पाकिस्तानी सेना पुंछ सेक्टर में फायरिंग की आड़ में आतंकियों को घुसपैठ कराने के उद्देश्य से भारतीय चौकियों और रिहायशी इलाकों पर गोलाबारी कर रही है। पिछले दिनों फायरिंग में एक ही परिवार के पांच लोगों की मौत और परिवार के दो सदस्यों व सेना के पांच जवानों का घायल होना दुखद है। सीमा पर कई प्रशिक्षित आतंकी इस फिराक में हैं कि जम्मू कश्मीर सहित कई हिस्सों में तोड़फोड़ कर देश को अस्थिर किया जाए। नियंत्रण रेखा पर तैनात भारतीय सेना भी दुश्मनों का मुंहतोड़ जवाब दे रही है। विडंबना यह है कि पाकिस्तान रिहायशी इलाकों में गोलाबारी कर जानमाल का अधिक से अधिक नुकसान करना चाहता है। इसके लिए बेशक सरकार ने लोगों की जानमाल के लिए पचास करोड़ की लागत से बंकर बनाने का फैसला किया है, लेकिन इसे मूर्त रूप न देना दुर्भाग्यपूर्ण है। पिछले कुछ माह में संघर्ष विराम उल्लंघन के करीब तीन सौ मामले सामने आए हैं। शायद ही कोई ऐसा महीना बीता होगा जब सीमांत क्षेत्रों के लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़ा हो।

यह सही है कि राज्य सरकार ने इस दौरान कुछ गांव में बंकर भी बनाए, लेकिन यह इतने कम हैं कि अधिकांश लोगों की जान पर हर पल खतरा मंडराता रहता है। गोलाबारी होने के बाद उन्हें राहत कैंपों में दिन बिताने पड़ते हैं। सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की परेशानियां तभी कम होंगी जब सरकार घोषणाओं को अमलीजामा पहनाए। अक्सर देखा जाता है कि लोगों को शांत करने के लिए सरकारी स्तर पर घोषणाएं तो कर दी जाती हैं, लेकिन बाद में उन्हें भुला दिया जाता है। सीमांत क्षेत्रों में बंकरों का निर्माण भी उनमें से एक है। पिछले वर्ष इन क्षेत्रों में रहने वालों की सुरक्षा के लिए बंकर बनाने के साथ-साथ पांच-पांच मरला भूमि के प्लाट आवंटित करने की भी कई बार घोषणा हुई, मगर आज तक एक भी ग्रामीण को पांच-पांच मरले का प्लाट नहीं दिया गया। इससे ग्रामीणों में सरकार के प्रति अविश्वास और रोष पनपना स्वाभाविक है। राज्य सरकार को चाहिए कि इस बार वह अपनी घोषणा पर गंभीरता दिखाए और बंकर बनाने के लिए शीघ्र काम शुरू करे। इसके लिए जरूरी है कि सभी जिलों के डिप्टी कमिश्नर इस पर तुरंत कार्रवाई करें और जगह की पहचान करें। इससे हर दिन खौफ में जिंदगी जीने वालों को थोड़ी राहत मिलेगी।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]