फरारी की हालत में लंदन में रह रहे कारोबारी विजय माल्या को भगोड़ा घोषित किया जाना उनके साथ-साथ अन्य अनेक ऐसे ही लोगों के लिए एक सख्त संदेश है। विजय माल्या पहले ऐसे कारोबारी बने जिन्हें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत भगोड़ा घोषित किया गया है। उम्मीद है कि जल्द ही विदेश भागे अन्य अनेक ऐसे ही कारोबारी भी विजय माल्या की जमात में खड़े दिख सकते हैैं। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत गठित अदालत द्वारा किसी को आर्थिक भगोड़ा घोषित किए जाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उसकी देश के साथ-साथ विदेश की भी संपत्ति जब्त की जा सकेगी और वह किसी तरह की कानूनी बाधा नहीं डाल सकेगा। इसके अलावा उसे प्रत्यर्पित करने में भी आसानी होगी।

स्पष्ट है कि यह कानून बैैंकों का पैसा डकारने अथवा अन्य किस्म की आर्थिक हेराफेरी करने वालों के विदेश भाग जाने के सिलसिले को समाप्त करने वाला साबित हो सकता है। विजय माल्या को भगोड़ा घोषित किया जाना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी राहत की बात है, क्योंकि विपक्षी दल और खासकर कांग्रेस उस पर यह आरोप लगाने में जुटी हुई थी कि उसने उन्हें जानबूझकर देश से बाहर भाग जाने दिया। विजय माल्या के साथ नीरव मोदी और मेहुल चोकसी का उल्लेख करके भी सरकार पर ताने कसे जाते थे। बेहतर हो कि कांग्रेस यह महसूस कर सके कि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे कारोबारी बैैंकों के लिए इसीलिए मुसीबत बने, क्योंकि संप्रग सरकार के समय उन्हें मनमाने तरीके से कर्ज दिए गए। सच तो यह है कि ऐसे कारोबारियों की संख्या अच्छी-खासी है जिन्हें मनमोहन सरकार के समय नियम-कानूनों की अनदेखी करके कर्ज बांटे गए। इनमें से कई तो ऐसे थे जो कर्ज पाने के बिल्कुल भी पात्र नहीं थे। अगर कर्ज बांटने में जरूरी सावधानी का परिचय दिया गया होता तो शायद फंसे अथवा डूबे हुए कर्ज की समस्या इतनी गंभीर नहीं हुई होती।

यह एक विडंबना ही है कि इस समस्या को गंभीर बनाने का काम करने वाले ही बाद में ऐसे आरोपों के साथ सामने आए कि मोदी सरकार उद्योगपतियों के प्रति अनावश्यक नरमी दिखा रही है। राहुल गांधी तो अभी भी इस झूठ को दोहराने में लगे हुए हैैं कि मोदी सरकार ने अपने कथित पसंदीदा उद्यमियों का लाखो करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया।

हालांकि वह तथ्यों और तर्को के बिना अपनी बात कहने में माहिर हो चुके हैैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि इस सरकार ने एक ओर जहां प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को मजबूत बनाया वहीं दीवालिया संहिता का भी निर्माण किया। इस संहिता ने उस सिलसिले को समाप्त करने का काम किया है जिसके तहत बैैंकों से भारी-भरकम कर्ज लेने वाले कारोबारी खुद को दीवालिया बताकर सारी जिम्मेदारी से मुक्त होे जाते थे। इनमें से कई ऐसे होते थे जो समर्थ होने के बाद भी कर्ज चुकाने से इन्कार करते थे। दीवालिया संहिता लागू होने के बाद से करीब 88,000 करोड़ रुपये वसूलने में मदद मिली है। स्पष्ट है कि इससे उन बैैंकों की हालत सुधरेगी जो कारोबारियों के छल का शिकार हुए।