यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने लखनऊ में उद्योगपतियों के बीच यह कहा कि वह उनके साथ खड़े होने में डरते नहीं। इसी के साथ उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि देश के विकास में उद्योगपतियों की भी भूमिका है। वैसे तो इस सामान्य सी बात को हर कोई समझता है, लेकिन कुछ लोग इस बुनियादी बात को समझने से इन्कार करने के साथ ही आम जनता को बरगलाने का काम भी कर रहे हैं।

दरअसल इसीलिए प्रधानमंत्री की ओर से यह कहा जाना उल्लेखनीय है कि वह उन लोगों में नहीं जो उद्योगपतियों से छिपकर मिलते हैं। इसमें संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी को ध्यान में रखकर ही उक्त वक्तव्य दिया, क्योंकि वह एक अर्से से इस दुष्प्रचार में जुटे हैं कि मोदी सरकार केवल चंद उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है। इस क्रम में वह बाकायदा कुछ उद्यमियों का नाम लेकर उन्हें प्रधानमंत्री का मित्र करार देकर यह कहने की भी कोशिश करते हैं कि उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाया जा रहा है।

उन्होंने सूट-बूट की सरकार वाला जुमला सिर्फ इसीलिए उछाला था ताकि सरकार को उद्योग-व्यापार जगत की अनुचित हितैषी साबित किया जा सके। सबसे खराब बात यह है कि राहुल गांधी किसी कम्युनिस्ट-कामरेड की तरह यह माहौल भी बना रहे हैं कि उद्योगपति गरीब विरोधी हैं और उन्हें किसी तरह का कोई प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए।

यह घोर निराशाजनक है कि विदेश में पढ़ाई कर चुकने के बावजूद राहुल गांधी खुद को गरीब हितैषी साबित करने के फेर में गरीबी का महिमामंडन कर रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि वह सड़कों को केवल कार वालों के लिए उपयोगी बता चुके हैं। इसी तरह कुर्ता-पायजामा और हवाई चप्पल वालों की सरकार की जरूरत जता चुके हैं। ऐसा लगता है कि यह सब कहते हुए वह यह भूल जाते हैं कि किस तरह इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था और किस प्रकार प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उद्योग-धंधों के विकास पर विशेष बल दिया था। आज के युग में तो औद्योगिक विकास आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।

भारत सरीखा ग्रामीण आबादी की बहुलता वाला देश उद्योग-धंधों के तेज विकास के बगैर अपनी विशाल आबादी को निर्धनता से मुक्त नहीं कर सकता। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि राहुल गांधी के साथ कुछ अन्य विपक्षी नेता उद्योगीकरण को गति देने की आवश्यकता जताने के बजाय उद्यमियों को लांछित करने में लगे हुए हैं। ऐसा लगता है कि राहुल को अडानी-अंबानी से कुछ ज्यादा ही चिढ़ है। इन दिनों वह इस पर आपत्ति जताने में लगे हुए हैं कि राफेल लड़ाकू विमान के सौदे के तहत अनिल अंबानी की कंपनी को ठेका क्यों मिल गया?

बेहतर होगा कि राहुल यह स्पष्ट करें कि अनिल अंबानी की कंपनी को यह ठेका मिलना अनुचित कैसे है? यह ठीक नहीं कि वह संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के फेर में उद्योगपतियों को खलनायक के रूप में पेश करने का काम कर रहे हैं। ऐसा करके वह उद्योग व्यापार जगत का ही अहित नहीं कर रहे, बल्कि उन लाखों गरीब युवाओं के भविष्य से भी खेल रहे हैं जो रोजगार की तलाश में हैं।