राजनीति का ही परिचायक नहीं था, बल्कि इसका भी प्रमाण था कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो के लिए कोई किस हद तक जा सकता है।

राहुल गांधी ने केवल प्रधानमंत्री के खिलाफ ही अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि फ्रांस के साथ राजनयिक संबंधों को भी चोट पहुंचाई। क्या इससे गैर जिम्मेदाराना राजनीति और कोई हो सकती है? राहुल गांधी खुद को सही साबित करने के लिए किस तरह छल का सहारा लेने में लगे हुए थे, इसका पता इससे चलता है कि वह यह प्रचारित करने में भी जुटे थे कि उच्चतम न्यायालय यह कह रहा है कि प्रधानमंत्री ने चोरी की है।

भले ही इस सियासी शरारत के लिए उच्चतम न्यायालय ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की जरूरत न समझी हो, लेकिन आखिर वह उस जनता का सामना कैसे करेंगे जिसके समक्ष वह राफेल सौदे में गड़बड़ी के हास्यास्पद और मिथ्या दावे किया करते थे?

यह लज्जाजनक है कि राफेल सौदे पर सस्ती और एक तरह से देशघाती राजनीति तब की गई जब संप्रग सरकार के नाकारापन के कारण भारतीय वायु सेना युद्धक विमानों के अभाव से बुरी तरह जूझ रही थी। आखिर किन संकीर्ण स्वार्थो के लिए राष्ट्रीय हितों की जानबूझकर अनदेखी की गई? यह आपराधिक किस्म की राजनीति थी। ऐसी ही हरकतों से राजनीति बदनाम होती है।

अफसोस केवल यह नहीं कि बिना किसी सुबूत राहुल गांधी झूठ का पहाड़ खड़ा करने में लगे हुए थे, बल्कि इस पर भी है कि प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने उनकी झूठ की राजनीति में सहभागी बनना बेहतर समझा।

समझना कठिन है कि जब उनके पास ऐसे कोई तथ्य थे ही नहीं जो राफेल सौदे में गड़बड़ी को इंगित करते तब फिर वे क्या हासिल करने के लिए एक जरूरी रक्षा सौदे को संदिग्ध बता रहे थे? आखिर इससे उन्हें अपयश के अलावा और क्या मिला?