असम को शेष देश से अलग करने के लिए लोगों को उकसाने वाले शरजील इमाम को गिरफ्तार कर दंड का भागीदार बनाया ही जाना चाहिए। जिहादी सोच वाले ऐसे तत्व देश की एकता, अखंडता और साथ ही सामाजिक सद्भाव के लिए गंभीर खतरा हैं। शरजील इमाम जेएनयू का छात्र है। यह विश्वविद्यालय अपने ऐसे ही छात्रों के कारण बदनाम होता रहता है। इस शैक्षिक संस्थान में ऐसी कोई खामी तो है ही, जिसके चलते यहां शरजील सरीखी दूषित सोच वाले छात्र तैयार होते हैं। क्या इससे बुरी बात और कोई हो सकती है कि भारतीयता के प्रति बैर भाव से भरे हुए तत्वों को देश के एक नामी शिक्षा संस्थान में संरक्षण मिले?

शरजील अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जाकर केवल असम को देश से अलग करने की जरूरत ही नहीं जताता, बल्कि गांधी एवं नेहरू को फासिस्ट भी करार देता है। वह जिन्ना का गुणगान करने के साथ ही इस पर अफसोस भी जाहिर करता है कि कथित सेक्युलर नेता उसके एजेंडे के हिसाब से नहीं चल रहे हैं। जिहादी तेवर वाले शरजील के वीडियो केवल उसके नापाक इरादों की ही पोल नहीं खोलते, बल्कि उन छद्म लिबरल तत्वों को भी बेनकाब करते हैं जो नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सड़कों पर उतरने वालों और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को उकसाने में लगे हुए हैं।

उन्माद से भरा हुआ शरजील इमाम अपने खतरनाक इरादों को पूरा करने के लिए जिस तरह संवैधानिक तौर-तरीकों की आड़ लेने की नसीहत देते हुए दिखता है उससे यही पता चल रहा कि दिल्ली के शाहीन बाग जैसे विरोध प्रदर्शनों में किस तरह संविधान की फर्जी आड़ ली जा रही है। यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि शाहीन बाग धरने के एक सूत्रधार के रूप में शरजील का भी नाम लिया जा रहा है। दुर्भाग्य यह है कि इस तरह के धरना-प्रदर्शनों की पैरवी मीडिया का एक हिस्सा भी करने में लगा हुआ है।

मीडिया का यह हिस्सा यह जानते हुए भी अपनी आंखें बंद किए हुए है कि शाहीन बाग सरीखे धरनों में मजहबी उन्माद और अराजकता को हवा दी जा रही है। यदि शाहीन बाग धरने पर फिदा मीडिया यह नहीं देख पा रहा कि इसके कारण हर दिन लाखों लोग परेशानी उठा रहे हैं तो इसका मतलब है कि वह खुद उन्माद से ग्रस्त है और इसीलिए अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। यह अच्छा हुआ कि शरजील इमाम और उसके साथियों की पोल खुल गई। इसी के साथ यह और पुष्ट हो गया कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के बहाने लोगों को गुमराह करने का एक सुनियोजित अभियान छिड़ा है।