लगता है राहुल गांधी ने यह ठान लिया है कि वह गंभीर से गंभीर मसले पर भी केवल तंज ही कसेंगे। गत दिवस उन्होंने फरमाया कि केंद्र सरकार के पास कोरोना से निपटने के बस तीन ही उपाय हैं। पहला, तुगलकी लॉकडाउन लगाओ। दूसरा, घंटी बजाओ और तीसरा, प्रभु के गुण गाओ। इसके पहले उन्होंने ट्वीट किया था-न टेस्ट, न अस्पताल में बेड, न वेंटीलेटर, न ऑक्सीजन...टीका भी नहीं। क्या यह किसी ऐसे नेता की भाषा कही जा सकती है, जो देश की सबसे पुरानी पार्टी का अध्यक्ष रहा हो? यह तो ट्रोल की भाषा है। मुश्किल यह है कि राहुल ट्रोलिंग को ही राजनीति मान बैठे हैं। शायद यही कारण है कि वह इसकी परवाह नहीं करते कि उनकी टीका-टिप्पणी तथ्यों से मेल खाती है या नहीं? तथ्य यह है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर थामने के लिए जिस राज्य ने सबसे पहले लॉकडाउन सरीखा कदम उठाया, वह है महाराष्ट्र, जहां की सत्ता में कांग्रेस भी साझीदार है। क्या राहुल महाराष्ट्र सरकार के फैसले को तुगलकी बता रहे हैं? पता नहीं, वह क्या कहना चाहते हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले साल कांग्रेस शासित राज्य सरकारें उन सरकारों में शामिल थीं, जो केंद्र की ओर से कोई घोषणा किए जाने के पहले ही अपने स्तर पर लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दिया करती थीं। क्या यह तुगलकी सोच के तहत किया जाता था?

यदि केंद्र सरकार की कोरोना पर काबू पाने की रणनीति पूरी तरह नाकाम है तो राहुल गांधी को बताना चाहिए कि क्या पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के साथ महाराष्ट्र में सब कुछ नियंत्रण में है? वह इन राज्यों के हालात से परिचित नहीं या फिर प्रधानमंत्री पर तंज कसने की ललक में सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहते हैं? नि:संदेह कोरोना की दूसरी लहर कहीं न कहीं यह बताती है कि समय रहते सावधानी नहीं बरती गई और इसकी अनदेखी कर दी गई कि दूसरी लहर पहले से अधिक घातक साबित हो सकती है, लेकिन यदि राहुल दूरदृष्टि से लैस थे तो वे केंद्र सरकार न सही, कांग्रेस शासित राज्यों को तो आगाह कर ही सकते थे। क्या वह यह कहना चाहते हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में बेड, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन आदि का कहीं कोई संकट नहीं? दुर्भाग्य से उनके जैसे नेताओं को यह समझ नहीं आने वाला कि एक विकट महामारी से मिलकर ही लड़ा जा सकता है। संकट के समय समस्याओं को उजागर करने में हर्ज नहीं, लेकिन इसी के साथ कारगर सुझावों की भी दरकार होती है। यह देखना दुखद है कि राहुल गांधी परेशान देश को कोई दिलासा देने के बजाय उसे हतोत्साहित कर रहे हैं।