क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि जो ममता बनर्जी मोदी सरकार की कथित लोकतंत्र विरोधी नीतियों का झंडा बुलंद किए रहती हैं वह खुद भाजपा के खिलाफ तानाशाही भरे रवैये का परिचय देने में संकोच नहीं कर रही हैं? समझना कठिन है कि उनकी सरकार ने किस अधिकार के तहत बालूरघाट में भाजपा की रैली को संबोधित करने के लिए वहां जाने की तैयारी कर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर को उतरने की अनुमति नहीं दी? इस मनमानी रोक के चलते उन्हें फोन से रैली को संबोधित करना पड़ा। यह किसी राज्य सरकार की ओर से विरोधी दल के नेताओं को अपने यहां सभा-सम्मेलन करने से रोकने का दुर्लभ उदाहरण है।

दुर्भाग्य से ममता बनर्जी इस तरह के उदाहरण पेश करने में माहिर होती जा रही हैं। भाजपा की इस रैली में खलल डालने के पहले उनकी सरकार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पश्चिम बंगाल यात्रा में भी इसी तरह की बाधा डाल चुकी है। उनकी सरकार पर यह भी आरोप है कि वह प्रधानमंत्री की रैलियों के दौरान पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं कर रही है। यह तो एक तथ्य ही है कि ममता सरकार कानून एवं व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा जताकर भाजपा को यात्राएं नहीं निकालने दे रही है। आखिर ऐसी सरकार के मुखिया को लोकतांत्रिक कैसे कहा जा सकता है? माना कि ममता बनर्जी अपने गुस्से के लिए जानी जाती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं को ताक पर रख दें। मुश्किल यह है कि वह ऐसा डंके की चोट पर कर रही हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें यह भान ही नहीं है कि वह एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं और उन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति ऐसा रवैया शोभा नहीं देता। इस तरह का रवैया लोकतांत्रिक परंपराओं के विपरीत है। इससे केवल पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक छवि को भी चोट पहुंचती है।

ममता बनर्जी अपने मनमाने तौर-तरीकों से अपना ही नुकसान कर रही हैं। आखिर राजनीतिक विरोधियों के प्रति असहिष्णुता दिखा रहा कोई नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना कैसे देख सकता है? अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति ममता का असहिष्णु रवैया कुल मिलाकर उन वामदलों की ही याद दिला रहा है जिनके कठोर शासन से उकता कर लोगों ने ममता बनर्जी को सत्ता सौंपी थी। वह तो वाम दलों को भी मात दे रही हैं। वह भाजपा और मोदी सरकार के प्रति इस हद तक असहिष्णुता से भरी हुई हैं कि केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को ठुकराने के साथ ही केंद्रीय एजेंसियों के प्रति भी दुर्भावना का प्रदर्शन करने में लगी हुई हैं।

ममता बनर्जी अपने मनमाने आचरण से यही दर्शा रही हैं कि सत्ता में आने के बाद कुछ नेता किस तरह बेलगाम हो जाते हैं। इस पर यकीन करना कठिन है कि यह वही ममता बनर्जी हैं जो संघीय ढांचे की रक्षा के लिए चिंता जताया करती थीं। उनकी सरकार का रवैया तो संघीय ढांचे की मूल भावना पर ही प्रहार करने वाला है। क्या ममता बनर्जी को साथ लेकर महागठबंधन बनाने वाले नेता यह देखेंगे कि उनकी एक सहयोगी कैसा अलोकतांत्रिक आचरण कर रही हैं?