यह अफसोस की बात है कि विभिन्न राजनीतिक दलों, कृषक समूहों और समाजसेवी संगठनों की पहल पर दिल्ली आए किसानों को संबोधित करने पहुंचे नेताओं ने अपने बयानों से यही अधिक प्रकट किया कि उनका मकसद अपनी राजनीति चमकाना है। यह ठीक नहीं कि राजनीतिक-सामाजिक संगठन अपने हितों की पूर्ति के लिए किसानों का इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं।

हाल के समय में यह तीसरी-चौथी बार है जब किसानों को दिल्ली लाया गया। इसके पहले उन्हें इसी तरह मुंबई भी ले जाया चुका है। समझना कठिन है कि परेशान हाल किसानों को बार-बार दिल्ली या मुंबई में जमा करने से उनकी समस्याओं का समाधान कैसे हो जाएगा? जो राजनीतिक दल यह मांग लेकर सामने आए हैं कि किसानों की समस्याओं पर विचार करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए, उन्हें बताना चाहिए कि बीते साढ़े चार सालों में संसद सत्र के दौरान उन्होंने यह मांग क्यों नहीं सामने रखी? सवाल यह भी है कि किसानों की समस्याओं के बहाने अडाणी-अंबानी, दुर्योधन-दुशासन, राफेल सौदे, अयोध्या मामले आदि का जिक्र करने का क्या मतलब

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि आगामी आम चुनाव के चलते विपक्षी नेता किसान-हित के बहाने अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हुए हैं। इस क्रम में किस तरह छल और झूठ का भी सहारा लिया जा रहा है, इसे बयान किया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने। उन्होंने एक बार फिर यह शिगूफा छोड़ा कि मोदी सरकार ने 15 उद्यमियों का लाखों करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया है और अब वह साढ़े 12 लाख करोड़ रुपये का एनपीए भी माफ करने की तैयारी में है। एक तो यह निरा झूठ है दूसरे, इस एनपीए के लिए मनमोहन सरकार अधिक जिम्मेदार है, जिसने तमाम ऐसे लोगों को भारी-भरकम कर्ज दिलाए जो उसके पात्र ही नहीं थे। बेहतर होता किसानों को बरगलाने के बजाय राहुल गांधी यह बताते कि मनमोहन सरकार के समय उद्यमियों को मनमाने तरीके से कर्ज क्यों दिए गए?

कथित किसान हितैषी नेताओं ने जिस तरह कर्ज माफी पर नए सिरे से जोर दिया उससे यही रेखांकित हुआ कि उनके पास किसानों की समस्याओं के समाधान का कोई ठोस उपाय नहीं। ऐसे समय जब बैंक पहले से ही खस्ताहाल हैं तब किसान कर्ज माफी पर जोर देना उन्हें जानबूझकर बर्बादी की ओर ले जाना है। यह हैरानी की बात है कि कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में किसान कर्ज माफी की योजनाएं नाकाम होने के बावजूद इस तरह की योजनाओं को किसानों की समस्याओं के हल की कुंजी बताया जा रहा है। पता नहीं क्यों इस बुनियादी बात को समझने से इन्कार किया जा रहा है कि किसान जब तक कर्ज लेने की स्थिति में बना रहेगा तब तक उसकी बदहाली दूर होने वाली नहीं? समय की मांग यही है कि विपक्ष किसानों को राजनीतिक मोहरा बनाना बंद कर कृषि संकट के समाधान के कुछ कारगार उपायों के साथ सामने आए। ऐसे उपायों की तलाश में मोदी सरकार को भी जुटना चाहिए, क्योंकि उसके तमाम प्रयासों के बाद भी किसान समस्या ग्रस्त हैं और फिलहाल यह नहीं दिख रहा कि वर्ष 2022 तक उनकी आय दोगुनी होने जा रही है।