अपने उद्यम कौशल से एक विशाल कारोबार खड़ा करने वाले वीजी सिद्धार्थ की आत्महत्या कारोबार जगत के साथ आम लोगों का ध्यान खींचने वाली है। मंगलुरु की नेत्रावती नदी से उनका शव मिल जाने के बाद इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिर सफलता की इबारत लिखने वाले वीजी सिद्धार्थ ने किन हालात में फंसकर जान दे दी? इस सवाल पर जितने मुंह उतनी बातें वाली स्थिति है। यह स्वाभाविक भी है, लेकिन इस नतीजे पर पहुंचना भी जल्दबाजी और एक तरह से समस्या का सरलीकरण है कि कैफे कॉफी डे के संस्थापक टैक्स सिस्टम की सख्ती का शिकार हो गए।

इससे इन्कार नहीं कि वीजी सिद्धार्थ टैक्स संबंधी विवादों से घिरे हुए थे और उन्होंने अपने अंतिम पत्र में एक टैक्स अधिकारी के सख्त रवैये का जिक्र किया है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि उन्होंने यह भी लिखा है कि वह कर्जदारों के दबाव से तंग आ गए हैं। इसमें दोराय नहीं कि कारोबारियों को तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन आम तौर पर वे इन समस्याओं का सामना करना भी बखूबी जानते हैं और इसीलिए कामयाबी हासिल करते हैं। यह भी ध्यान रहे कि विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए कामयाबी पाने वाला कोई शख्स आत्महत्या करने का फैसला तभी करता है जब हालात बहुत गंभीर हो जाते हैं।

फिलहाल किसी के लिए भी उन कारणों की तह तक पहुंचना कठिन है जिनके चलते कॉफी किंग वीजी सिद्धार्थ ने अपनी जान दे दी, लेकिन चूंकि उनकी मौत के कारणों में टैक्स सिस्टम की सख्ती का भी उल्लेख किया जा रहा है इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि सरकार कैफे कॉफी डे के संस्थापक की आत्महत्या के कारणों का पता लगाने के लिए सक्रिय हों। यह इसलिए और भी जरूरी है, क्योंकि टैक्स सिस्टम की सख्ती को टैक्स टेररिज्म की संज्ञा दी जा रही है।

नि:संदेह यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कि एक ऐसे समय जब सरकार उद्योग-व्यापार को गति देने की कोशिश में लगी हुई हो तब उसकी टैक्स व्यवस्था को टैक्स टेररिज्म के तौर पर परिभाषित किया जाए। इस तरह की परिभाषाएं उद्योग-व्यापार जगत के लिए प्रतिकूल माहौल का निर्माण करने वाली साबित हो सकती हैं।

बीते दिनों आयकर दिवस के अवसर पर वित्त मंत्री ने टैक्स विभाग के अधिकारियों को मधुमक्खी की तरह काम करने की सलाह देते हुए यह भी कहा था कि जो टैक्स सिस्टम से खेल रहे हैं उन पर पैनी नजर रखी जाए। यह एक सच्चाई है कि कुछ कारोबारी अभी भी दो नंबर के तौर-तरीके अपना रहे हैं, लेकिन सरकार को यह देखना होगा कि सख्ती की जद में केवल वही आएं।

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