आखिरकार भाजपा का भी घोषणापत्र आ गया जिसे उसने संकल्प पत्र का नाम दिया है। सुरक्षा, सुशासन और समृद्धि की आकांक्षाओं को पूरा करने का संकल्प लेने वाले इस घोषणापत्र में राम मंदिर के साथ अनुच्छेद-370 एवं 35-ए का जिक्र होने पर हैरानी नहीं। तीन तलाक, निकाह हलाला पर रोक भाजपा के नए मुद्दे हैं। उसने तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने की पहल कर इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के प्रति अपनी गंभीरता भी प्रदर्शित की थी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अनुच्छेद-370 और राम मंदिर के मामले में बीते पांच सालों में कोई ठोस पहल नहीं की गई। स्पष्ट है कि भाजपा को इस सवाल का सामना करना पड़ सकता है कि आखिर उसने राम मंदिर बनाने, कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने और साथ ही वहां कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने का लिए क्या किया? इस पर भी सवाल उठ सकता है कि उसने समान नागरिक संहिता को लेकर भी कोई प्रयत्न क्यों नहीं किया? ऐसे ही सवाल का सामना उसे संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के वादे पर भी करना पड़ सकता है। अच्छा होगा कि भाजपा अब यह भी बताए कि सत्ता में रहते समय वह अपने कुछ चुनिंदा वादों को क्यों नहीं पूरा कर सकी? यह अच्छी बात है कि भाजपा ने शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने पर

जोर देने का वादा किया है, लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि पांच साल बीत गए, मगर नई शिक्षा नीति सामने नहीं आ सकी।

भाजपा के संकल्प पत्र में कृषि और किसानों का उल्लेख होना स्वाभाविक है। कोई भी राजनीतिक दल हो वह आज किसानों की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं। भाजपा ने कुछ शर्तों के साथ किसान क्रेडिट कार्ड पर पांच साल तक एक लाख रुपये का कर्ज बिना ब्याज के देने का एक बड़ा वादा किया है। इसके अतिरिक्त किसानों और व्यापारियों को पेंशन देने का वादा भी खासा उल्लेखनीय है। यह बाजी पलटने वाला वादा बनने के साथ कांग्रेस की न्याय नामक योजना का जवाब भी हो सकता है। इस घोषणा के साथ भाजपा ने एक साथ दो बड़े मतदाता समूहों की नाराजगी दूर करने के साथ ही उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की पहल की है। नि:संदेह इस घोषणा के अतिरिक्त उसके कुछ और भी ऐसे वादे हैं जिन्हें लोक-लुभावन घोषणाओं की संज्ञा दी जा सकती है। अपनी इन घोषणाओं के संदर्भ में भाजपा को इस सवाल का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए कि इन वादों को पूरा करने के लिए धन का प्रबंध कहां से होगा? यह हास्यास्पद है कि भाजपा के घोषणापत्र को झूठ का पुलिंदा करार देने वाली कांग्रेस अपना घोषणापत्र जारी करने के एक सप्ताह बाद भी यह नहीं बता पा रही है कि वह अपने लोक-लुभावन वादों को जमीन पर उतारने के लिए धन का जुगाड़ कहां से करेगी? वैसे यह अच्छा है कि दोनों राजनीतिक दल एक-दूसरे के घोषणापत्रों के वादों पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। यह सिलसिला कायम रहे तो बेहतर, क्योंकि इससे आम जनता को चुनावी वादों का आकलन करने और अपनी समझ बनाने में आसानी होगी।