पिछले लंबे अर्से से मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे जम्मू-कश्मीर पुलिस के एसपीओ का मानदेय बढ़ाकर स्वतंत्रता दिवस का तोहफा दिया है। एसपीओ का मानदेय प्रति माह तीन हजार से बढ़ा कर छह हजार रुपये किए जाने इन पुलिस कर्मियों की लंबित मांग पूरी हो जाएगी। मानदेय बढ़ाने की घोषणा जनवरी में हुई थी। यह अच्छी बात है कि एसपीओ को जुलाई से बढ़ा हुआ मानदेय मिलने लगा है। एसपीओ का आतंकवाद का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राज्य में इस समय तीस हजार के करीब एसपीओ हैं, जो विभिन्न थानों व आतंकवादग्रस्त इलाकों में पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। एसपीओ की सेवाओं को झुठलाया नहीं जा सकता। राज्य में बढ़ते आतंकवाद में सुरक्षाबलों का साथ देने के लिए करीब तीस हजार एसपीओ की करीब नब्बे के दशक में नियुक्ति हुई थी। अस्थायी तौर पर नियुक्त हुए ये कर्मी मात्र तीन हजार रुपये वेतनमान पर इस आस में काम कर रहे कि शायद उन्हें नौकरियों में पक्का कर दिया जाए। हद तो यह है कि इनमें ऐसे कर्मी भी शामिल हैं, जो पोस्ट गेज्युएट की डिग्री लिए हुए हैं। इन कर्मियों की नियुक्तिओं के लिए जो नीति बनाई गई थी उसका अनुपालन नहीं हो पाया। बेहतर तो यह होता कि सरकार दशकों से पुलिस में सेवाएं दे रहे कर्मियों का वेतनमान बढ़ाए जाने के साथ-साथ उन्हें नौकरियों में भी पक्का करने के आदेश जारी करती। उनमें से कई उम्रदराज भी हो चुके हैं जो किसी भी नौकरी के योग्य नहीं रह गए हैं। ऐसे में उन्हें सम्मानजनक वेतन और नौकरी देकर उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत है। पुलिस अधिकारियों को चाहिए कि यह एसपीओ, अधिकारियों के नौकर न बन कर रह जाए। उनका शोषण न हो। देखा गया है सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात ये एसपीओ अधिकारियों की गाडिय़ां व घरेलु कामकाज मे चौबीस घंटे लगे हुए हैं। उनमें से कुछ को तो घरों पर ही रखा जाता है। अधिकारियों को समझना होगा यह भी देश पर मर मिटने का उतना जज्बा रखते जितना की वे। उन जैसे कई ने आतंकवाद के दौर में शहादत का जाम पीया है। ऐसी जवानों की अनदेखी न हो और उन्हें सम्मानजनक जिंदगी जीने के लिए सभी सहूलियतें मिलनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]