सूखे की आशंका के चलते किसानों के चेहरे एक बार फिर मुरझाने लगे हैं। पिछले वर्षो का सबक ध्यान रखते हुए बारिश कम होने से बुंदेलखंड और पश्चिमी उप्र के कई जिलों में सूखे के हालात को लेकर सरकार भी चिंतित है। मामले को स्थानीय प्रशासन पर छोड़ने के बजाय सरकार ने वास्तविक स्थिति को जानने के लिए मंत्रियों को लगाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंत्रियों का समूह गठित किया है। यह समूह चित्रकूट, झांसी, आगरा, अलीगढ़, मेरठ और सहारनपुर मंडल में मौके पर जाकर सूखे से उत्पन्न हालात की जानकारी स्थानीय प्रशासन और कृषि विभाग से लेगा।

मुख्यमंत्री ने अक्टूबर के पहले हफ्ते में रिपोर्ट देने का निर्देश भी दिया है। सरकार ने जिन छह मंडलों में सूखे की स्थिति की जानकारी के लिए मंत्री समूह गठित किया है उनमें झांसी, जालौन, ललितपुर, बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, आगरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी, मथुरा, अलीगढ़, एटा, हाथरस, कांशीराम नगर, मेरठ, बुलंदशहर, हापुड़, बागपत, सहारनपुर, शामली और मुजफ्फरनगर समेत 22 जिले शामिल हैं। कभी सूखा तो कभी बाढ़ उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने लंबे समय से परेशानी का सबब बनती रही है। यद्यपि सरकार ने कर्जमाफी का वादा पूरा करके काफी हद तक किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है लेकिन, कुदरत के आगे भला किसकी चली है। एक बार फिर सूखे के हालात बनने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में सूखा बड़ी चिंता की बात है।

वस्तुत: वृक्षों का कम होता दायरा और दिनों-दिन घटते भू-जल के लिए कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि संपूर्ण समाज जिम्मेदार है। बुंदेलखंड सरीखे पथरीले इलाके में जहां बूंद-बूंद पानी की किल्लत है, बोरिंग के माध्यम से अधाधुंध जल दोहन कर धरती की कोख सूनी की जा रही है। पानी की किल्लत के चलते महोबा के विख्यात देसी पान की खेती दम तोड़ रही है। राजमार्गो पर जगह-जगह खड़े मवेशियों के झुंड पानी की तलाश में व्याकुल नजर आते हैं। निश्चित रूप से सरकार ने अभी से ही सूखे के हालात से निपटने की तैयारी करके सराहनीय कार्य किया है। उम्मीद है कि मंत्री समूह की रिपोर्ट के आधार पर सरकार जो भी निर्णय करेगी वह किसानों के लिए खासा हितकारी होगा। बशर्ते, सरकारी अमला भी इसी मंशा से काम करे और किसानों के प्रति संवेदनशीलता का परिचय दे।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]