कश्मीर के शोपियां जिले में पांच आतंकियों को मार गिराने में मिली सफलता यह बताती है कि पुलिस और सुरक्षाबलों के साथ सेना आतंकी संगठनों पर दबाव बनाने में कहीं अधिक कामयाब हो रही है। हाल के दिनों में सेना, सीआरपीएफ और पुलिस के साथ मिलकर कई बड़े आतंकियों को मार गिराने में सफल रही है। शोपियां में भी जो आतंकी मारे गए उनमें एक हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर बताया जा रहा है। उसके साथ जो चार अन्य आतंकी मारे गए उनमें एक कश्मीर विश्वविद्यालय का सहायक प्रोफेसर भी है। यह सहायक प्रोफेसर चंद दिनों पहले ही विश्वविद्यालय से गायब हो गया था और जब ऐसा हुआ था तो स्थानीय लोगों ने उसकी तलाश करने के लिए धरनाप्रदर्शन भी किए थे। एक विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर का आतंकी बनना यही बताता है कि कश्मीर में किस तरह उच्च शिक्षित लोग भी आतंक के रास्ते पर चल रहे हैं।

इसके पहले भी कई उच्च शिक्षित युवा आतंक के रास्ते पर जा चुके हैं। ऐसे युवाओं का आतंक के रास्ते पर जाना इसी बात का सूचक है कि आजादी की बेतुकी मांग और मजहबी रंगत वाले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने किस तरह कश्मीर के सामाजिक माहौल को बुरी तरह दूषित कर दिया है। क्या यह अजीब नहीं कि शोपियां में मारा गया आतंकी समाजशास्त्र का सहायक प्रोफेसर था? नि:संदेह यह अच्छा नहीं हुआ कि आतंकियों के साथ मुठभेड़ शुरू होने के साथ ही आसपास के लोग वहां खलल डालने पहुंच गए। हालांकि आतंकियों को अपने घेरे में लिए पुलिस उनके परिजनों के जरिये उनसे आत्मसमर्पण की अपील कर रही थी, लेकिन मुठभेड़ स्थल पर जमा अराजक भीड़ सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करने में जुटी रही। वह यह समझने के लिए तैयार नहीं हुई कि दुनिया में कहीं भी आतंकियों के प्रति ऐसी नरमी नहीं बरती जाती। यह विडंबना ही है कि जब-तब कोई न कोई सुरक्षा बलों को संयम बरतने का उपदेश देता रहता है।

शोपियां में पत्थरबाजों के उपद्रव का परिणाम यह हुआ कि जब सुरक्षाबलों की जान पर बन आई और उन्होंने अपने को बचाने के लिए मजबूरी में बल प्रयोग किया तो पांच पत्थरबाज मारे गए। यह तय है कि अब शोपियां और अन्य जिलों में आतंकियों को बचाने के लिए मुठभेड़ स्थल पर गए पत्थरबाजों के मारे जाने पर विरोध प्रदर्शन और उपद्रव होंगे। इस तरह से तो हिंसा का दुष्चक्र जारी ही रहेगा। यह पहली बार नहीं जब आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों के काम में बाधा डालने वाले पत्थरबाज मारे गए हों, लेकिन शायद ही कभी कश्मीर के राजनीतिक दल एवं अन्य प्रभावी लोग पत्थरबाजों के पागलपन के खिलाफ कुछ कहते हों। चंद दिन पहले ही इन पत्थरबाजों ने एक स्कूली बस को निशाना बनाकर छात्रों को घायल कर दिया था। कायदे से इस घटना के बाद राज्य सरकार को आतंकियों के हमदर्द पत्थरबाजों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए थी, लेकिन उसकी ओर से औपचारिक आलोचना करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई। कश्मीर की जनता के साथ- साथ वहां

के लोगों को यह समझना होगा कि आतंकवाद सिर्फ तबाही फैला रहा है और पत्थरबाज आतंकियों के शातिर समर्थक ही हैं।

[राष्ट्रीय संपादकीय- नई दिल्ली]