लड़कियों के विवाह की आयु 18 से 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही सामाजिक सुधार की दिशा में एक और कदम बढ़ा दिया गया। ऐसे किसी फैसले की उम्मीद तभी बढ़ गई थी, जब प्रधानमंत्री ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने संबोधन में इसका उल्लेख किया था। इस फैसले पर अमल के साथ ही महिलाओं और पुरुषों, दोनों की विवाह योग्य आयु 21 वर्ष हो जाएगी। यह लैंगिक समानता को तो सुदृढ़ करेगा ही, लड़कियों को पढ़ने-लिखने के अधिक अवसर भी प्रदान करेगा। इसके नतीजे में वे कहीं अधिक आसानी से अपनी पढ़ाई पूरी करने और नौकरी करने में भी समर्थ होंगी। इसके अलावा इस कदम से मातृ मृत्यु दर कम करने और कुपोषण की समस्या पर लगाम लगाने में भी मदद मिलेगी।

यह पहल बाल विवाह की कुप्रथा पर भी चोट करने में सक्षम होनी चाहिए। स्पष्ट है कि महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु 21 वर्ष करने के फैसले से सामाजिक लाभ भी मिलेंगे और आर्थिक भी। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि संबंधित विधेयक को संसद के इसी सत्र में पेश किया जाएगा, बल्कि यह भी है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम में बदलाव के साथ पर्सनल कानूनों में संशोधन की संभावनाएं भी टटोली जाएंगी। ऐसा इसलिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका कोई औचित्य नहीं कि कोई तबका अपनी धार्मिक मान्यताओं अथवा अपने पर्सनल कानूनों के नाम पर सामाजिक सुधार की इस पहल से बचा रहे। इसकी सुविधा किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए, अन्यथा यह धारणा खंडित ही होगी कि लोकतंत्र में सभी एक जैसे कानूनों से संचालित होते हैं। चूंकि सामाजिक सुधार के इस कदम का विरोध भी हो सकता है, इसलिए सरकार को उसका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

यह शुभ संकेत नहीं कि कुछ धार्मिक नेताओं की ओर से सामाजिक सुधार की इस पहल को लेकर असहमति प्रकट की जा रही है। वास्तव में ऐसा हमेशा होता है। जब भी सामाजिक सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए जाते हैं, तब कोई न कोई समूह या संगठन उसके विरोध में खड़ा हो जाता है, लेकिन उनकी वैसी ही अनदेखी की जानी चाहिए, जैसे अतीत में की गई। आम तौर पर सरकारें सामाजिक सुधार की दिशा में मुश्किल से ही कोई पहल करती हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि जो सुधार लंबित हैं, उनकी दिशा में तेजी से आगे बढ़ा जाए। लड़कियों की विवाह योग्य आयु 18 से 21 वर्ष करने की दिशा में कदम बढ़ाने के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि समान नागरिक संहिता का निर्माण किया जाए, क्योंकि इस काम में पहले ही बहुत देर हो चुकी है।