देश के एक करोड़ गरीब किसानों को मिली सम्मान निधि योजना की पहली किस्त
किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत देश भर के गरीब किसानों के मन में एक उम्मीद जगाने और उन्हें सहारा देने वाली है।
किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत देश भर के गरीब किसानों के मन में एक उम्मीद जगाने और उन्हें सहारा देने वाली है। गोरखपुर में इस योजना को शुरू करते हुए प्रधानमंत्री ने यह जो कहा कि राज्य सरकारों को कुछ नहीं करना, बस ईमानदारी से सही सूची बनाकर केंद्र सरकार को सौंप देना है, उस पर उन्हें गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री को यह बात इसलिए कहनी पड़ी, क्योंकि कुछ राज्य सरकारें इस योजना के प्रति अपेक्षित गंभीरता का परिचय नहीं दे रही हैं। यह अगंभीरता महज राजनीतिक संकीर्णता ही नहीं, गरीब किसानों की अनदेखी भी है।
यह खेद और लज्जा की बात है कि कुछ राज्य सरकारें ऐसी ही संकीर्णता का परिचय गरीबों को एक बड़ी राहत देनी वाली आयुष्मान भारत योजना के प्रति भी दिखा रही हैं। इस योजना के तहत गरीबों का पांच लाख रुपये तक का उपचार मुफ्त हो रहा है। चंद महीनों में ही लाखों निर्धन इस योजना का लाभ उठा चुके हैं, लेकिन कुछ राज्य सरकारें इस योजना को अपनाने से बच रही हैं।
समझना कठिन है कि कुछ राज्य सरकारें अपने लोगों को इस उपयोगी योजना से क्यों वंचित करना चाहती हैं? एक ओर तो वे दिन-रात गरीबों की चिंता में घुलती दिखती हैं और दूसरी ओर जब उनके लिए कुछ करने का अवसर आता है तो राजनीतिक द्वेषवश आनाकानी करने लगती हैं। इनमें पश्चिम बंगाल की सरकार भी है जो राज्य अपनी गरीबी के लिए जाना जाता है।
किसान सम्मान निधि योजना के तहत छोटी जोत वाले किसानों को प्रति वर्ष छह हजार रुपये दिए जाने हैं। गत दिवस प्रधानमंत्री ने एक साथ करीब एक करोड़ किसानों के खाते में इस योजना की पहली किस्त भेज दी। नि:संदेह यह एक तर्क है कि छह हजार रुपये की सालाना सहायता राशि कोई बहुत बड़ी मदद नहीं है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि यह राशि जिन गरीब किसानों के पास जानी है उनके लिए बहुत मायने रखती है। निर्धन किसान इस राशि का इस्तेमाल अपनी किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए कर सकते हैं।
देश में गरीबी की हालत को देखते हुए जरूरी केवल यह नहीं है कि राज्य सरकारें गरीबों के कल्याण की हर केंद्रीय योजना को सही तरह अपनाएं, बल्कि यह भी है कि इसे सुनिश्चित करें कि गरीब तबका अपने हितों के लिए और अधिक जागरूक हो। निर्धन वर्ग के लोगों को अपनी सेहत से लेकर अपने बेहतर भविष्य के लिए किस तरह और सजग होने की जरूरत है, इसे बयान कर रही हैं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और असम की वे घटनाएं जिनमें जहरीली शराब पीने के कारण तमाम लोग मर गए। ऐसी घटनाएं देश के किसी न किसी हिस्से में रह-रह कर होती ही रहती हैं। ये घटनाएं यही बताती हैं कि एक तो गरीबों के हितों की रक्षा के प्रति उपेक्षा भाव है और दूसरे, इस तबके के लोग अपने भले-बुरे की चिंता सही तरह नहीं कर रहे हैं। यह समय की मांग है कि देश के हर गरीब की चिंता कर रही केंद्र सरकार यह भी देखे कि राज्य सरकारें अवैध और जहरीली शराब के कारोबार पर सख्ती से लगाम लगाएं।